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'''डॉल्फिन, भारत का राष्‍ट्रीय जलीय जीव'''
*[[विश्वामित्रकल्प]]
{{tocright}}
*[[विश्वामित्रकल्पतरु]]
वर्ष 2005 से विश्व प्रकृति निधि और सेवियर्स संस्था ने इस मछली को बचाने की मुहिम चलाई है। इसी मुहिम के तहत सरकार ने 5 अक्तूबर, 2009 को डाल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है। मीठे पानी की डॉलफिन [[भारत]] का राष्‍ट्रीय जलीय जीव है। यह स्‍तनधारी जंतु पवित्र [[गंगा नदी|गंगा]] की शुद्धता को भी प्रकट करता है, क्‍योंकि यह केवल शुद्ध और मीठे पानी में ही जीवित रह सकता है। इन्‍हें स्‍थानीय तौर पर सुसु कहा जाता है क्‍योंकि यह सांस लेते समय ऐसी ही आवाज निकालती है। नदी में पाई जाने वाली डॉलफिन भारत की एक महत्‍वपूर्ण संकटापन्‍न प्रजाति है और इसलिए इसे वन्‍य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में शामिल किया गया है।
*[[विश्वामित्रसंहिता]]
 
*[[विश्वेश्वरनिबन्ध]]
==डॉल्फिन के अन्य नाम==
*[[विश्वेश्वरपद्धति]]
*अग्रेजी में प्‍लेटेनिस्‍टा गेंगेटिका के नाम से जाना जाता हैं।
*[[विश्वेश्वरीपद्धति]]
*हिन्दी में सूंस के नाम से जाना जाता हैं।
*[[विश्वेश्वरीस्मृति]]
*बंगाल में सुसक या सिसुक के नाम से जाना जाता हैं।
*[[विषघटिकाजननशान्ति]]
*संस्कृत में सिसुमार के नाम से जाना जाता हैं।
*[[विष्णुतत्त्वप्रकाश]]
 
*[[विष्णुतत्त्वविनिर्णय]]
==रूप और आकृति==
*[[विष्णुतीर्थीयव्याख्यान]]
*डॉलफिन मछली लंबे नोकदार मुंह वाली होती है और इसके ऊपरी तथा निचले जबड़ों में दांत भी दिखाई देते हैं।
*[[विष्णुधर्ममीमांसा]]
*इनकी आंखें लेंस रहित होती हैं और इसलिए ये केवल प्रकाश की दिशा का पता लगाने के साधन के रूप में कार्य करती हैं।
*[[विष्णुधर्मसूत्र]]
*डॉलफिन मछलियां सबस्‍ट्रेट की दिशा में एक पख के साथ तैरती हैं और श्रिम्‍प तथा छोटी मछलियों को निगलने के लिए गहराई में जाती हैं।
*[[विष्णुघर्मोत्तरामृत]]
*डॉलफिन मछलियों का शरीर मोटी त्‍वचा और हल्‍के भूरे-स्‍लेटी त्‍वचा शल्‍कों से ढका होता है और कभी कभार इसमें गुलाबी रंग की आभा दिखाई देती है।
*[[विष्णुपूजाक्रदीपिका]]
*इसके पख बड़े और पृष्‍ठ दिशा का पख तिकोना और कम विकसित होता है।
*[[विष्णुपूजापद्धति]]
*इस स्‍तनधारी जंतु का माथा होता है जो सीधा खड़ा होता है और इसकी आंखें छोटी-छोटी होती है।
*[[विष्णुपूजाविधि]]
*डॉल्फिन एक स्तनधारी जीव है, जो मीठे पानी में रहने के कारण मछली होने का भ्रम पैदा करती है।
*[[विष्णुप्रतिष्ठापद्धति]]
*इसमें देखने की क्षमता नहीं होती हैं, लेकिन सोनार यानी ध्‍वनि प्रक्रिया बेहद तीव्र होती हैं, जिसके बलबूते पर यह अपनों को हमेशा बचाने में कामयाब हो जाती हैं।
*[[विष्णुप्रतिष्ठाविघिदर्पण]]
*मादा डॉल्फिन 2.70 मीटर लंबी होती है और उसका वजन 100 से 150 किलो तक होता है।
*[[विष्णुभक्तिचन्द्र]]
*नर डॉल्फिन मादा के मुकाबले छोटा होता है।
*[[विष्णुभक्तिचन्द्रोदय]]
*डॉल्फिन शुडूल वन प्रजाति का जलीय जीव है, जो पूरी तरह से नेत्रहीन है।
*[[विष्णुभक्तिरहस्य]]
*यह जीव किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है, बल्कि मानव के साथ मित्रवत् संबंध बनाने को आतुर रहता है।
*[[विष्णुमूतिप्रतिष्ठाविघि]]
*यह पानी से निकल कर पांच मिनट में सांस लेती है,  फिर आठ घंटे तक गहरे पानी में चली  जाती है और आसानी से पानी के अंदर सांस लेती रहती है। सांस लेने के लिए जब यह पानी से उछाल लेती है तो इसका उछाल दर्शनीय होता है।
*[[विष्णुयागपद्धति]]
*प्रजनन समय जनवरी से जून तक रहता है। यह एक बार में सिर्फ एक बच्चे को जन्म देती है।
*[[विष्णुरहस्य]]
 
