अमरोहा उत्तरी भारत के पश्चिमोत्तर उत्तर प्रदेश राज्य में मुरादाबाद जिले के पश्चिम-पश्चिमोत्तर में, सोत नदी के किनारे स्थित एक तहसील तथा पुराना नगर है। अमरोहा तहसील का मैदान समतल है। इसमें से तीन छोटी छोटी नदियाँ बहती हैं। पूर्वी सीमा पर रामगंगा है।
स्थापना
"'अमरोहा नगर"' की स्थापना आज से लगभग 3,000 वर्ष पूर्व हस्तिनापुर के राजा अमरोहा ने की थी और संभवत: उन्हीं के नाम पर इस नगर का नाम भी अमरोहा पड़ा। कुछ विद्वानों के विचार से पृथ्वीराज की भगिनी अंबीरानी के नाम और तब से मुसलमानों के इतिहास में इसका उल्लेख बराबर मिलता है। अलाउद्दीन (1295-1315ई.) के समय में चंगेज़ खाँ ने इसपर आक्रमण किया था।
भौगोलिक स्थिति
"'अमरोहा नगर"' मुरादाबाद के उत्तर पश्चिम में लगभग 23 मील की दूरी पर और बान नदी के दक्षिण पश्चिम में लगभग चार मील पर है। यह अ. 28° 45¢ 40°¢¢ उ. तथा दे. 78° 31¢ 5¢¢ पू. पर स्थित है। यहाँ नगरपालिका है। तथा रेल मार्ग से यह मुरादाबाद व दिल्ली से जुड़ा हुआ है। भारत विभाजन के बाद यहाँ से काफी मुसलमान पाकिस्तान चले गए। नगर का वर्तमान क्षेत्रफल लगभग 397 एकड़ है।
ऐतिहासिक महत्व
"'अमरोहा"' का प्राचीन नाम अंबिकानगर कहा जाता है। अमरोहा पहले बड़ा नगर था। ऐतिहासिक अवशेषों की दृष्टि से अमरोहा मुरादाबाद जिले में सर्वप्रथम है। यहाँ 100 से भी अधिक मस्जिदें तथा लगभग 40 मंदिर हैं। पुराने जमाने के हिंदू राजाओं के बनवाए हुए कुएँ, तालाब, सेतु, किले आदि के अवशेष अभी भी दिखाई पड़ते हैं। नगर में यत्रतत्र मुसलमानी जमाने की बड़ी-बड़ी इमारतें ध्वंसोन्मुख अवस्था में खड़ी दिखाई देती हैं। अमरोहा मुसलमानों का तीर्थस्थान है। आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों के अलावा शेख सद्दू की मसजिद यहाँ की सबसे पुरानी इमारत है जो कभी हिंदुओं का मंदिर थी। आज की मस्जिद की दीवारों पर कहीं-कहीं हिंदू कला दिखाई देती है। हिंदू से मुस्लिम कला में परिवर्तन 1286 से 1288 के बीच कैकोबाद की राजसत्ता में हुआ। शेख सद्दू की अलौकिक शक्ति के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं, जिनपर विश्वास रखने वाले लोग रोगों से छुटकारा पाने के लिए यहाँ आते हैं। वर्तमान समय की बनी शाह वालियत की दरगाह भी मशहूर है जो उस फकीर की कब्र पर बनी है। इस दरगाह पर हिंदू मुसलमान दोनों धर्मावलंबियों की श्रद्धा है और प्रति वर्ष लाखों यात्री इसका दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। इसके अतिरिक्त और कई फकीरों की दरगाहें भी यहाँ हैं।
उद्योग
"'अमरोहा"' के निजी उद्योगों में चीनी मिट्टी के बर्तन का निर्माण बहुत ही प्रसिद्ध हैं, तथा यहाँ कृषि उत्पादों की मंडी होने के साथ-साथ मुख्यतः हथकरघा वस्त्र, मिट्टी के बर्तन उद्योग व चीनी की मिलें हैं। गृह-उद्योग-प्रतियोगिता में अमरोहा के बने कप, प्लेट, फूलदानी, खाने की थाली इत्यादि कई बार राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत हुई हैं। इनके अतिरिक्त लकड़ी के छोटे मोटे काम तथा कपड़ा बुनने का उद्योग भी यहाँ विकसित है। यहाँ साल में दो बड़े बड़े मेले लगते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 203 |
बाहरी कड़ियाँ
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