यम | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- यम (बहुविकल्पी) |
- रोमन मिथक कथाओं के अनुसार प्लूटो (ग्रीक मिथक में हेडस) पाताल का देवता है। इस नाम के पीछे दो कारण है, एक तो यह कि सूर्य से काफ़ी दूर होने की वजह से यह एक अंधेरा ग्रह (पाताल) है, दूसरा यह कि प्लूटो का नाम PL से शुरू होता है जो इसके अन्वेषक पर्सीयल लावेल के आद्याक्षर है।[1]
- प्लूटो (अंग्रेज़ी:- Pluto) की खोज की एक लम्बी कहानी है। कुछ गणनाओ के आधार पर यूरेनस और नेप्च्यून की गति में एक विचलन पाया जाता था। इस आधार पर एक ‘क्ष’ ग्रह (Planet X) की भविष्यवाणी की गयी थी, जिसके कारण यूरेनस और नेप्च्यून की गति प्रभावित हो रही थी। अंतरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डबल्यू टोमबौघ इस ‘क्ष’ ग्रह की खोज में आकाश छान मारा और 1930 में प्लूटो खोज निकाला। लेकिन प्लूटो इतना छोटा निकला कि यह नेप्च्यून और यूरेनस की गति पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता है। ‘क्ष’ ग्रह की खोज जारी रही। बाद में वायेजर 2 से प्राप्त आँकडों से जब नेप्च्यून और यूरेनस की गति की गणना की गयी तब यह विचलन नहीं पाया गया। इस तरह ‘क्ष’ ग्रह की सारी संभावनाएँ समाप्त हो गयी।
- नयी खोजों से अब हम जानते है कि प्लूटो के बाद भी सूर्य की परिक्रमा करने वाले अनेक पिंड है लेकिन उनमें कोई भी इतना बड़ा नहीं है जिसे ग्रह का दर्जा दिया जा सके। इसका एक उदाहरण हाल ही मेखोज निकाला गया बौना ग्रह जेना है।
- बौने ग्रह प्लूटो पृथ्वी से लगभग 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर दूर स्थित प्लूटो का एक दिन धरती के 6.4 दिनों के बराबर होता है और पृथ्वी के 248.5 साल के बराबर इसका एक साल होता है, क्योंकि यह 248.5 साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है। 1500 मील से कम व्यास वाला प्लूटो सौरमंडल के बाहरी किनारे पर स्थित है।
- प्लूटो सामान्यतः नेप्च्यून (वरुण ग्रह) की कक्षा के बाहर सूर्य की परिक्रमा करता है लेकिन इसकी कक्षा नेप्च्यून की कक्षा के अंदर से होकर गुजरती है। जनवरी 1979 से फ़रवरी 1999 तक इसकी कक्षा नेप्च्यून की कक्षा के अंदर थी। यह अन्य ग्रहों के विपरीत दिशा में सूर्य की परिक्रमा करता है। इसका घूर्णन अक्ष भी यूरेनस (अरुण ग्रह) की तरह इसके परिक्रमा प्रतल से लंबवत है, दूसरे शब्दों में यह भी सूर्य की परिक्रमा लुढकते हुये करता है। इसकी कक्षा की एक और विशेषता यह है कि इसकी कक्षा अन्य ग्रहों की कक्षा के प्रतल से लगभग 15 अंश के कोण पर है।
- यम ग्रह की और नेप्च्यून के चन्द्रमा ट्राइटन की असामान्य कक्षाओं के कारण इन दोनों में किसी ऐतिहासिक रिश्ते का अनुमान है। एक समय यह भी अनुमान लगाया गया था कि प्लूटो नेप्च्यून का भटका हुआ चन्द्रमा है। एक अन्य अनुमान यह है कि ट्राइटन यह प्लूटो की तरह स्वतंत्र था लेकिन बाद में नेप्च्यून के गुरुत्वाकर्षण की चपेट में आ गया।
- प्लूटो तक अभी तक कोई अंतरिक्ष यान नहीं गया है। एक यान 'न्यू हारीझोंस' जिसे जनवरी 2006 में छोड़ा गया है लगभग 2015 तक प्लूटो तक पहुंचेगा।
