चम्पक रमन पिल्लई
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पूरा नाम | चम्पक रमन पिल्लई |
अन्य नाम | चम्पक |
जन्म | 15 सितम्बर, 1891 |
जन्म भूमि | तिरुवनंतपुरम, केरल, आज़ादी पूर्व |
मृत्यु | 26 मई, 1934 |
मृत्यु स्थान | जर्मनी |
अभिभावक | पिता- चिन्नास्वामी पिल्लई माता- नागम्मल |
कर्म भूमि | जर्मनी |
प्रसिद्धि | राजनैतिक कार्यकर्ता और क्रांतिकारी |
अन्य जानकारी | प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चम्पक रमन पिल्लई ने ‘इंटरनेशनल प्रो इंडिया कमेटी’ की स्थापना की। इसका मुख्यालय ज्यूरिख में रखा गया था। |
चम्पक रमन पिल्लई (अंग्रेज़ी: Chempaka Raman Pillai, जन्म- 15 सितम्बर, 1891; मृत्यु- 26 मई, 1934) भारतीय राजनैतिक कार्यकर्ता और क्रांतिकारी थे। हालाँकि उनका जन्म भारत में हुआ था पर उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर भाग जर्मनी में बिताया। उनका नाम उन महान क्रांतिकारियों में शामिल है जिन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर देश की आजादी के लिए प्राण गंवा दिए। वे एक ऐसे वीर थे जिन्होंने विदेश में रहते हुए भारत की आज़ादी की लड़ाई को जारी रखा और एक विदेशी ताकत के साथ मिलकर भारत में अंग्रेजी हुकुमत का सफाया करने की कोशिश की। दुर्भाग्य है कि आज उनको बहुत कम लोग ही याद करते हैं, पर ये देश चम्पक रमन पिल्लई की कुर्बानी का सदैव आभारी रहेगा।
प्रारंभिक जीवन
चम्पक रमन पिल्लई का जन्म 15 सितम्बर, 1891 को त्रावनकोर राज्य के तिरुवनंतपुरम में एक सामान्य माध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चिन्नास्वामी पिल्लई और माता का नाम नागम्मल था। उनके पिता तमिल थे पर त्रावनकोर राज्य में पुलिस कांस्टेबल की नौकरी के कारण तिरुवनंतपुरम में ही बस गए थे। उनकी प्रारंभिक और हाई स्कूल की शिक्षा थैकौड़ (तिरुवनंतपुरम) के मॉडल स्कूल में हुई थी। चम्पक जब स्कूल में थे तब उनका परिचय एक ब्रिटिश जीव वैज्ञानिक सर वाल्टर स्ट्रिकलैंड से हुआ, जो अक्सर वनस्पतिओं के नमूनों के लिए तिरुवनंतपुरम आते रहते थे। ऐसे ही एक दौरे पर उन्होंने चम्पक और उसके चचेरे भाई पद्मनाभा पिल्लई को साथ आने का निमंत्रण दिया और वे दोनों उनके साथ हो लिए। पद्मनाभा पिल्लई तो कोलम्बो से ही वापस आ गया पर चम्पक सर वाल्टर स्ट्रिकलैंड के साथ यूरोप पहुँच गए। वाल्टर ने उनका दाखिला ऑस्ट्रिया के एक स्कूल में करा दिया जहाँ से उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की।[1]
यूरोप में जीवन
स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद चम्पक रमन पिल्लई ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए एक तकनिकी संस्थान में दाखिला ले लिया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ‘इंटरनेशनल प्रो इंडिया कमेटी’ की स्थापना की। इसका मुख्यालय ज्यूरिख में रखा गया। लगभग इसी समय जर्मनी के बर्लिन शहर में कुछ प्रवासी भारतीयों ने मिलकर ‘इंडियन इंडिपेंडेंस कमेटी’ नामक एक संस्था बनायी थी। इस दल के सदस्य थे वीरेन्द्रनाथ चटोपाध्याय, भूपेन्द्रनाथ दत्त, ए. रमन पिल्लई, तारकनाथ दास, मौलवी बरकतुल्लाह, चंद्रकांत चक्रवर्ती, एम.प्रभाकर, बिरेन्द्र सरकार और हेरम्बा लाल गुप्ता।
अक्टूबर 1914 में चम्पक रमन पिल्लई बर्लिन चले गए और बर्लिन कमेटी में सम्मिलित हो गए और इसका विलय ‘इंटरनेशनल प्रो इंडिया कमेटी’ के साथ कर दिया। इस कमेटी का मकसद था यूरोप में भारतीय स्वतंत्रता से जुड़ी हुई सभी क्रांतिकारी गतिविधियों पर निगरानी रखना। लाला हरदयाल को भी इस आन्दोलन में शामिल होने के लिए राजी कर लिया गया। जल्द ही इसकी शाखाएं अम्स्टरडैम, स्टॉकहोम, वाशिंगटन, यूरोप और अमेरिका के दूसरे शहरों में भी स्थापित हो गयीं।
'जय हिन्द' का नारा
जर्मनी ने कमेटी के ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों को हर तरह की मदद प्रदान की। चम्पक रमन पिल्लई ने ए. रमन पिल्लई के साथ मिलकर कमेटी में काम किया। बाद में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस चम्पक रमन पिल्लई से मिले। ऐसा माना जाता है कि ‘जय हिन्द’ नारा चम्पक रमन पिल्लई के दिमाग की ही उपज थी। प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की हार के बाद पिल्लई जर्मनी में ही रहे। बर्लिन की एक फैक्ट्री में उन्होंने एक तकनिसियन की नौकरी कर ली थी। जब नेताजी विएना गए, तब पिल्लई ने उनसे मिलकर अपने योजना के बारे में उन्हें बताया।[1]
विदेश मंत्री
राजा महेंद्र प्रताप और मोहम्मद बरकतुल्लाह ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में भारत की एक अस्थायी सरकार की स्थापना 1 दिसम्बर 1915 को की थी। महेंद्र प्रताप इसके राष्ट्रपति थे और बरकतुल्लाह प्रधानमंत्री। चम्पक रमन पिल्लई को इस सरकार में विदेश मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था। दुर्भाग्यवश प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी के हार के साथ अंग्रेजों ने इन क्रांतिकारियों को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकाल दिया। इस दौरान जर्मनी के अधिकारी अपने निजी स्वार्थ के लिए भारतीय क्रांतिकारियों की सहायता कर रहे थे। हालाँकि भारतीय क्रांतिकारियों ने जर्मन अधिकारियों को ये साफ़ कर दिया था कि दुश्मन के खिलाफ लड़ाई में वे सहभागी हैं, पर जर्मनी के अधिकारी भारतीय क्रांतिकारियों के ख़ुफ़िया तंत्र को अपने फायदे के लिए उपयोग करना चाहते थे।
विवाह और मृत्यु
सन 1931 में चम्पक रमन पिल्लई ने मणिपुर की लक्ष्मीबाई से विवाह किया। उन दोनों की मुलाकात बर्लिन में हुई थी। दुर्भाग्यवस विवाह के उपरान्त चम्पक बीमार हो गए और इलाज के लिए इटली चले गए। ऐसा माना जाता है कि उन्हें जहर दिया गया था। बीमारी से वे उबर नहीं पाए और 28 मई 1934 को बर्लिन में उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई उनकी अस्थियों को बाद में भारत लेकर आयीं, जिन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ कन्याकुमारी में प्रवाहित कर दिया गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 चम्पक रमन पिल्लई (हिंदी) itshindi.com। अभिगमन तिथि: 25 नवंबर, 2021।
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