"दोस्त मुहम्मद": अवतरणों में अंतर

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*'''दोस्त मुहम्मद''', [[अफ़ग़ानिस्तान]] का अमीर था, जिसने 1826 से 1863 ई. तक शासन किया।
[[चित्र:Dost-Mohammad-Khan-With-His-Son.jpg|thumb|250px|अपने छोटे बेटे के साथ दोस्त मुहम्मद ख़ान]]
*'''दोस्त मुहम्मद''', [[अफ़ग़ानिस्तान]] का अमीर (सेनापति) था, जिसने 1826 से 1863 ई. तक शासन किया।
*जब 1836 में रूस के इशारे पर [[फ़ारस]] ने [[हेरात]] पर हमला करने की धमकी दी, दोस्त मुहम्मद ने ब्रिटिश भारतीय सरकार से मैत्री के लिय यह शर्त रखी कि वह अमीर को [[पंजाब]] के महाराज [[रणजीत सिंह]] से [[पेशावर]] वापस लेने में मदद दे।
*जब 1836 में रूस के इशारे पर [[फ़ारस]] ने [[हेरात]] पर हमला करने की धमकी दी, दोस्त मुहम्मद ने ब्रिटिश भारतीय सरकार से मैत्री के लिय यह शर्त रखी कि वह अमीर को [[पंजाब]] के महाराज [[रणजीत सिंह]] से [[पेशावर]] वापस लेने में मदद दे।
*चूंकि ब्रिटिश भारतीय सरकार ने इस शर्त पर अमीर को मदद देने से इंकार कर दिया, अतएव अमीर ने 1837 ई. में अपने दरबार में रूस के राजदूत को आमंत्रित किया।  
*चूंकि ब्रिटिश भारतीय सरकार ने इस शर्त पर अमीर को मदद देने से इंकार कर दिया, अतएव अमीर ने 1837 ई. में अपने दरबार में रूस के राजदूत को आमंत्रित किया।  
*[[भारत]] का [[गवर्नर-जनरल]] [[लार्ड आकलैण्ड]] इससे कुपित हो गया और उसकी नीति की चरम परिणति 1838 ई. में ब्रिटिश-अफ़ग़ान युद्ध में हुई, जो कि 1842 ई. तक चला।
*[[भारत]] का [[गवर्नर-जनरल]] [[लॉर्ड आकलैण्ड]] इससे कुपित हो गया और उसकी नीति की चरम परिणति 838 ई. में ब्रिटिश-अफ़ग़ान युद्ध में हुई, जो कि 1842 ई. तक चला।
*युद्ध के दौरान दोस्त मुहम्मद ने 1840 ई. में आत्म समर्पण कर दिया और [[अंग्रेज़]] उसे बंदी बनाकर [[कोलकाता|कलकत्ता]] ले गए।
*युद्ध के दौरान दोस्त मुहम्मद ने 1840 ई. में आत्म समर्पण कर दिया और [[अंग्रेज़]] उसे बंदी बनाकर [[कोलकाता|कलकत्ता]] ले गए।
*1842 ई. तक ब्रिटिश भारतीय सेना को 20 हज़ार आदमी गँवाकर तथा 15 करोड़ रुपया बर्बाद करके अफ़ग़ानिस्तान वापस लौट आना पड़ा।
*1842 ई. तक ब्रिटिश भारतीय सेना को 20 हज़ार आदमी गँवाकर तथा 15 करोड़ रुपया बर्बाद करके अफ़ग़ानिस्तान वापस लौट आना पड़ा।
*इसके बाद दोस्त मोहम्मद को रिहा कर अफ़ग़ानिस्तान भेज दिया गया। वहाँ वह फिर से अमीर की गद्दी पर बैठा और स्वतंत्र शासक की भाँति 1863 ई. तक जीवित रहा।  
*इसके बाद दोस्त मोहम्मद को रिहा कर अफ़ग़ानिस्तान भेज दिया गया। वहाँ वह फिर से अमीर की गद्दी पर बैठा और स्वतंत्र शासक की भाँति 1863 ई. तक जीवित रहा।  
*1855 तथा 1857 ई. में उसने ब्रिटिश सरकार से दो संधियाँ कीं। अमीर ने ईमानदारी से इन संधियों का पालन किया और 1857-58 ई. के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने में अंग्रज़ों की पूरी मदद की।
*1855 तथा 1857 ई. में उसने ब्रिटिश सरकार से दो संधियाँ कीं। अमीर ने ईमानदारी से इन संधियों का पालन किया और 1857-1858 ई. के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने में अंग्रज़ों की पूरी मदद की।
*दोस्त मुहम्मद के बाद उसका पुत्र [[शेरअली]] अफ़ग़ानिस्तान का अमीर बना।
*दोस्त मुहम्मद के बाद उसका पुत्र [[शेरअली]] अफ़ग़ानिस्तान का अमीर बना।


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अपने छोटे बेटे के साथ दोस्त मुहम्मद ख़ान
  • दोस्त मुहम्मद, अफ़ग़ानिस्तान का अमीर (सेनापति) था, जिसने 1826 से 1863 ई. तक शासन किया।
  • जब 1836 में रूस के इशारे पर फ़ारस ने हेरात पर हमला करने की धमकी दी, दोस्त मुहम्मद ने ब्रिटिश भारतीय सरकार से मैत्री के लिय यह शर्त रखी कि वह अमीर को पंजाब के महाराज रणजीत सिंह से पेशावर वापस लेने में मदद दे।
  • चूंकि ब्रिटिश भारतीय सरकार ने इस शर्त पर अमीर को मदद देने से इंकार कर दिया, अतएव अमीर ने 1837 ई. में अपने दरबार में रूस के राजदूत को आमंत्रित किया।
  • भारत का गवर्नर-जनरल लॉर्ड आकलैण्ड इससे कुपित हो गया और उसकी नीति की चरम परिणति 838 ई. में ब्रिटिश-अफ़ग़ान युद्ध में हुई, जो कि 1842 ई. तक चला।
  • युद्ध के दौरान दोस्त मुहम्मद ने 1840 ई. में आत्म समर्पण कर दिया और अंग्रेज़ उसे बंदी बनाकर कलकत्ता ले गए।
  • 1842 ई. तक ब्रिटिश भारतीय सेना को 20 हज़ार आदमी गँवाकर तथा 15 करोड़ रुपया बर्बाद करके अफ़ग़ानिस्तान वापस लौट आना पड़ा।
  • इसके बाद दोस्त मोहम्मद को रिहा कर अफ़ग़ानिस्तान भेज दिया गया। वहाँ वह फिर से अमीर की गद्दी पर बैठा और स्वतंत्र शासक की भाँति 1863 ई. तक जीवित रहा।
  • 1855 तथा 1857 ई. में उसने ब्रिटिश सरकार से दो संधियाँ कीं। अमीर ने ईमानदारी से इन संधियों का पालन किया और 1857-1858 ई. के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने में अंग्रज़ों की पूरी मदद की।
  • दोस्त मुहम्मद के बाद उसका पुत्र शेरअली अफ़ग़ानिस्तान का अमीर बना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 211।

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