*[[विष्णुश्राद्ध]]
==भोजन==
*[[विष्णुश्राद्धपद्धति]]
*डॉल्फिन का भोजन प्रायः मछलियां ही होती हैं।
*डाल्फिन की घ्राणशक्ति अत्यंत तीव्र होती है। शक्तिशाली घ्राणशक्ति तथा प्रतिध्वनि निर्धारण की क्षमताओं से यह अपने शिकार का पता लगाती है।
*छोटी मछलियों को निगलने में डॉल्फिन को बहुत मजा आता है।
 
==निवास की विशेष नदिया==
डॉल्फिन की प्रजाति को भारत, [[नेपाल]], [[भूटान]] और [[बंगलादेश]] की गंगा, [[मेघना]] और [[ब्रह्मपुत्र]] नदियों में तथा बंगलादेश की [[कर्णफूली]] नदी में देखा जा सकता है।
 
[[उत्तर प्रदेश]] के पांच जिलों [[मेरठ]], [[बिजनौर]], [[मुरादाबाद]], [[गाजियाबाद]] और [[बुलंदशहर]] में बह रही गंगा नदी में डॉल्फिनें रहती हैं। [[बिजनौर]] बैराज से लेकर [[नरौरा]] बैराज तक 165 किमी के जल क्षेत्र में ये विचरण करती हैं। गढ़ से लेकर नरौरा तक के 86 किमी तक का क्षेत्र रामसर क्षेत्र घोषित है, जिसमें यह प्रजनन भी करती हैं। उनकी संख्या बढ़ाने के लिए अब यहां प्रयास भी किए जा रहे हैं। सेवियर्स संस्था की सचिव स्वाति शर्मा और विश्व प्रकृति निधि के अधिकारियों की मानें, तो रामसर साइट में वर्ष 2005 में डॉल्फिनों की संख्या 35 थी, जो वर्ष 2010 में बढ़कर 53 हो गई है। डॉल्फिनों के व्यवहार को जानने के लिए टोक्यो यूनिवर्सिटी, जापान और आईआईटी जैसे संस्थान शोध भी कर रहे हैं और इसी के लिए बुलंदशहर के कर्णबास में गंगा नदी के अंदर विभिन्न प्रकार के उपकरण भी लगाए गए हैं।
 
उत्तर भारत की पांच प्रमुख नदियों [[यमुना नदी|यमुना]], [[चंबल नदी|चंबल]], [[सिन्धु नदी|सिंध]], [[क्वारी]] [[पहुज]] के संगम स्थल 'पंचनद स्थल' को डॉल्फिन के लिये सबसे खास समझा जा रहा है क्योंकि यहां पर एक साथ 16 से अघिक डॉल्फिनों को एक समय में एक साथ पर्यावरण विशेषज्ञों ने देखा है। इसी आधार पर देश भर के प्राणी वैज्ञानिक 'पंचनद स्थल' को देश के डॉल्फिनों के लिए संरक्षित करने की मांग कर रहे थे।
 
डॉल्फिन की पूरे देश में करीब 2000 की तादाद इस वक्त आंकी जा रही हैं। गंगा और इसकी सहायक नदियों में डॉल्फिन पाई जाती 
 
हैं। चंबल नदी में डॉल्फिनों की संख्‍या इस वक्त 75 के करीब आंकी गई है, जबकि वर्ष 2000 में यह संख्या 100 के करीब आंकी गई
 
थी। वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा मे काम कर रही देश की सबसे बडी पर्यावरणीय संस्था 'डब्लू डब्लू एफ' के 2008 के सर्वेक्षण के
 
मुताबिक उत्तर प्रदेश में चंबल नदी में 78, यमुना नदी में 47, [[बेतवा नदी]] में 5, [[केन नदी]] में 10, [[सोन नदी]] में 9, गंगा नदी में 35 और [[घाघरा नदी]] में सबसे अघिक 295  डॉल्फिनें हैं। पूरे देश में डॉल्फिन गंगा और उसकी सहायक नदियों के अलावा ब्रह्मपुत्र और [[मेघना नदी]] में भी पाई जाती है।
 
==संरक्षण के प्रयास==
डॉल्फिन को बचाने की दिशा में सबसे पहला कदम 1979 में चंबल नदी में राष्ट्रीय सेंचुरी बना कर किया गया था। इसके साथ-साथ घडि़याल की ही तरह डॉल्फिन को अन्य वन्य जीवों की तरह से संरक्षण मिला। डॉल्फिन को सुडूल वन में वन्य जीव प्राणी संरक्षण अघिनियम 1972 में शामिल करके रखा गया है। वर्ष 1991 में बिहार के विक्रमशिला में 'गैंगटिक रिवर' के नाम से इसे [[सुल्तानगंज]] से लेकर पहलगाम ([[जम्मू]]) तक संरक्षित करने की कवायद भी की गई, परंतु यह काफी नहीं रही।
 
