पार्वती देवी पर्वतराज हिमावन और मेना की कन्या हैं। मैना और हिमावन ने आदिशक्ति के वरदान से आदिशक्ति को कन्या के रूप में प्राप्त किया। उसका नाम पार्वती रखा गया। वह भूतपूर्व सती तथा आदिशक्ति थी। इन्हीं को उमा, गिरिजा और शिवा भी कहते हैं।
पार्वती ने शिव जी को वरण करने के लिए कठिन तपस्या की थी और अंत में नारद के परामर्श से ये उनसे ब्याही गई। इन्हीं के पुत्र कार्तिकेय ने तारक का वध किया था। स्कंद पुराण[1] के अनुसार ये पहले कृष्णवर्ण थीं किंतु अनरकेश्वर तीर्थ में स्नान कर शिवलिंग की दीपदान करने से, बाद में गौर वर्ण की हो गईं। पर्वतकन्या एवं पर्वतों की अधिष्ठातृ देवी होने के कारण इनका पार्वती नाम पड़ा। ये नृत्य के दो मुख्य भेदों में मृदु अथवा लास्य की आदिप्रवर्तिका मानी जाती हैं।
जन्म
सती के आत्मदाह के उपरांत विश्व शक्तिहीन हो गया। उस भयावह स्थिति से त्रस्त महात्माओं ने देवी की आराधना की। तारक नामक दैत्य सबको परास्त कर त्रैलोक्य पर एकाधिकार जमा चुका था। ब्रह्मा ने उसे शक्ति भी दी थी और यह भी कहा था कि शिव के औरस पुत्र के हाथों मारा जायेगा। शिव को पत्नीहीन देखकर तारक आदि दैत्य प्रसन्न थे। देवतागण देवी की शरण में गये। देवी ने हिमालय की एकांत साधना से प्रसन्न होकर देवताओं से कहा- हिमवान के घर में मेरी शक्ति गौरी के रूप में जन्म लेगी। शिव उससे विवाह करके पुत्र को जन्म देंगे, जो तारक वध करेगा।'
विवाह संबंधी दो कथाएं
- पार्वती ने स्वयंवर में शिव को न देखकर स्मरण किया और वे आकाश में प्रकट हुए। पार्वती ने उन्हीं का वरण किया।
- हिमवान का पुरोहित पार्वती की इच्छा जानकर शिव के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुँचा। शिव ने अपनी निर्धनता इत्यादि की ओर संकेत कर विवाह के औचित्य पर पुन: विचारने को कहा। पुरोहित के पुन: आग्रह पर वे मान गये। शिव ने पुरोहित और नाई को विभूति प्रदान की। नाई ने वह मार्ग में फेंक दी और पुरोहित पर बहुत रुष्ट हुआ कि वह बैल वाले अवधूत से राजकुमारी का विवाह पक्का कर आया है। नाई ने ऐसा ही कुछ जाकर राजा से कह सुनाया। पुरोहित का घर विभूति के कारण धन-धान्य रत्न आदि से युक्त हो गया। नाई उसमें से आधा अंश मांगने लगा तो पुरोहित ने उसे शिव के पास जाने की राय दी। शिव ने उसे विभूति नहीं दी। नाई से शिव की दारिद्रय के विषय में सुनकर राजा ने संदेश भेजा कि वह बारात में समस्त देवी-देवताओं सहित पहुँचें। शिव हँस दिये और राजा के मिथ्याभिमान को नष्ट करने के लिए एक बूढ़े का वेश धारण करके, नंदी का भी बूढ़े जैसा रूप बनाकर हिमवान की ओर बढ़े। मार्ग में लोगों को यह बताने पर कि वे शिव हैं और पार्वती से विवाह करने आये हैं, स्त्रियों ने घेरकर उन्हें पीटा। स्त्रियाँ नोच, काट, खसोटकर चल दीं और शिव ने मुस्कराकर अपनी झोली में से निकालकर ततैये उनके पीछे छोड़ दिये। उनका शरीर ततैयों के काटने से सूज गया। शुक्र और शनीचर दुखी हुए पर शिव हँसते रहे। मां-बाप को उदास देखकर पार्वती ने विजया नामक सखी को बुलाकर शिव तक पहुँचाने के लिए एक पत्र दिया जिसमें प्रार्थना की कि वे अपनी माया समेटकर पार्वती के अपमान का हरण करें। पार्वती की प्रेरणा से हिमवान शिव की अगवानी के लिए गये। उन्हें देख शुक्र और शनीचर भूख से रोने लगे। हिमवान उन्हें साथ ले गये। एक ग्रास में ही उन्होंने बारात का सारा भोजन समाप्त कर दिया। जब हिमवान के पास कुछ भी शेष नहीं रहा तब शिव ने उन्हें झोली से निकालकर एक-एक बूटी दी और वे तृप्त हो गये। हिमवान पुन: अगवानी के लिए गये तो उनका अन्न इत्यादि का भंडार पूर्ववत् हो गया। समस्त देवताओं से युक्त बारात सहित पधारकर शिव ने गिरिजा से विवाह किया। [2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्कंद पुराण (5/1/30
- ↑ शिव पुराण, पूर्वार्द्ध 3।8।30।
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