- प्लूटो पर तापमान -235 सेल्सियस और -210 सेल्सियस के मध्य रहता है। इसकी संरचना अभी तक ज्ञात नहीं है। इसका घनत्व 2 ग्राम / घन सेमी होने से अनुमान है कि इसका 70% भाग सीलीका और 30% भाग पानी की बर्फ़ से बना होनी चाहिये। सतह पर हाइड्रोजन, मिथेन, इथेन और कार्बन मोनोक्साईड की बर्फ़ का संभावना है।
- प्लूटो के तीन उपग्रह भी है, शेरॉन, निक्स और हायड्रा निक्स का व्यास लगभग 60 किमी और हायड्रा का व्यास लगभग 200 किमी अनुमानित है जबकि प्लूटो का व्यास 2274 किमी अनुमानित है।
- प्लूटो की अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा हब्बल दूरबीन से ली गई तस्वीरों से पता चलता है कि इसकी सतह में मौसम संबंधी मौसम और वायुमंडल में काफ़ी बदलाव हो रहे हैं और इसकी चमक भी बदल रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार प्लूटो पहले से कहीं अधिक लाल हो गया है और इसका उत्तरी गोलार्ध भी चमकदार हो रहा है। इसमें दिखे हालिया परिवर्तन के बारे में नासा का कहना है कि प्लूटो के रंग में यह नाटकीय बदलाव 2000 - 02 के बीच आया है। वैज्ञानिक अब 1994 में ली गई प्लूटो की तस्वीरों की तुलना 2002 और 2003 में ली गई तस्वीरों से करने जा रहे हैं, ताकि वहाँ के मौसम और वायुमंडल में आए बदलाव के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा सबूत मिल सकें। साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीटयूट, कोलोराडो के विज्ञानी मार्क बुआई का कहना है कि तस्वीरों से खगोलशास्त्रियों को प्लूटो की पिछले तीन दशक की यात्रा को समझने में मदद मिली है। उनका कहना है कि हब्बल से ली गई तस्वीरों की मदद से ही प्लूटो के मौसम में हो रहे बदलाव के बारे में पता चल सका।
- सौरमंडल के अंतिम छोर पर मौजूद बर्फीला दुनिया प्लूटो हैं। प्लूटो के वातावरण के बारे में बेहद महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ सामने आई हैं। हमें पहली बार प्लूटो के वातावरण की झलक मिली है। प्लूटो का वायुमंडल मिथेन से भरपूर है, जैसे कि पृथ्वी का वातावरण ऑक्सीजन से। प्लूटो के वायुमंडल में मिथेन के साथ नाइट्रोजन और कार्बन मोनो ऑक्साइड के कुछ अंश भी मौजूद हैं। ख़ास बात ये कि प्लूटो की ज़मीन के मुकाबले वातावरण का तापमान 40 डिग्री ज़्यादा है। लेकिन इसके बावजूद प्लूटो एक ऐसी दुनिया है जो डीप फ्रिज जैसे हालात में है। यहाँ का सतह का तापमान शून्य से 220 डिग्री सेंटीग्रेड नीचे है। प्लूटो के वातावरण की ये नई झलक दिखाई है चिली में मौजूद ला-सिला-पैरानल ऑब्जरवेटरी के यूरोपियन ऑर्गेनाईजेशन फॉर एस्ट्रोनॉमिकल रिसर्च इन द साउदर्न हेमिस्फियर सेंटर ने।
प्लूटो का नामकरण
ऐसे पड़ा था नाम
सन 1930 की बात है जब 11 साल की एक बच्ची वेनेशिया फेयर / वेनिटा बर्नी ने नाश्ते की टेबल पर अपने दादाजी फल्कोनर मदान को प्लूटो नाम का सुझाव दिया था। दरअसल उसी वक्त वेनेशिया के दादाजी 'द टाइम्स' अखबार पढ़ रहे थे, जिसमें यह खबर छपी थी कि सौरमंडल में एक नया ग्रह खोजा गया है जिसका नाम तय नहीं हो पा रहा था। वेनेशिया के दादाजी ने उससे इस बात की चर्चा की। तभी वेनेशिया को टेलीफिल्म नेमिंग प्लूटो की याद आई और उसने कहा कि इस नए ग्रह का नाम प्लूटो रख देना चाहिए।
कमेटी के सामने रखा नाम
