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| चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नये विक्रम सवंत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियों रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है।
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| रामनवमी, भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरूषोतम" कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्म दिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।
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| ==राम का जन्म==
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| पुरूषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते है।
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| ==अगस्त्यसंहिता के अनुसार==
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| मंगल भवन अमंगल हारी,
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| दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि॥</poem>
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| अगस्त्यसंहिता के अनुसार चैत्र शुक्ल नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र, कर्कलग्न में जब सूर्य अन्यान्य पाँच ग्रहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तभी साक्षात् भगवान् श्रीराम का माता कौसल्या के गर्भ से जन्म हुआ।
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| धार्मिक दृष्टि से चैत्र शुक्ल नवमी का विशेष महत्व है। त्रेता युग में चैत्र शुक्ल नवमी के दिन रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहाँ अखिल ब्रम्हांड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था। राम का जन्म दिन के बारह बजे हुआ था, जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हुए तो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो गईं। राम के सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे।
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| देवलोक भी अवध के सामने श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर फीका लग रहा था। जन्मोत्सव में देवता, ऋषि, किन्नार, चारण सभी शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था।
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| ==रामनवमी की पूजा==
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| [[हिंदू धर्म]] में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्य परिवार के सभी सदस्यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है।
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| ==व्रत==
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| रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है, तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।
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| ==उद्देश्य==
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| भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और तथा भगवान की भक्ति कर सके। उन्होंने न तो किसी प्रकार के धर्म का नामकरण किया और न ही किसी विशेष प्रकार की भक्ति का प्रचार किया।
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| ==भक्ति और ज्ञान==
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| भक्ति का चरम शिखर किसी ने प्राप्त किया है तो उनमें सबसे बड़ा नाम संत कबीर और तुलसीदासजी का है। मीरा और सूर भी इसी क्रम में आते हैं। बाल्मीकि और वेदव्यास को ज्ञानियों में चरम शिखर के प्रतीक मान सकते हैं। ईश्वर को प्राप्त करने के दोनों मार्ग- भक्ति और ज्ञान हैं। भगवान को भक्ति और ज्ञान दोनों ही प्रिय हैं। बाल्मीकि और वेदव्यास ने ज्ञान मार्ग को चुना तो वह समाज को ऐसी रचनाएँ दे गये कि सदियों तक उनकी चमक फीकी नहीं पड़ सकती और कबीर, तुलसी, सूर, और मीरा ने भक्ति का सर्वोच्च शिखर छूकर यह दिखा दिया है कि इस कलियुग में भी भगवान भक्ति में कितनी शक्ति है। संत कबीर जी ने अपनी रचनाओं में भक्ति और ज्ञान दोनों का समावेश इस तरह किया कि वर्तमान समय में कोई ऐसा कर सकता है यह सोचना भी कठिन है।
