"भरत (क़बीला)": अवतरणों में अंतर
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भरत अभिजात क्षत्रिय वर्ग का एक वेदकालीन कबीले का नाम है। [[ऋग्वेद]] तथा अन्य परवर्ती [[वैदिक साहित्य]] में भरत एक महत्त्वपूर्ण कुल का नाम है। ऋग्वेद के तीसरे और सातवें मण्डल में ये सुदास एवं त्रित्सु के साथ तथा छठे मण्डल में दिवोदास के साथ उल्लिखित हैं। इससे लगता है कि ये तीनों राजा भरतवंशी थे। परवर्ती साहित्य में भरत लोग प्रसिद्ध हैं।<ref>शतपथ ब्राह्मण (13.5.4 | भरत अभिजात क्षत्रिय वर्ग का एक वेदकालीन कबीले का नाम है। [[ऋग्वेद]] तथा अन्य परवर्ती [[वैदिक साहित्य]] में भरत एक महत्त्वपूर्ण कुल का नाम है। ऋग्वेद के तीसरे और सातवें मण्डल में ये सुदास एवं त्रित्सु के साथ तथा छठे मण्डल में दिवोदास के साथ उल्लिखित हैं। इससे लगता है कि ये तीनों राजा भरतवंशी थे। परवर्ती साहित्य में भरत लोग प्रसिद्ध हैं।<ref>शतपथ ब्राह्मण (13.5.4</ref> [[अश्वमेध यज्ञ]] कर्त्ता के रूप में भरत दौष्यन्ति का वर्णन करता है। | ||
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एक अन्य भरत शतानीक सामाजित का उल्लेख मिलता है, जिसने अश्वमेध यज्ञ किया।<ref>ऐतरेय ब्राह्मण (8.23,21 | एक अन्य भरत शतानीक सामाजित का उल्लेख मिलता है, जिसने अश्वमेध यज्ञ किया।<ref>ऐतरेय ब्राह्मण (8.23,21</ref> भरत दौष्यन्ति को दीर्घतमा मामतेय एवं शतानीक को सोमशुष्मा वाजप्यायन द्वारा अभिषिक्त किया गया वर्णन करता है। भरतों की भौगोलिक सीमा का पता उनकी काशीविजय तथा [[यमुना नदी|यमुना]] और [[गंगा नदी|गंगा]] तट पर यज्ञ करने से चलता है। [[महाभारत]] में कुरूओं को भरतकुल का कहा गया है। इससे ज्ञात होता है कि ब्राह्मणकाल में भरत लोग कुरू-पंचाल जाति में मिल गये थे। | ||
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भरतों की याज्ञिक क्रियाओं का पंचविंश ब्राह्मण<ref>पंचविंश ब्राह्मण (14.3,12;15.5,24 | भरतों की याज्ञिक क्रियाओं का पंचविंश ब्राह्मण<ref>पंचविंश ब्राह्मण (14.3,12;15.5,24</ref> में बार-बार उल्लेख आता है। [[ऋग्वेद]] <ref>ऋग्वेद (2.7.1,5; 4.25.4;5.16,19; तैत्तिरीय संहिता 2,5,9,1; शतपथ ब्राह्मण 1.4,2,2</ref> में [[भारत]] [[अग्नि]] का उल्लेख आया है। रांथ महाशय इस अग्नि से भरतों के योद्धा रूप की अभिव्यक्ति मानते हैं, जो सम्भव नहीं। ऋचाओं <ref>ऋचाओं 1.22,10; 1.42,9; 1.88,8; 2.1,11; 3,8;3.4,8 आदि</ref> में भारती देवी का उल्लेख है जो भरतों की देवी रक्षिका शक्ति है। उसका सरस्वती से सम्बन्ध भरतों को सरस्वती से सम्बन्धित करता है। | ||
==भारतवर्ष नामकरण== | ==भारतवर्ष नामकरण== | ||
इस महाद्वीप का भरतखण्ड तथा देश का भारतवर्ष नामकरण भरत जाति के नाम पर ही हुआ है। [[ऋषभदेव]] के पुत्र भरत अथवा [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|दौष्यन्ति]] भरत के नाम पर देश का नाम भारत होने की परम्परा परवर्ती है।<ref>हिन्दू धर्मकोश पेज नं-469</ref> | इस महाद्वीप का भरतखण्ड तथा देश का भारतवर्ष नामकरण भरत जाति के नाम पर ही हुआ है। [[ऋषभदेव]] के पुत्र भरत अथवा [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|दौष्यन्ति]] भरत के नाम पर देश का नाम भारत होने की परम्परा परवर्ती है।<ref>हिन्दू धर्मकोश पेज नं-469</ref> | ||
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भरत | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- भरत (बहुविकल्पी) |
भरत अभिजात क्षत्रिय वर्ग का एक वेदकालीन कबीले का नाम है। ऋग्वेद तथा अन्य परवर्ती वैदिक साहित्य में भरत एक महत्त्वपूर्ण कुल का नाम है। ऋग्वेद के तीसरे और सातवें मण्डल में ये सुदास एवं त्रित्सु के साथ तथा छठे मण्डल में दिवोदास के साथ उल्लिखित हैं। इससे लगता है कि ये तीनों राजा भरतवंशी थे। परवर्ती साहित्य में भरत लोग प्रसिद्ध हैं।[1] अश्वमेध यज्ञ कर्त्ता के रूप में भरत दौष्यन्ति का वर्णन करता है।
शतानीक सामाजित
एक अन्य भरत शतानीक सामाजित का उल्लेख मिलता है, जिसने अश्वमेध यज्ञ किया।[2] भरत दौष्यन्ति को दीर्घतमा मामतेय एवं शतानीक को सोमशुष्मा वाजप्यायन द्वारा अभिषिक्त किया गया वर्णन करता है। भरतों की भौगोलिक सीमा का पता उनकी काशीविजय तथा यमुना और गंगा तट पर यज्ञ करने से चलता है। महाभारत में कुरूओं को भरतकुल का कहा गया है। इससे ज्ञात होता है कि ब्राह्मणकाल में भरत लोग कुरू-पंचाल जाति में मिल गये थे।
याज्ञिक क्रिया
भरतों की याज्ञिक क्रियाओं का पंचविंश ब्राह्मण[3] में बार-बार उल्लेख आता है। ऋग्वेद [4] में भारत अग्नि का उल्लेख आया है। रांथ महाशय इस अग्नि से भरतों के योद्धा रूप की अभिव्यक्ति मानते हैं, जो सम्भव नहीं। ऋचाओं [5] में भारती देवी का उल्लेख है जो भरतों की देवी रक्षिका शक्ति है। उसका सरस्वती से सम्बन्ध भरतों को सरस्वती से सम्बन्धित करता है।
भारतवर्ष नामकरण
इस महाद्वीप का भरतखण्ड तथा देश का भारतवर्ष नामकरण भरत जाति के नाम पर ही हुआ है। ऋषभदेव के पुत्र भरत अथवा दौष्यन्ति भरत के नाम पर देश का नाम भारत होने की परम्परा परवर्ती है।[6]
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