|
|
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 10 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
| {| width=100% class="bharattable" border="1"
| |
| |-
| |
| |+'''रचनाऐं'''
| |
| |-valign="top"
| |
| |
| |
| {| width=100%
| |
| |-
| |
| ! '''ये गजरे तारों वाले'''
| |
| |-
| |
| |<poem>इस सोते संसार बीच,
| |
| जग कर, सज कर रजनी बाले।
| |
| कहाँ बेचने ले जाती हो,
| |
| ये गजरे तारों वाले?
| |
| मोल करेगा कौन,
| |
| सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी।
| |
| मत कुम्हलाने दो,
| |
| सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी॥
| |
| निर्झर के निर्मल जल में,
| |
| ये गजरे हिला हिला धोना।
| |
| लहर हहर कर यदि चूमे तो,
| |
| किंचित् विचलित मत होना॥
| |
| होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित,
| |
| लहरों ही में लहराना।
| |
| 'लो मेरे तारों के गजरे'
| |
| निर्झर-स्वर में यह गाना॥
| |
| यदि प्रभात तक कोई आकर,
| |
| तुम से हाय! न मोल करे।
| |
| तो फूलों पर ओस-रूप में
| |
| बिखरा देना सब गजरे॥</poem>
| |
| |}
| |
| | valign="top"|
| |
| {| width=100%
| |
| |-
| |
| ! '''ये गजरे तारों वाले'''
| |
| |-
| |
| |<poem>धूम्र जिसके क्रोड़ में है, उस अनल का हाथ हूँ मैं,
| |
| नव प्रभा लेकर चला हूँ, पर जलन के साथ हूँ मैं
| |
| सिद्धि पाकर भी, तुम्हारी साधना का..
| |
| ज्वलित क्षण हूँ।
| |
| एक दीपक किरण-कण हूँ
| |
|
| |
|
| व्योम के उर में, अपार भरा हुआ है जो अँधेरा
| |
| और जिसने विश्व को, दो बार क्या सौ बार घेरा
| |
| उस तिमिर का नाश करने के लिए,
| |
| मैं अटल प्रण हूँ।
| |
| एक दीपक किरण-कण हूँ।
| |
|
| |
| शलभ को अमरत्व देकर,प्रेम पर मरना सिखाया
| |
| सूर्य का संदेश लेकर,रात्रि के उर में समाया
| |
| पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी
| |
| तुम्हारी ही शरण हूँ।
| |
| एक दीपक किरण-कण हूँ।</poem>
| |
| |}
| |
| | valign="top"|
| |
| {| width=100%
| |
| |-
| |
| ! '''खोलो प्रियतम खोलो द्वार...'''
| |
| |-
| |
| |<poem>शिशिर कणों से लदी हुई
| |
| कमली के भीगे हैं सब तार
| |
| चलता है पश्चिम का मारुत
| |
| ले कर शीतलता का भार
| |
|
| |
| अरुण किरण सम कर से छू लो
| |
| खोलो प्रियतम खोलो द्वार....
| |
|
| |
| डरो ना इतना धूल धूसरित
| |
| होगा नहीं तुम्हारा द्वार
| |
| धो डाले हैं इनको प्रियतम
| |
| इन आँखों से आँसू ढ़ार
| |
|
| |
| अरुण किरण सम कर से छू लो
| |
| खोलो प्रियतम खोलो द्वार...</poem>
| |
| |}
| |
| |}
| |