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*पुष्पों के गुच्छे की तरह महापुरूषों की दो ही गतियाँ होती हैं - या तो वे सब लोगों के सिर पर विराजते हैं अथवा वन में ही मुरझा जाते हैं। -'''भर्तृहरि''' (नीतिशतक,33)
*महानता अहंकार रहित होती है, तुच्छता अहंकार की सीमा पर पहुँच जाती है। -तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 969)
*कर्म की दृढ़ता वस्तुत: व्यक्ति की मानसिक दृढ़ता ही है। शेष सब पृथक ही ठहरते हैं।  -'''तिरुवल्लुवर''' (तिरुक्कुरल, 661)
*यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - [[गीता|श्रीमद्भागवत गीता]] [[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]
*देश प्रेम हो और भाषा-प्रेम की चिन्ता न हो, यह असम्भव है। -'''[[महात्मा गाँधी]]''' (गांधी वाड्मय, खंड 19, पृ॰ 515)
*संसार में नाम और द्रव्य की महिमा कोई आज भी ठीक-ठीक नहीं जान पाया।  -'''शरतचंद्र चट्टोपाध्याय''' (शेष परिचय,पृ॰31)     
*परंपरा को स्वीकार करने का अर्थ बंधन नहीं, अनुशासन का स्वेच्छा से वरण है।  -'''विद्यानिवास मिश्र''' (परंपरा बंधन नहीं, पृ॰53)
*असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। -'''[[महादेवी वर्मा]]''' (सप्तपर्णा, पृ॰49) '''[[सूक्ति और कहावत|.... और पढ़ें]]'''

06:13, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • महानता अहंकार रहित होती है, तुच्छता अहंकार की सीमा पर पहुँच जाती है। -तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 969)
  • यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - श्रीमद्भागवत गीता .... और पढ़ें