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| ==अयोध्या की रामनवमी==
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| रामनवमी के रूप में हिन्दुओं के आराध्य देव भगवान श्रीरामचन्द्र का जन्मदिन देश भर में मनाया जाता है, लेकिन अयोध्या में रामनवमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। अयोध्या में इस दिन मेला लगता है। देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु इस मेले में पहुँचते हैं। प्राचीनकाल से ही धर्म एवं संस्कृति की परम पावन स्थली के रूप में भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या विख्यात है। त्रेता-युगीन सूर्यवंशीय नरेशों की राजधानी रही अयोध्या पुरातात्विक दृष्टि से भी महत्त्व रखती है। चीनी यात्री फाह्यान व ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांतों में इस नगरी का वर्णन किया है।
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| रामनवमी के दिन भगवान राम के जन्मोत्सव के पावन पर्व पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भक्तजन अयोध्या की सरयू नदी के तट पर प्रात:काल से ही स्नान कर मंदिरों में दर्शन तथा पूजा करते हैं। इस दिन जगह-जगह संतों के प्रवचन, भजन, कीर्तन चलते रहते हैं। अयोध्या के प्रसिद्ध कौशल्या भवन मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु एवं यात्रीगण उस काल के पात्रों से जुड़ी घटनाओं के स्थानों के अलावा यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों को देखने जाते हैं। यहां के प्रमुख दर्शनीय एवं ऐतिहासिक स्थलों की बात करें तो सबसे प्रमुख श्रीराम जन्मभूमि के अलावा कौशल्या भवन, कनक भवन, कैकेयी भवन, कोप भवन तथा श्रीराम के राज्याभिषेक का स्थान रत्न सिंहासन दर्शनीय हैं। यहां आने वाले पर्यटक जैन धर्म के र्तीथकरों के मंदिर को भी देखना नहीं भूलते।
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| अयोध्या अपनी प्रमुख परिक्रमाओं के लिए भी भिन्न-भिन्न उत्सवों पर की जाने वाली जैसे चौरासी कोसी परिक्रमा, रामनवमी के अवसर पर चौदह कोसी परिक्रमा, अक्षय नवमी पर पांच कोसी परिक्रमा, कार्तिक एकादशी के अवसर पर तथाम अंतर्ग्रही परिक्रमा नित्य-प्रति होती है तथा अयोध्या के सभी प्रमुख मंदिर एवं तीर्थ इस परिक्रमा में आ जाते हैं।
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| कैसे पहुंचें
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| हवाई मार्ग
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| निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ 135 किलोमीटर दूर है।
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| रेल मार्ग: यह दिल्ली के अलावा लखनऊ, फैजाबाद, बनारस से भी रेल मार्ग से जुड़ा है।
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| सड़क मार्ग: दिल्ली के आनन्द विहार बस अड्डे से बसें मिलती हैं।
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| कहां ठहरें
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| अयोध्या में ठहरने के लिए होटल व धर्मशालाएं काफी संख्या में उपलब्ध हैं। उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित पथिक निवास बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
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| http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-travel-dairy-50-50-165513.html
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| अयोध्या। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या में सोमवार को रामनवमी पर्व धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया तथा लाखों श्रद्धालुओं ने सरयू में स्नान करके विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना की।
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| रामनवमी पर दूर दराज से लाखों भक्त अयोध्या आते हैं। इन श्रद्धालुओं ने आज यहां पूरी श्रद्धा के साथ श्रीराम जन्मोत्सव मनाया। ठीक दोपहर 12बजे सांकेतिक रूप से श्रीराम जन्मोत्सव के साथ ही विभिन्न मंदिरों में घंटे घडियाल बजाए गए तथा अयोध्या शंख ध्वनि से गुंजायमान हो गई। भगवान राम का जन्म दिन के ठीक बारह बजे ही हुआ था।
