"विश्वामित्र स्मृति": अवतरणों में अंतर
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*यह स्मृति आद्योपान्त गायत्री-उपासना में ही पर्यवसित है। | *यह स्मृति आद्योपान्त गायत्री-उपासना में ही पर्यवसित है। | ||
*इसमें गद्य भाग भी हैं और गायत्री की 24 मुद्राएं भी। आवाहन आदि 10 मुद्राओं का वर्णन भी किया गया है। | *इसमें गद्य भाग भी हैं और गायत्री की 24 मुद्राएं भी। आवाहन आदि 10 मुद्राओं का वर्णन भी किया गया है। | ||
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*पृथ्वी का अभिवादन है- 'समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे'।< | *पृथ्वी का अभिवादन है- 'समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे'।<ref>1/44-45</ref> | ||
*विधिपूर्वक स्नान करके प्राणायाम, अघमर्षण, सूर्योपास्थानादि करके गायत्री का ध्यान अवश्य किया जाय। | *विधिपूर्वक स्नान करके प्राणायाम, अघमर्षण, सूर्योपास्थानादि करके गायत्री का ध्यान अवश्य किया जाय। | ||
*इस स्मृति के अन्त में वैश्वदेव प्रकरण निर्दिष्ट है तथा इसकी महिमा का भी वर्णन किया गया है। | *इस स्मृति के अन्त में वैश्वदेव प्रकरण निर्दिष्ट है तथा इसकी महिमा का भी वर्णन किया गया है। | ||
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10:44, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
- सात अध्यायों 375 श्लोकों में उपनिबद्ध (विशेषरूप से बंधा हुआ, गुथा हुआ) विश्वामित्र-स्मृति में सन्ध्योपासना एवं गायत्री आराधना मुख्य प्रतिपाद्य है।
- यह स्मृति आद्योपान्त गायत्री-उपासना में ही पर्यवसित है।
- इसमें गद्य भाग भी हैं और गायत्री की 24 मुद्राएं भी। आवाहन आदि 10 मुद्राओं का वर्णन भी किया गया है।
- इसमें कहा गया है कि 'सन्ध्या' केवल पूर्व एवं उत्तर मुख कर के की जानी चाहिए।[1]
- पृथ्वी पर पैर रखने के पूर्व, शयन से उठने के पश्चात् पृथ्वी का अभिवादन करके एवं अपने करों का दर्शन कर के ज़मीन पर उतरना चाहिए।
- पृथ्वी का अभिवादन है- 'समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे'।[2]
- विधिपूर्वक स्नान करके प्राणायाम, अघमर्षण, सूर्योपास्थानादि करके गायत्री का ध्यान अवश्य किया जाय।
- इस स्मृति के अन्त में वैश्वदेव प्रकरण निर्दिष्ट है तथा इसकी महिमा का भी वर्णन किया गया है।