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| यजुर्वेद / Yajurveda
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| {{वेद}}
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| यजुर्वेद चार वेदों में से एक है। यजुर्वेद संहिता में यज्ञ क्रियाओं के मंत्र और विधियां संग्रहीत हैं। इसमें केवल ॠग्वेद से लिए हुए मंत्र ही नहीं मिलते, किन्तु यज्ञानुष्ठान में सम्पादित की जाने वाली समस्त क्रियाओं का विधान भी मिलता है। यजुर्वेद सभी संहिताओं में सबसे अधिक विविधतापूर्ण है, क्योंकि इसमें बहुत से पाठ हैं। इन्हें दो वर्गों में विभाजित किया गया है:-
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| *शुक्ल (श्वेत) यजुर्वेद व
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| *कृष्ण (काला) यजुर्वेद
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| शुक्ल (श्वेत) यजुर्वेद की दो शाखाएं है:-
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| *माध्यंदिन व
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| *काण्व
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| और कृष्ण (काला) यजुर्वेद की तीन शाखाएं
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| *तैत्तिरीय,
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| *मैत्रायणी व
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| *कठ
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| इन दोनों शाखाओं में अंतर यह है कि शुक्ल यजुर्वेद पद्य (संहिताओं) को विवेचनात्मक सामग्री (ब्राह्मण) से अलग करता है, जबकि कृष्ण यजुर्वेद में दोनों ही उपस्थित हैं।
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| यजुर्वेद में वैदिक अनुष्ठान की प्रकृति पर विस्तृत चिंतन है और इसमें यज्ञ संपन्न कराने वाले प्राथमिक ब्राह्मण व आहुति देने के दौरान प्रयुक्त मंत्रों पर गीति पुस्तिका भी शामिल है। इस प्रकार यजुर्वेद यज्ञों के आधारभूत तत्त्वों से सर्वाधिक निकटता रखने वाला वेद है। यजुर्वेद संहिताएं संभवतः अंतिम रचित संहिताएं थीं, जो ई॰ पू॰ दूसरी सहस्त्राब्दी के अंत से लेकर पहली सहस्त्राब्दी की आरंभिक शताब्दियों के बीच की हैं।
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| ==यजुर्वेद की अन्य विशेषताएं==
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| * यजुर्वेद गद्यात्मक है।
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| * यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘यजुस’ कहा जाता है।
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| * यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।
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| * इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं।
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| * यजुर्वेद में यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं।
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| * यह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है।
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| * यदि ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी तो यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में।
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| * इस ग्रन्थ से आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है।
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| * वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम की झाँकी भी इसमें है।
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| * यजुर्वेद में यज्ञों और कर्मकाण्ड का प्रधान है।
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| निम्नलिखित उपनिषद् भी यजुर्वेद से सम्बद्ध हैं:-
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| *श्वेताश्वतर,
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| *बृहदारण्यक,
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| *ईश,
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| *प्रश्न,
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| *मुण्डक और
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| *माण्डूक्य।
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