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| कनक भवन मंदिर में रामनवमी पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए। दोपहर 12बजे पुत्र जन्म के समय गाया जाने वाला सोहर तथा भजन गाए गए। किन्नरोंने भी विभिन्न मंदिरों में घूम-घूम कर बधाई गीत गाए और उपहार प्राप्त किए। इस अवसर पर विवादित श्रीराम जन्म भूमि में विराजमान रामलला के साथ ही श्रद्धालुओं ने कनक भवन, हनुमानगढी,नागेश्वर नाथ मंदिर तथा अन्य मंदिरों में दर्शन पूजन किया। हनुमानगढीमें फिसलन से बचाने के लिए फर्श एवं सीढियों पर बालू का छिडकाव किया गया था।
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| नगर पुलिस अधीक्षक गोपेशनाथ खन्ना ने बताया कि यहां रामनवमी पर मेले में आए करीब 20लाख श्रद्धालुओं ने सरयू में स्नान करके विभिन्न मंदिरों में दर्शन पूजन किया। उन्होंने बताया कि आज करीब दो लाख श्रद्धालुओं ने रामलला के दर्शन किए। रामनवमी के मद्देनजर अयोध्या में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए थे तथा खोया पाया शिविर भी लगाया गया था।
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| http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&category=6&articleid=3510
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| भारतीय अध्यात्म में भगवान श्रीराम के स्थान को कौन नहीं जानता। रामनवमी के दिन हर भारतीय के मन में उनके प्रति जो श्रद्धा है उसको प्रकट रूप में देख सकते है। आस्था और विश्वास के रूप में भगवान श्रीराम की जो छवि है वह अद्वितीय है।
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| इस साल रामनवमी 12 अप्रैल को मनाई जाएगी। महोत्सव का शुभारंभ 22 मार्च को पहली मंगलवारी जुलूस के साथ हुआ । शहर के विभिन्न अखाड़ों और समितियों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। इस साल रामनवमी मंगलवार को ही है। इस दिन को हनुमान जी के लिए खास माना जाता है। यही वजह है कि रामभक्तों में खासा उत्साह है। वहीं रामनवमी को लेकर समितियों के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
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| 22 मार्च, 29 मार्च और 5 अप्रैल को मंगलवारी जुलूस निकाला जाएगा। इधर, श्री महावीर मंडल रांची के अध्यक्ष उदय शंकर ओझा ने बताया कि इस वर्ष भी मंगलवारी जुलूस परंपरागत तरीके से निकाला जाएगा। मंडल के विभिन्न अखाड़ों से निकल कर जुलूस प्राचीन हनुमान मंदिर, महावीर चौक पहुंचेगा। यहां विधि-विधान से महावीरी पताका स्थापित की जाएगी। 23 मार्च से महावीर मंडल की कमेटी गठन की प्रक्रिया शुरू होगी। भगवान श्रीराम का जन्मदिन ब्रज के सभी मन्दिरों में बड़ी श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है. मथुरा के राम जी द्वारा स्थित प्राचीन राम मन्दिर में विशेष दर्शन एवं राम जन्मोत्सव मनाया जाता है। श्री रामचंद्र जी की आरती और पूजन धूमधाम से होता है।
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| श्री चैती दुर्गा पूजा समिति की बैठक भुतहा तालाब स्थित समिति के प्रांगण में मंगलवार को शाम पांच बजे से होगी। इसमें पुरानी कार्यकारिणी को भंग कर नई कार्यकारिणी का गठन किया जाएगा। रामनवमी की कार्य योजना भी बनेगी।
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| http://hindi.pravasitoday.com/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%B5
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| गोस्वामी तुलासी दास जी ने लिखा है- मध्य दिवस अरु शीत न घामा पावन काल लोक विश्रामा अर्थात मध्यान्ह काल है न अधिक शीत है और न अधिक धूप हर दृष्टि से पवित्र समय है और लोक को विश्रांत करने वाला है ऐसे पावन काल में प्रभु श्रीरामचन्द्र जी का प्राकटयोत्व होता है। हर साल चैत्र मास शुक्ल पक्ष नवमी तिथि पर अपरान्ह बारह बजे यह उत्सव मनाया जाता है। आदि काल से ही अयोध्या के इर्द-गिर्द बड़े क्षेत्र में यह लोक पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है। रामनगरी में इस अवसर पर लाखों लाख श्रद्धालु अयोध्या आते हैं। पावन सलिला सरयू में डुबकी लगाते हैं रामलला के विवादित गर्भगृह सहित मंदिर-मंदिर मत्था टेकते हैं। जहां नौ दिनों पूर्व से ही मंदिरों के प्रांगण में प्रत्येक शाम बधाई गान की महफिल सजती है वहीं ऐन पर्व पर मंदिरों के गर्भगृह में रामप्राकटय का विशेष