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*अत: उसने क्रुद्ध होकर राजा से युद्ध किया और उसे पाशबद्ध कर लिया।  
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*उसी समय सहस्रकिरण के पिता शतवाहु वहाँ पहुँचे।  
*उसी समय सहस्रकिरण के पिता शतवाहु वहाँ पहुँचे।  
*उन्होंने राज्य पुत्र को सौंपकर स्वयं प्रव्रज्या ले ली।  
*उन्होंने राज्य पुत्र को सौंपकर स्वयं [[प्रव्रज्या]] ले ली।  
*उनके अनुरोध पर रावण ने सहस्रकिरण को मुक्त कर दिया।  
*उनके अनुरोध पर रावण ने सहस्रकिरण को मुक्त कर दिया।  
*वह भी अपना राज्य अपने पुत्र को सौंपकर स्वयं दीक्षा लेकर पिता के साथ चला गया।<ref>पउम चरित, 10|34-88|</ref>
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10:54, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

  • एक बार राजा सहस्रकिरण अपनी रानियों के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था।
  • उसने जलयंत्र लगाकर पानी रोका हुआ था।
  • उसी नदी के तट पर रावण जिनेश्वर देव की प्रतिमाओं की स्वर्ण सिंहासन पर प्रतिष्ठा करके पूजा कर रहा था।
  • क्रीड़ा के उपरान्त सहस्रकिरण ने यंत्रों से रोका हुआ जल छोड़ दिया तो किनारे पर बाड़-सी आ गई, जिससे रावण की पूजा में व्यवधान पड़ा।
  • अत: उसने क्रुद्ध होकर राजा से युद्ध किया और उसे पाशबद्ध कर लिया।
  • उसी समय सहस्रकिरण के पिता शतवाहु वहाँ पहुँचे।
  • उन्होंने राज्य पुत्र को सौंपकर स्वयं प्रव्रज्या ले ली।
  • उनके अनुरोध पर रावण ने सहस्रकिरण को मुक्त कर दिया।
  • वह भी अपना राज्य अपने पुत्र को सौंपकर स्वयं दीक्षा लेकर पिता के साथ चला गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पउम चरित, 10|34-88|

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