प्लूटो की खोज के बाद लॉवेल वेधशाला ने दुनियाभर के विज्ञान जिज्ञासुओं से इस ग्रह का नाम रखने के लिए विकल्प मांगे। वेनेशिया के दादाजी जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की बौडलियन लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन पद से रिटायर हुए थे, ने प्लूटो नाम को रॉयल एस्ट्रोनोमिकल सोसाइटी की मीटिंग में रखवाया। इस मीटिंग में नए ग्रह का नाम तय किया जाना था। उनके दादाजी ने ऑक्सफोर्ड में एस्ट्रोनॉमी के प्रोफेसर हर्बर्ट हॉल टर्नर को अपनी पोती का बताया हुआ नाम सुझाया। प्रोफेसर ने इस नाम को क्लाइड डबल्यू टोमबौघ के सामने रखा, जिन्होंने इस ग्रह की खोज की थी। एक हज़ार से अधिक विकल्प मिलने के बाद मिनर्वा, क्रोनस और प्लूटो तीन नामों का चयन किया गया। इसके बाद नाम को अंतिम रूप प्रदान करने के लिए मतदान कराया गया जिसका नतीजा प्लूटो शब्द के पक्ष में रहा। आखिरकर कमेटी ने 1 मई 1930 को नए ग्रह का नाम प्लूटो सार्वजनिक तौर पर घोषित कर दिया। इससे खुश हुए दादाजी फल्कोनर ने वेनेशिया को 5 पाउंड का नोट बतौर ईनाम भी दिया था। चूंकि यह ग्रह 18 फ़रवरी को खोजा गया था, इसीलिए इस दिन को प्लूटो दिवस के रूप में जाना जाता है।
माइथोलॉजी थी पसंद
वेनेशिया फेयर खगोल विज्ञान (एस्ट्रोनॉकी)' में काफ़ी दिलचस्पी रखती थीं पर वो माइथोलॉजी की छात्रा थीं और ग्रीक माइथोलॉजी में प्रचलित अंडरवर्ल्ड के देवता प्लूटो के बारे में भी जानकारी रखती थीं। वह ऑक्सफोर्ड, इंग्लैण्ड की स्कूली छात्र थी। 30 अप्रैल 2009 को 90 वर्ष की उम्र में वेनेशिया फेयर का निधन हो गया। संयोग की बात है कि उनका निधन प्लूटो के नाम को रखे जाने वाले दिन के ठीक एक दिन पहले हुआ।
प्लूटो का ग्रह से बौने ग्रह बनने का सफर
- प्लूटो सूर्य का नौंवा ग्रह हुआ करता था लेकिन वैज्ञानिकों ने ग्रह का दर्जा छीन लिया है और अब हमारे सौरमंडल में नौ के बजाय सिर्फ़ आठ ग्रह -- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, वरुण और अरुण ही ग्रह रह गए हैं। यह इतना छोटा है कि सौरमंडल के सात चन्द्रमा ( हमारे चन्द्रमा सहित) इससे बड़े है। प्लूटो से बड़े अन्य चन्द्रमा है, गुरु के चन्द्रमा आयो, युरोपा, गीनीमेड और कैलीस्टो; शनि का चन्द्रमा टाइटन और नेप्च्यून का ट्राइटन। इसकी कक्षा का वृत्ताकार नहीं होना। वरुण की कक्षा को काटना। इस वजह से इसे ग्रह का दर्जा देना हमेशा विवादों के घेरे में रहा।
- 1930 में प्लूटो की खोज से लेकर अगस्त 2006 तक अर्थात 76 वर्ष तक इसे हमारे सौरमंडल का नौवां ग्रह होने का गौरव हासिल था। लेकिन 24 अगस्त 2006 को इससे वो गौरव छीन लिया गया। सभी ग्रहों, चंद्रमाओं और दूसरे आसमानी पिंडों की परिभाषाएं तय करने और उनके नाम निर्धारित करने वाली अतंरराष्ट्रीय अंतरिक्ष विज्ञान संघ (आई. ए. यू. / इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन) की चेक गणराज्य की राजधानी प्राग के बैठक में अगस्त 2006 में दुनियाभर 75 देशों के 2500 वैज्ञानिकों के साथ मिलकर बहस छेड़ी कि आखिर किसे हम ग्रह मानें और किसे नहीं? इस बहस की वजह ये थी कि सौरमंडल के बाहर लगातार नए पिंड खोजे जा रहे थे और ये तय करना बेहद ज़रूरी हो गया था कि आखिर एक ग्रह की परिभाषा क्या हो ? ग्रहों की परिभाषा को तय करने की ये बहस एक हफ्ते तक चली और इस बहस में एक मौक़ा ये भी आया कि हमारा चंद्रमा भी ग्रह के ओहदे का दावेदार बन गया। इस बहस का अंत ड्वार्फ प्लेनेट्स यानि क्षुद्र ग्रहों के एक नए