अनुष्ठान होता है। रामजन्मभूमि के अलावा कनक भवन मंदिर में इस दिन विशेष आयोजन होता है। इस दौरान श्रद्धालु मंदिरों में विराजमान भगवान राम के विग्रह का दर्शन करने के लिए आतुर रहते हैं। श्रीराम चन्द्र जी के जन्मोत्सव में शमिल होने के लिए देश के कोने-कोने और विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। वे जब अयोध्या में प्रवेश करते हैं तो सिर पर गठरी और मुख में रामभक्ति का भाव आस्था के सागर में हिलारों लेता नजर आता हैं। महिलाएं रामजन्म की बधाई गीत गाते हुए अयोध्या में प्रवेश करती हैं। वहीं जन्मोत्सव के दिन वे यह गीत गाना सौभाग्य की बात समझती हैं-अयोध्या में बोले कागा हो रामनवमी के दिनवा यह गीत इसलिए गाया जाता है कि जब घर में किसी नये मेहमान के पर्दापण का संकेत मिलता है तो कौव्वा उस घर की मुंडेर पर बैठकर कांव-कांव करता है। हमें याद है कि बचपन में हम लोग चैत्र रामनवमी के दिन परिवारीजनों और गांव वालों के साथ अयोध्या आते थे। सरयू स्नान के बाद मंदिरों में दर्शन-पूजन और फिर कढाही चढाने की परम्परा भी होती थी। इसके बाद फिर घरों को वापसी होती थी। दो दशक पूर्व बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का रेला पैदल ही आता था। नौ दिनों तक चलने वाले उत्सव के दौरान अयोध्या में उसकी उपस्थिती होती थी। अब जबकि साधनों और संसाधनों का दौर है ऐसे में श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है। कई दिनों तक यहां ठहरने के बजाय अधिकांश लोग अष्टमी की संध्या तक पहुंच जाते हैं और श्रीराम चन्द्र जी के प्राकटयोत्सव के बाद मंदिरों में मत्था टेक वापस लौट जाते हैं। किंवदंती है कि श्रीराम जन्मोत्सव पर उनके बाल स्वरूप का दर्शन करने देवता भी अयोध्या आते हैं। इस दौरान अयोध्या में एक पल भी रहना हजारों तीर्थों व असंख्य पुण्य के बराबर है। चैत्र रामनवमी का उत्सव इस बार 24 मार्च को होगा इसमें शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु अयोध्या पहुंच चुके हैं।
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| http://jagajaysingh.jagranjunction.com/2010/03/19/%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%8B/
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| आज रामनवमी है। भगवान श्रीराम के चरित्र को अगर हम अवतार के दृष्टिकोण से परे होकर सामान्य मनुष्य के रूप में विचार करें तो यह तथ्य सामने आता है कि वह एक अहिंसक प्रवृत्ति के एकाकी स्वभाव के थे। उन जैसे सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी बहुत कम मनुष्य होते हैं। दरअसल वह स्वयं कभी किसी से नहीं लड़े बल्कि हथियार उठाने के लिये उनको बाध्य किया गया। ऐसे हालत बने कि उन्हें बाध्य होकर युद्ध के मार्ग पर जाना पड़ा।
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| भगवान श्रीराम बाल्यकाल से ही अत्यंत संकोची, विनम्र तथा अनुशासन प्रिय थे। इसके साथ ही पिता के सबसे बड़े पुत्र होने की अनुभूति ने उन्हें एक जिम्मेदार व्यक्ति बना दिया था। उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठ जी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपना समय घर पर विराम देकर नहीं बिताया बल्कि महर्षि विश्वमित्र के यज्ञ की रक्षा के लिये शस्त्र लेकर निकले तो फिर उनका राक्षसों से ऐसा बैर बंधा कि उनको रावण वध के लिये लंका तक ले गया।
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| हिन्दू धर्म के आलोचक भगवान श्रीराम को लेकर तमाम तरह की प्रतिकूल टिप्पणियां करते हैं पर उसमें उनका दोष नहीं है क्योंकि श्रीराम के भक्त भी बहुत उनके चरित्र का विश्लेषण कर उसे प्रस्तुत नहीं कर पाते।
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| सच बात तो यह है कि भगवान श्रीराम अहिंसक तथा सौम्य प्रवृत्ति का प्रतीक हैं। इसी कारण वह श्रीसीता को पहली ही नज़र में भा गये थे। भगवान श्रीराम की एक प्रकृति दूसरी भी थी वह यह कि वह दूसरे लोगों का उपकार करने के लिये हमेशा तत्पर रहते थे। यही कारण है कि उनकी लोकप्रियता बाल्यकाल से बढ़ने लगी थी।
