जावेद अख़्तर
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पूरा नाम | जावेद जान निसार अख़्तर |
अन्य नाम | जावेद साहब |
जन्म | 17 जनवरी, 1945 |
जन्म भूमि | ग्वालियर, मध्य प्रदेश |
अभिभावक | श्री जान निसार अख़्तर और श्रीमती सफिया अख़्तर |
पति/पत्नी | हनी ईरानी और शबाना आज़मी |
संतान | फ़रहान अख़्तर और ज़ोया अख़्तर |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कवि, गीतकार और पटकथा लेखक |
मुख्य फ़िल्में | ज़ंजीर, दीवार, शोले, त्रिशूल, शान, शक्ति आदि। |
शिक्षा | स्नातक |
विद्यालय | साफिया कॉलेज, भोपाल |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री, पद्म भूषण, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (5) और फ़िल्मफेयर पुरस्कार (7) |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्ध गीत | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा (1942 ए लव स्टोरी), घर से निकलते ही (पापा कहते हैं), संदेशे आते हैं (बार्डर), तेरे लिए (वीर जारा) |
अद्यतन | 16:19, 8 फ़रवरी 2013 (IST)
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जावेद अख़्तर (अंग्रेज़ी: Javed Akhtar, जन्म: 17 जनवरी, 1945) एक कवि, गीतकार और पटकथा लेखक के रूप में भारत की जानी मानी हस्ती हैं। पटकथा लेखक के रूप में जावेद अख़्तर ने सलीम खान के साथ मिलकर बॉलीवुड की सबसे कामयाब फ़िल्मों की पटकथा लिखी है। सलीम जावेद की जोड़ी की लिखी फ़िल्मों ने अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता को एक अलग पहचान दिलाई। जावेद अख़्तर ने शोले, दीवार, ज़ंजीर, त्रिशूल, जैसी फ़िल्मों की पटकथा लिखी। सन 2007 में इन्हें कला क्षेत्र में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
जीवन परिचय
इनका जन्म 17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ था। पिता जान निसार अख़्तर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि और माता सफिया अख़्तर मशहूर उर्दू लेखिका तथा शिक्षिका थीं। इनके बचपन का नाम 'जादू जावेद अख़्तर' था। बचपन से ही शायरी से जावेद अख़्तर का गहरा रिश्ता था। उनके घर शेरो-शायरी की महफिलें सजा करती थीं जिन्हें वह बड़े चाव से सुना करते थे। जावेद अख़्तर ने ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव को बहुत क़रीब से देखा था, इसलिए उनकी शायरी में ज़िंदगी के फसाने को बड़ी शिद्दत से महसूस किया जा सकता है।
शिक्षा
जावेद अख़्तर के जन्म के कुछ समय के बाद उनका परिवार लखनऊ आ गया। जावेद अख़्तर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ कॉल्विन ताल्लुकेदार कॉलेज से पूरी की। कुछ समय तक लखनऊ रहने के बाद जावेद अख़्तर अलीगढ़ आ गए, जहां वह अपनी खाला के साथ रहने लगे। वर्ष 1952 में जावेद अख़्तर को गहरा सदमा पहुंचा जब उनकी माँ का इंतकाल हो गया। जावेद अख़्तर ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा भोपाल के “साफिया कॉलेज” से पूरी की, लेकिन कुछ दिनों के बाद उनका मन वहां नहीं लगा और वह अपने सपनों को नया रूप देने के लिए वर्ष 1964 में मुंबई आ गए।[1]
सिने कैरियर
मुंबई पहुंचने पर जावेद अख़्तर को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मुंबई में कुछ दिनों तक वह महज 100 रुपये के वेतन पर फ़िल्मों मे डॉयलाग लिखने का काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई फ़िल्मों के लिए डॉयलाग लिखे, लेकिन इनमें से कोई फ़िल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हुई। इसके बाद जावेद अख़्तर को अपना फ़िल्मी कैरियर डूबता नजर आया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना संघर्ष जारी रखा। धीरे-धीरे मुंबई में उनकी पहचान बनती गई।
