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* | *महानता अहंकार रहित होती है, तुच्छता अहंकार की सीमा पर पहुँच जाती है। -तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 969) | ||
*यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - [[गीता|श्रीमद्भागवत गीता]] [[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]] | |||
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06:13, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- महानता अहंकार रहित होती है, तुच्छता अहंकार की सीमा पर पहुँच जाती है। -तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 969)
- यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - श्रीमद्भागवत गीता .... और पढ़ें