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| सच बात तो यह है कि अगर राम राक्षसों का संहार नहीं करते तो भी अपनी स्वभाव तथा वीरता की वजह से उतने प्रसिद्ध होते जितने रावण को मारने के बाद हुए। उनका राक्षसों से प्रत्यक्ष बैर नहीं था पर रावण के बढ़ते अनाचारों से देवता, गंधर्व और मनुष्य बहुत परेशान थे। देवराज इंद्र तो हर संभव यह प्रयास कर रहे थे कि रावण का वध हो और भगवान श्रीराम की धीरता और वीरता देखकर उन्हें यह लगा कि वही राक्षसों का समूल नाश कर सकते हैं। भगवान श्रीराम के चरित्र पर भारत के महान साहित्यकार श्री नरेंद्र कोहली द्वारा एक उपन्यास भी लिखा गया है और उसमें उनके तार्किक विश्लेषण बहुत प्रभावी हैं। उन्होंने तो अपने उपन्यास में कैकयी को कुशल राजनीतिज्ञ बताया है। श्री नरेद्र कोहली के उपन्यास के अनुसार कैकयी जानती थी रावण के अनाचार बढ़ रहे हैं और एक दिन वह अयोध्या पर हमला कर सकता है। वह श्रीराम की वीरता से भी परिचित थी। उसे लगा कि एक दिन दोनों में युद्ध होगा। यह युद्ध अयोध्या से दूर हो इसलिये ही उसने श्रीराम को वनवास दिलाया ताकि वहां रहने वाले तपस्पियों पर आक्रमण करने वाले राक्षसों का वह संहार करते रहें और फिर रावण से उनका युद्ध हो। श्रीकोहली का यह उपन्यास बहुत पहले पढ़ा था और उसमें दिये गये तर्क बहुत प्रभावशाली लगे। बहरहाल भगवान श्रीराम के चरित्र की चर्चा जिनको प्रिय है वह उनके बारे में किसी भी सकारात्मक तर्क से सहमत न हों पर असहमति भी व्यक्त नहीं कर सकते।
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| रावण के समकालीनों में उसके समान बल्कि उससे भी शक्तिशाली अनेक महायोद्धा थे जिसमें वानरराज बलि का का नाम भी आता है पर इनमें से अधिकतर या तो उसके मित्र थे या फिर उससे बिना कारण बैर नहीं बांधना चाहते थे। कुछ तो उसकी परवाह भी नहीं करते थे। ऐसे में श्रीराम जो कि अपने यौवन काल में होने के साथ ही धीरता और वीरता के प्रतीक थे उस समय के रणनीतिकारों के लिये एक ऐसे प्रिय नायक थे जो रावण को समाप्त कर सकते थे। भगवान श्रीराम अगर वन न जाकर अयोध्या में ही रहते तो संभवतः रावण से उनका युद्ध नहीं होता परंतु देवताओं के आग्रह पर बुद्धि की देवी सरस्वती ने कैकयी और मंथरा में ऐसे भाव पैदा किये वह भगवान श्रीराम को वन भिजवा कर ही मानी। कैकयी तो राम को बहुत चाहती थी पर देवताओं ने उसके साथ ऐसा दाव खेला कि वह नायिका से खलनायिका बन गयी।
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| श्री नरेंद्र कोहली अपने उपन्यास में उस समय के रणनीतिकारों का कौशल मानते हैं। ऐसा लगता है कि उस समय देवराज इंद्र अप्रत्यक्ष रूप से अपनी रणनीति पर अमल कर रहे थे। इतना ही नहीं जब वन में भगवान श्रीराम अगस्त्य ऋषि से मिलने गये तो देवराज इंद्र वहां पहले से मौजूद थे। उनके आग्रह पर ही अगस्त्य ऋषि ने एक दिव्य धनुष भगवान श्रीराम को दिया जिससे कि वह समय आने पर रावण का वध कर सकें। कहने का तात्पर्य यह है कि जब हम रामायण का अध्ययन करते हैं तो केवल अध्यात्मिक, वैचारिक तथा भक्ति संबंधी तत्वों के साथ अगर राजनीतिक तत्व का अवलोकन करें तो यह बात सिद्ध होती है कि राम और रावण के बीच युद्ध अवश्यंभावी नहीं था पर उस काल में हालत ऐसे बने कि भगवान श्रीराम को रावण से युद्ध करना ही पड़ा। मूलतः भगवान श्रीराम सुकोमल तथा अहिंसक प्रवृत्ति के थे।
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| जब रावण ने सीता का हरण किया तब भी देवराज इंद्र अशोक वाटिका में जाकर अप्रत्यक्ष रूप उनको सहायता की। इसका आशय यही है कि उस समय देवराज इंद्र राक्षसों से मानवों और देवताओं की रक्षा के लिये रावण का वध श्रीराम के हाथों से ही होते देखना चाहते थे। अगर सीता का हरण रावण नहीं करता तो शायद ही श्रीराम जी उसे मारने के लिये तत्पर होते पर देवताओं, गंधर्वों तथा राक्षसों में ही रावण के बैरी शिखर पुरुषों ने उसकी बुद्धि का ऐसा हरण किया कि वह श्रीसीता के साथ अपनी मौत का वरण कर बैठा। ऐसे में जो लोग भगवान श्रीराम द्वारा किये युद्ध पर ही दृष्टिपात कर उनकी निंदा या प्रशंसा करते हैं वह अज्ञानी हैं और उनको भगवान श्रीराम की सौम्यता, धीरता, वीरता तथा अहिंसक होने के प्रमाण नहीं दिखाई दे सकते। उस समय ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों, देवताओं, और मनुष्यों की रक्षा के लिये ऐसा संकट उपस्थित हुआ था कि भगवान श्रीराम को अस्त्र शस्त्र एक बार धारण करने के बाद उन्हें छोड़ने का अवसर ही नहीं मिला। यही कारण है कि वह निरंतर युद्ध में उलझे रहे। श्रीसीता ने उनको ऐसा करने से रोका भी था। प्रसंगवश श्रीसीता जी ने उनसे कहा था कि अस्त्र शस्त्रों का संयोग करने से मनुष्य के मन में हिंसा का भाव पैदा होता है इसलिये वह उनको त्याग दें, मगर श्रीराम ने इससे यह कहते हुए इंकार किया इसका अवसर अभी नहीं आया है।