ज़ंजीर से बदली क़िस्मत
वर्ष 1973 में उनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा से हुई जिनके लिए उन्होंने फ़िल्म “ज़ंजीर” के लिए संवाद लिखे। फ़िल्म ज़ंजीर में उनके द्वारा लिखे गए संवाद दर्शकों के बीच इस कदर लोकप्रिय हुए कि पूरे देश में उनकी धूम मच गई। इसके साथ ही फ़िल्म के जरिए फ़िल्म इंडस्ट्री को अमिताभ बच्चन के रूप में सुपर स्टार मिला। इसके बाद जावेद अख़्तर ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक फ़िल्मों के लिए संवाद लिखे। जाने माने निर्माता-निर्देशक रमेश सिप्पी की फ़िल्मों के लिए जावेद अख़्तर ने जबरदस्त संवाद लिखकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके संवाद के कारण ही रमेश सिप्पी की ज्यादातार फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं। इन फ़िल्मों में ख़ासकर “सीता और गीता”( 1972), “शोले” (1975), “शान” (1980), “शक्ति” (1982) और “सागर” (1985) जैसी सफल फ़िल्में शामिल हैं। रमेश सिप्पी के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता-निर्देशकों में यश चोपड़ा, प्रकाश मेहरा प्रमुख रहे हैं।[1]
सलीम-जावेद
मुंबई में उनकी मुलाकात सलीम खान से हुई, जो फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर संवाद लेखक अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। इसके बाद जावेद अख़्तर और सलीम खान संयुक्त रूप से काम करने लगे। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फ़िल्म “अंदाज़” की कामयाबी के बाद जावेद अख़्तर कुछ हद तक बतौर संवाद लेखक फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। फ़िल्म “अंदाज़” की सफलता के बाद जावेद अख़्तर और सलीम खान को कई अच्छी फ़िल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। इन फ़िल्मों में “हाथी मेरे साथी”, “सीता और गीता”, “ज़ंजीर” और “यादों की बारात” जैसी फ़िल्में शामिल हैं। वर्ष 1980 में सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गई। इसके बाद भी जावेद अख़्तर ने फ़िल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा।[1]
विवाह
फ़िल्म “सीता और गीता” के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात हनी ईरानी से हुई और जल्द ही जावेद अख़्तर ने हनी ईरानी से निकाह कर लिया। हनी इरानी से उनके दो बच्चे फ़रहान अख़्तर और ज़ोया अख़्तर हुए लेकिन हनी ईरानी से उन्होंने तलाक लेकर साल 1984 में प्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना आज़मी से दूसरा विवाह किया।
सम्मान और पुरस्कार
- फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार
- वर्ष 1994 में प्रदर्शित फ़िल्म “1942 ए लव स्टोरी” के गीत एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा.. के लिए
- वर्ष 1996 में प्रदर्शित फ़िल्म 'पापा कहते हैं' के गीत घर से निकलते ही..(1997) के लिए
- फ़िल्म 'बार्डर' के गीत संदेशे आते हैं…2000) के लिए
- फ़िल्म 'रिफ्यूजी' के गीत पंछी नदिया पवन के झोंके.. (2001) के लिए
- फ़िल्म 'लगान' के सुन मितवा.. (2003) के लिए
- फ़िल्म 'कल हो ना हो' (2004) कल हो ना हो के लिए
- फ़िल्म 'वीर जारा' के तेरे लिए…के लिए
- नागरिक सम्मान
- राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ गीतकार)
- वर्ष 1996 में फ़िल्म 'साज'
- वर्ष 1997 में 'बार्डर'
- वर्ष 1998 में 'गॉड मदर'
- वर्ष 2000 में फ़िल्म 'रिफ्यूजी'
- वर्ष 2001 में फ़िल्म 'लगान'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 जावेद अख़्तर : शब्द शिल्पी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 8 फ़रवरी, 2013।