हो झालौ दे छे रसिया नागर पनाँ। साराँ देखे लाज मराँ छाँ आवाँ किण जतनाँ॥ छैल अनोखो कह्यो न मानै लोभी रूप सनाँ। रसिक बिहारी नणद बुरी छै हो लाग्यो म्हारो मनाँ॥