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| ;गायकवाड़
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| गायकवाड़ एक [[मराठा]] ख़ानदान था, जो [[पेशवा बाजीराव प्रथम]] (1720-40) के शासनकाल में सत्ता में आया। इस वंश के संस्थापक दामजी प्रथम के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। उसके भतीजे पीलाजी (1721-32) के जीवन काल में यह ख़ानदान प्रमुखता में आया। पीलाजी राजा [[साहू]] के सेनापति खाण्डेराव दाभाड़े के गुट का था। उसने 1720 ई. में [[सूरत]] से 50 मील पूर्व सौनगढ़ में एक दुर्ग का निर्माण कराया। 1731 ई. में वह बिल्हापुर अथवा बालापुर के युद्ध में खाण्डेराव के पुत्र और उत्तराधिकारी त्र्यम्बकराव दाभाड़े की तरफ़ से लड़ा। किन्तु इस युद्ध में दाभाड़े की पराजय और मृत्यु हो जाने पर उसने पेशवा बाजीराव प्रथम के साथ संधि कर ली। पेशवा ने उसे [[गुजरात]] पर निगाह रखने को कहा। गायकवाड़ ने अपना मुख्य ठिकाना [[बड़ौदा]] का बनाया। किन्तु पीलाजी की 1732 ई. में हत्या कर दी गई और उसका पुत्र दामाजी द्वितीय उत्तराधिकारी बना, जो सन 1761 ई. में [[पानीपत युद्ध|पानीपत के युद्ध]] में मौजूद था और बाद में भाग निकला। 1768 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
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| ==उत्तराधिकारी==
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| दामाजी द्वितीय के कई पुत्र थे, जिनमें 1768 से 1800 ई. तक लगातार उत्तराधिकारी का युद्ध चलता रहा। 1800 ई. में दामाजी के बड़े लड़के गोविन्दराव का पुत्र सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने 1819 ई. तक शासन किया। इस दौरान गायकवाड़ वंश ने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के साथ शान्तिपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखा और बिना किसी युद्ध के 1805 ई. में आश्रित संधि कर ली। गायकवाड़ वंश [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के प्रति वफ़ादार बना रहा और इस कारण दूसरे और तीसरे आंग्ल-मराठा युद्धों में अन्य मराठा सरदारों को जन-धन की जो अपार क्षति उठानी पड़ी, उससे बच गया। आनन्दराव का उत्तराधिकारी उसका भाइर सयाजी द्वितीय (1819-47) बना और उसके बाद उसके तीन पुत्र गणपतिराव (1847-56), खाण्डेराव (1856-70) और मल्हारराव (1870-75) क्रमश: सिंहासन पर आसीन हुए। मल्हारराव पर कुशासन और ब्रिटिश रेजीडेंट कर्नल फ़ेयरे को विष देकर मरवा डालने का अभियोग चलाया गया। उसे गिरफ्तार कर लिया गया और वाइसराय लार्ड नार्थब्रुक द्वारा नियुक्त आयोग के सामने उस पर मुक़दमा चलाया गया। हत्याभियोग पर आयोग के सदस्यों में मतभेद था, अत: उसे बरी कर दिया गया, किन्तु दुराचरण और कुशासन के आरोप में उसे गद्दी से उतार दिया गया। मल्हारराव के कोई संतान नहीं थी, इसलिए [[भारत]] सरकार ने सयाजी राव नामक बालक को, जिसका गायकवाड़ वंश से दूर का सम्बन्ध था, गद्दी पर बैठा दिया और नये शासक के अल्पवयस्क रहने तक प्रशासन सर टी. माधवराव के हाथों के सुपुर्द कर दिया। सयाजीराव तृतीय ने 1875 ई. में शासन सम्भाला और 1933 ई. में उसकी मृत्यु हुई। उसने अपने को देशी रजवाड़ों में सर्वाधिक योग्य और जागरूक शासक सिद्ध किया और [[बड़ौदा]] को भारत का सर्वाधिक उन्नतिशील राज्य बना दिया।<ref>पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-124</ref>
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