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| उस समय श्रीसीता ने एक कथा भी सुनाई थी कि देवराज इंद्र ने एक तपस्वी की तपस्या भंग करने के लिये उसे अपना हथियार रखने का जिम्मा सौंप दिया। सौजन्यता वश उस तपस्वी ने रख लिया। वह उसे प्रतिदिन देखते थे और एक दिन ऐसा आया कि वह स्वयं ही हिंसक प्रवृत्ति में लीन हो गये और उनकी तपस्या मिट्टी में मिल गयी।
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| भगवान श्रीराम की सौम्यता, धीरता और वीरता से परिचित उस समय के चतुर पुरुषों ने ऐसे हालत बनाये और बनवाये कि उनका अस्त्र शस्त्र छोड़ने का अवसर ही न मिले। भगवान श्रीराम सब जानते थे पर उन्होंने अपने परोपकार करने का व्रत नहीं छोड़ा और अंततः जाकर रावण का वध किया। ऐसे भगवान श्रीराम को हमारा नमन।
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| रामनवमी के इस पावन पर्व पर पाठकों, ब्लाग लेखक मित्रों तथा देशभर के श्रद्धालुओं को ढेर सारी बधाई।
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| http://dpkraj.wordpress.com/2010/03/24/special-article-on-ramnavami/
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| राम नवमी पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन प्रत्येक मास बडी श्रद्वा और विश्वास के साथ मनाया जाता है. वर्ष 2011 में यह पर्व 12 अप्रैल की रहेगी. रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति भगवान श्री राम के समान अपने कर्तव्यों का पालन करने में पीछे नहीं हटता है.
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| रामनवमी व्रत विधि | Ramnavami Vrat Vidhi
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| राम नवमी व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है. इस दिन व्रत करने वाली महिला को प्रात: सुबह उठना चाहिए. और सुबह उठकर, पूरे घर की साफ- सफाई कर घर में गंगा जल छिडकर कर, शुद्ध कर लेना चाहिए. इसके पश्चात स्नानक कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
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| इसके बाद एक लकडी के चौकोर टुकडे पर सतिया बनाकर एक जल से भरा गिलास रखती है. और साथ ही अपनी अंगुली से चांदी का छल्ला निकाल कर रखती है. इसे प्रतीक रुप से गणेशजी माना जाता है. व्रत कथा सुनते हाथ में गेहूं-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्व कहा गया है.
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| व्रत वाले दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधि -विधान है. व्रत के दिन कलश स्थापना और राम जी के परिवार की पूजा करनी चाहिए. दिन भर भगवान श्री राम का भजन, स्मरण, स्तोत्रपाठ, दान, पुन्य, हवन, पितृश्राद्व और उत्सव किया जाना चाहिए. और रात्रि में भी गायन, वादन करना शुभ रहता है.
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| रामनवमी व्रत कथा | Ram Navami Vrat Katha in Hindi
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| वन में राम, सीता और लक्ष्मण जा रहे थे. सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोडा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढिया के घर गए. बुढिया सूत कात रही थी. बुढिया ने आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया. राम जी ने कहा- बुढिया माई, पहले मेरा हंस मोती चुगाओं, तो में भी करूं. बेचारी के पास मोती कहां से आवें, सूत कात कर गरीभ गुजारा करती थी.
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| पर अतिथि को ना कहना भी वह ठिक नहीं समझती थी. दुविधा में पड गई. अत: दिन को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गई. और अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगी. राजा अपना अंचम्बे में पडा कि इसके पास खाने को दाने नहीं है. और मोती उधार मांग रही है. इस स्थिति में बुढिया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता. पर आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढिया को मोती दिला दिये़.
