विट्ठल भाई पटेल
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पूरा नाम | विट्ठलदास झवेरभाई पटेल |
जन्म | 27 सितम्बर, 1873 |
जन्म भूमि | नाडियाड, गुजरात |
मृत्यु | 22 अक्टूबर, 1933 |
मृत्यु स्थान | वियना |
अभिभावक | झवेरभाई पटेल और लाड़बाई |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | सरदार पटेल के बड़े भाई |
शिक्षा | वकालत |
विशेष योगदान | स्वराज्य पार्टी की स्थापना |
अन्य जानकारी | विट्ठलदास झवेरभाई पटेल महान् देशभक्त थे और भारत के अंग्रेज़ शासक भी उनसे डरते थे। |
विट्ठलदास झवेरभाई पटेल (अंग्रेज़ी: Vithaldas Jhaverbhai Patel, जन्म: 27 सितम्बर, 1873; मृत्यु: 22 अक्टूबर, 1933) भारत के प्रमुख राष्ट्रीय नेता और सरदार वल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई थे। अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही ये देश को आज़ादी दिलाने के कार्य में जुट गये।
परिचय
झवेरभाई पटेल का जन्म 27 सितम्बर, 1873 ई. को नाडियाड, गुजरात में हुआ था। 1905 ई. में इन्होंने अपनी बैरिस्टरी पूरी की और वकालत करने लगे, परन्तु शीघ्र ही भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में खिच आये। इन्होंने रौलट एक्ट के विरुद्ध भारत में प्रबल जन आंदोलन चलाया। इन्हें केन्द्रीय असेम्बली का सदस्य भी चुना गया, किन्तु कांग्रेस की असहयोग की नीति के अनुसार सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। बाद में ये स्वराज्य पार्टी में सम्मिलित हो गये और केन्द्रीय असेम्बली के पहले ग़ैर सरकारी अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।
जेल में नज़रबन्द
इन्होंने अपना निर्णायक मत डालकर सरकारी सार्वजनिक सुरक्षा बिल को अस्वीकृत करा दिया और अधिवेशन के दौरान पुलिस को केन्द्रीय असेम्बली हॉल में प्रवेश करने से रोक दिया। इन्होंने 1930 ई. में कांग्रेस नेताओं के नज़रबंद कर दिये जाने के विरोधस्वरूप केन्द्रीय असेम्बली के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया और इसके बाद ही स्वयं इनको भी नज़रबंद कर दिया गया। जेल में उनका स्वास्थ्य चौपट हो गया और वे स्वास्थ्य सुधार के लिए यूरोप चले गए।
निधन
वियना में उनकी भेंट नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से हुई। नेताजी पर उनका पूरा विश्वास था और उन्होंने उनको अपनी इच्छानुसार राष्ट्रीय कार्यों में ख़र्च करने के लिए दो लाख रुपये की वसीयत कर दी। इसके बाद ही वियना में उनकी मृत्यु हो गई। 1933 ई. में उनकी मृत्यु पर छोटे भाई सरदार पटेल ने असहयोग के सिद्धान्तों में विश्वास करते हुए भी भारत में ब्रिटिश अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया और बड़े भाई की वसीयत रद्द करा दी। विट्ठलदास झवेरभाई पटेल महान् देशभक्त थे और भारत के अंग्रेज़ शासक भी उनसे डरते थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 232 |
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