वर्ग के साथ हुआ। ये स्वीकार किया गया कि हमारे सौरमंडल में ग्रह और चंद्रमाओं के साथ बौने ग्रह यानि ड्वार्फ प्लेनेट्स भी हैं। प्लूटो ग्रह की परिभाषा पर खरा नहीं उतरा और इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने प्लूटो को ग्रह का दर्जा दिए जाने को एतिहासिक भूल मानते हुए प्लूटो को ड्वार्फ प्लेनेट (Dwarf Planet) यानि बौने ग्रह का दर्जा दिया। इस तरह हमारा सौरमंडल एकबार फिर तय किया गया और अंतिम रूप से घोषित किया गया कि हमारे सौरमंडल में ग्रहों की संख्या 9 नहीं बल्कि 8 है। आईएयू ने प्लूटो का नया नाम 134340 रखा है और पहली बार ग्रह की ऐसी परिभाषा तय की गई है, जिसमें ग्रहों के चयन को लेकर साफ-साफ बात कही गई है। ग्रह की नयी परिभाषा में सौरमंडल के किसी पिंड के ग्रह होने के लिए तीन मानक तय किए गए हैं, इसके मुताबिक़ --
- ऐसा ठोस अंतरिक्ष पिंड जो इतना बड़ा ज़रूर हो कि अपने गुरुत्व बल के कारण इसका आकार लगभग गोलाकार हो जाए।
- सूर्य की परिक्रमा करता हो।
- इसमें इतना ज़ोर हो कि ये बाक़ी पिंडों से अलग अपनी स्वतंत्र कक्षा बना सके, साथ ही, इसकी कक्षा पड़ोसी ग्रह के रास्ते में नहीं होनी चाहिए। इसमे तीसरी अपेक्षा पर प्लूटो खरा नहीं उतरता है, क्योंकि सूर्य की परिक्रमा के दौरान इसकी कक्षा पड़ोसी नेप्चून की कक्षा से टकराती (काटती) है।
- आईएयू वैज्ञानिकों का यह सम्मेलन जब शुरू हुआ, तो कहा जा रहा था कि सीरीस, कैरन और 2003 यूबी - 313 को भी ग्रह माना जा सकता है। ऐसा होता तो हमारे सौरमंडल में एक दर्जन ग्रह हो जाते। इनमें से कैरन प्लूटो का चंद्रमा है। लेकिन इसके बाद क़रीब 12 और अंतरिक्ष पिंडों को ग्रह का दर्जा देने की दावेदारी की जा सकती थी। आखिरकार 75 देशों के वैज्ञानिकों ने जो परिभाषा चुनी इससे यह सारा विवाद ही खत्म हो गया है। आईएयू विशेषज्ञों के बीच कराए गए मतदान में अधिकांश ने प्लूटो को ग्रह मानने से इंकार कर दिया था और ग्रहों की संख्या बढ़ा कर 12 करने और तीन क्षुद्र ग्रहों सेरेस, चैरन और 2003 यूबी 313 को इनमें शामिल करने के प्रस्ताव का जम कर विरोध हुआ था। आईएयू की ग्रहों पर गठित विशेषज्ञ समिति की अगुआई कर रहे वैज्ञानिक इवान विलियम्स ने कहा,
"मेरी आँखों में आज आँसू छलक पड़े हैं. हाँ, पर हमें तो सौरमंडल की वास्तविकता बतानी होगी न कि हम जैसा चाहते हैं वो बताएँ।" कैंब्रिज के 'इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोनामी' से संबद्ध रॉबिन कैचपॉल का कहना था, "मेरी अपनी राय तो ये थी कि पुरानी व्यवस्था को यथावत रखा जाए, लेकिन नए ग्रहों को शामिल करने का मतलब था और भ्रम की स्थिति क़ायम करना।"
- प्लूटो की स्थिति को लेकर चल रहा विवाद दशकों पुराना है और इसकी शुरुआत तब हुई जब यह पता चला कि प्लूटो सौर मंडल के बाकी आठ ग्रहों की तुलना में काफ़ी छोटा है और अपने आकार और सूर्य से दूरी की वजह से इस पर वैज्ञानिकों को ऐतराज रहा। कई खगोलविद प्लूटो को ग्रह मानने से इनकार करते हैं और उनका मानना है कि यह 'कुइपर बेल्ड' के पिंडों में से एक हो सकता है। इस बात को और तूल दिया कैलिफ़ोर्निया के खगोलशास्त्रियों ने जिनकी खोज ने सौरमंडल में प्लूटो को ग्रह के रूप में रखे जाने पर सवाल उठा दिए। 2006 में हुए इस शोध से पहली बार इस बात को सामने लाया गया कि सौरमंडल में सूर्य की परिक्रमा करने वाले कुछ खगोलीय पिंडों का आकार प्लूटो से बड़ा है।