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| बुढिया लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाएं, और मेहमानों को आवभगत की. रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगें. जाते हुए राम जी ने उसके पानी रखने की जगह पर मोतीयों का एक पेड लगा दिया. दिन बीते पेड बडा हुआ, पेड बढने लगा, पर बुढिया को कु़छ पता नहीं चला. पास-पडौस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगें.
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| एक दिन जब वह उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी. तो उसके गोद में एक मोती आकर गिरा. बुढिया को तब ज्ञात हुआ. उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपडे में बांधकर वह किले की ओर ले चली़. उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी. तो इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड गया. उसके पूछने पर बुढिया ने राजा को सारी बात बता दी. राजा के मन में लालच आ गया.
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| वह बुढिया से मोती का पेड मांगने लगा. बुढिया ने कहा की आस-पास के सभी लोग ले जाते है. आप भी चाहे अतो ले लें. मुझे क्या करना है. राजा ने तुरन्त पेड मंगवाया और अपने दरवार में लगवा दिया. पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और आते -आते लोगों के कपडे उन कांटों से खराब होने लगें. एक दिन रानी की ऎडी में अएक कांटा चुभ गया और पीडा करने लगा. राजा ने पेड उठवाकर बुढिया के घर वापस भिजवा दिया. तो पहले की तरह से मोती लगने लगें. बुढिया आराम से रहती और खूब मोती बांटती.
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| रामनवमी व्रत फल | Ramnavami Vrat Benefits
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| श्री रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृ्द्धि होती है. उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है. इसके अतिरिक्त उपवासक को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृ्द्धि होती है. इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि जब इस व्रत को निष्काम भाव से किया जाता है. और आजीवन किया जाता है, तो इस व्रत के फल सर्वाधिक प्राप्त होते है.
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| http://astrobix.com/jyotisha/post/ram-navami-2011-date-chaitra-shukla-navami-vrat-katha-vidhi.aspx
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| भारत पर्वों का देश है। यहाँ की दिनचर्या में ही पर्व-त्योहार बसे हुए हैं। ऐसा ही एक पर्व है रामनवमी। असुरों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने राम रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है।
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| रामनवमी और जन्माष्टमी तो उल्लासपूर्वक मनाते हैं पर उनके कर्म व संदेश को नहीं अपनाते। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता ज्ञान आज सिर्फ एक ग्रंथ बनकर रह गया है। तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में भगवान राम के जीवन का वर्णन करते हुए बताया है कि श्रीराम प्रातः अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करते थे जबकि आज चरण स्पर्श तो दूर बच्चे माता-पिता की बात तक नहीं मानते।
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| परिस्थिति यह है कि महापुरुषों के आदर्श सिर्फ टीवी धारावाहिकों और किताबों तक सिमटकर रह गए हैं। नेताओं ने भी सत्ता हासिल करने के लिए श्रीराम नाम का सहारा लेकर धर्म की आड़ में वोट बटोरे पर राम के गुणों को अपनाया नहीं। यदि राम की सही मायने में आराधना करनी है और राम राज्य स्थापित करना है तो "जय श्रीराम" के उच्चारण के पहले उनके आदर्शों और विचारों को आत्मसात किया जाए।
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| http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/ramnavmi/1003/22/1100322059_1.htm
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| प्रतिवर्ष नये विक्रम सवंत्सर का प्रारंभ चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ला नवमी को एक पर्व समस्त देश में मनाया जाता है | यह पर्व है राम जन्मोत्सव का जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है | राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियों इस देश की रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है | भारत की ऋषि प्रज्ञा ने कहा था - राम धर्म के मूर्तरूप हैं | इनका आशय यही था कि राम के चरित्र में इस देश के राजा , प्रजा , भाई , पुत्र , मित्र , के कहने का तात्पर्य है कि समस्त भारतीय आचार के आदर्श देखे थे | इन्ही विशेषताओं के कारण सदैव से वे जनमानस के अंतरतम में आत्मा के पर्याय के रूप में प्रतिष्टित हैं | रामनवमी के दिन उनका जन्मोत्सव मनाकर सारा भारत अपने आपको सदियों पुराणी परम्परा से जोड़ लेता है |
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| http://schools.papyrusclubs.com/bbps/voice/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE
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