- वैसे यह पहला मौक़ा नहीं है जब किसी से ग्रह का दर्जा छीना गया है। इससे पहले, 1801 में जब सीरीस को पहली बार खोजा गया था, तो उसे ग्रह के तौर पर लिया गया। लेकिन बाद में जब उसके आकार के बारे में विस्तार से पता चला, तो वह ग्रह नहीं रहा। उसे ऐस्टरॉयड और तारे जैसा पिंड भर मान लिया गया। इस बार अंतर यह है कि वैज्ञानिकों ने एक स्पष्ट परिभाषा तय की है, जिसके आधार पर ही ग्रह का दर्जा तय होगा। अब प्लूटो ग्रह नहीं रहने की सूरत में दुनिया भर के शैक्षिक संस्थानों में भौतिकी की किताब में संशोधन करना पड़ेगा क्योंकि अब तक बच्चों को ग्रहों के नौ नाम बताए जाते रहे हैं।
- वर्ष 2006 में जब आईएयू संस्था ने प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटाने का फैसला किया था तो इस पर पूरी दुनिया में बहुत शोर मचा था। लेकिन संस्था का कहना था कि ऐसा करना इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि खगोलशास्त्रीय दुनिया नई तकनीक, ख़ासकर नए तरह के टेलीस्कोप आने से बदल गई है और दूर की चीज़ें भी आसानी से देखी जा रही हैं। संस्था के वैज्ञानिकों का कहना था कि यदि ग्रहों और गैर-ग्रहों या क्षुद्र-ग्रहों के बीच अगर विभाजन रेखा ना खींची गई तो जल्दी ही सौर मंडल में 50 से ज़्यादा ग्रह हो जाएँगे।
- खगोलशास्त्रियों की अंतरराष्ट्रीय संस्था (आईएयू) ने प्लूटो को सौरमंडल के नौ ग्रहों से अलग करते हुए उससे ग्रह की पदवी छीन ली थी और कहा था कि उसमें ग्रह जैसे पूरे गुण नहीं हैं। अब खगोलशास्त्रियों ने उस जैसे कई गैर-ग्रहों के लिए एक नई श्रेणी बना दी है। इस नई श्रेणी का नाम दिया गया है 'प्लूटॉइड'। अब आईएयू ने ओस्लो में हुई एक बैठक के बाद कहा है कि नेप्च्यून के बाद या उससे दूर की कोई भी गोलाकार वस्तु होगी उसे 'प्लूटॉइड' कहा जाएगा। उल्लेखनीय है कि आईएयू ही वह संस्था है जो सभी खगोलकीय नामों और उनकी श्रेणियों को अंतिम रूप देती है। वैज्ञानिकों ने 'प्लूटॉइड' की श्रेणी में प्लूटो के अलावा इरिस को भी रखा है जो प्लूटो की तुलना में और दूर की कक्षा में रहते हुए सूर्य की परिक्रमा करता है। संस्था ने कहा है कि जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति करेगा और नई खोज होंगी, अन्य कई 'प्लूटॉइड' भी इसमें शामिल होते जाएँगे। 'प्लूटॉइड' की परिभाषा भी तय कर दी गई है और इसके लिए आकाशीय पिंड में गुरुत्वाकर्षण, गोलाकार होने जैसे गुणों के अलावा न्यूनतम चमक की शर्त भी रखी गई है। सेरेस को 'प्लूटॉइड' की श्रेणी में नहीं रखा गया है क्योंकि यह मंगल और गुरु ग्रहों के बीच स्थित है और यह 'प्लूटॉइड' की परिभाषा की शर्तें पूरी नहीं करता है। हालांकि कुछ वैज्ञानिक आईएयू की इस अवधारणा को खारिज करते हैं। प्लूटो के अभियान पर काम कर रहे नासा के वैज्ञानिक एलन स्टर्न कहते हैं कि वे इसे प्लूटॉइड कह लें या हेमेरॉइड्स, यह अप्रासंगिक ही बना रहेगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पाताल का देवता और मौत का नाविक (हिन्दी) (पी.एच.पी) अंतरिक्ष। अभिगमन तिथि: 7 फ़रवरी, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
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