सबसे बडी खासियत यही है कि नदियों के संगम स्थलों पर सबसे अधिक डॉल्फिनें नजर आती हैं। यही एक कारण है कि उत्तर प्रदेश के [[इटावा]] जिले में 'पंचनदा स्थल' पर वर्ष 2000 में एक साथ 16 डॉल्फिनें देखी गईं। ये देश में डॉल्फिनों की एक साथ देखी जाने वाली सबसे बड़ी संख्‍या है। इस स्थल पर प्रचुर मात्रा में डॉल्फिनों के लिए भोजन मिलता है।
 
1982 में देश की सभी नदियों में डॉल्फिनों की संख्या 4000 से लेकर 5000 के बीच आंकी गई थी, जो अब सिमट कर 2000 के करीब रह गई है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल 100 डॉल्फिनें विभिन्न तरीकों से मौत की शिकार हो जाती हैं। इनमें सबसे मुख्‍य वजह मछली के शिकार के दौरान जाल में फंस जाना है। कुछ डॉल्फिनों को तस्कर लोग तेल निकालने के इरादे से मार डालते हैं।
 
==परंपरागत हिंदू विश्वास के अनुसार==
धार्मिक मान्यताओं में जिस प्रकार से विभिन्न देवी-देवताओं की सवारियां होती हैं उसी प्रकार गंगा की सवारी डॉल्फिन (मकर) ही है। [[भागीरथ]] जब भगवान [[शंकर]] की जटाओं से गंगा को निकाल कर ले जा रहे थे, तब डॉल्फिन ही उनको रास्ता दिखा रही थी। तभी से यह मान्यता प्रचलित है कि गंगा की सवारी डॉल्फिन है।
 
==घटती संख्या पर चिंतन==
मां गंगा की सवारी समझी जाने वाले जलचर डॉल्फिन का अस्तित्व खतरे में है, इसे संरक्षित करने की कवायद बड़े जोरशोर से शुरू की गई है, नदियों के प्रदूषण ने इसके जीवन को सबसे बड़ा खतरा पैदा किया है, डॉल्फिन को बचाने की पहल कितनी सार्थक होगी इस पर कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता।
 
डॉल्फिन ऐसा जलचर जीव है, जिसका अस्तित्व खतरे में हैं। पिछले डेढ़ दश्‍ाक से इनकी संख्या में पचास फीसदी से अधिक की गिरावट आई है। डॉल्फिन को बचान के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहल करते हुए इसे 'राष्‍ट्रीय जलीय जीव' तो घोषित कर दिया है, परंतु जिस प्रकार से देश की नदियों में कारखानों का कचरा गिर रहा है, उससे विषेशज्ञ चिंतित हैं कि जलीय जीव कहीं केवल किताबों का हिस्सा न बन कर रह जाएं। आश्‍चर्यजनक तो यह है कि गंगा की धरोहर समझी जाने वाली डॉल्फिन अब गंगा में ही काफी कम रह गईं है। चंबल नदी में तो इनकी संख्या अप्रत्याशित है।
 
डॉल्फिन का शिकार दंडनीय अपराध है। शिकार करते हुए पकड़े जाने पर छह साल की कारावास तथा पचास हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। डॉल्फिन के अस्तित्व पर सबसे बड़ा संकट प्रदूषत पानी की वजह से आया है। इसके संरक्षण व संवर्धन की आवश्‍यकता है। यदि इसे बचाने की अभी से पहल की गई तो इसे बचाया जा सकता है।
 
चंबल क्षेत्र में गत वर्ष 'वर्ल्‍ड वाइल्ड फेडरेशन' व 'जीवाजी यूनिवर्सिटी' ने अध्ययन किया था, तो इनके अध्ययन में 78 से 80 डॉल्फिनें देखी गई थीं। यह एक बार में सिर्फ एक बच्चे को जन्म देती है। ऐसी स्थिति में इसे संरक्षित किया जाना नितांत आवश्‍यक है।
 
डॉल्फिन के अस्तित्व को बचाने के लिए जिस प्रकार से प्रधानमंत्री ने पहल की है यदि जलीय जीव प्राणी को बचाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे तो इस मनमोहक जीव को बचाया जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि देश में गंगा, घाघरा, [[गिरवा]], चंबल, बृह्मपुत्र सहित गंगा की सहायक नदियों में डॉल्फिन पाईं जातीं हैं।
 
 
==मृत्यु का कारण==
*इस प्रजाति की संख्‍या में गिरावट के मुख्‍य कारण हैं अवैध शिकार और नदी के घटते प्रवाह, भारी तलछट, बेराज के निर्माण के कारण इनके अधिवास में गिरावट आती है और इस प्रजाति के लिए प्रवास में बाधा पैदा करते हैं।
*नदियों का उथला होना यानी प्राकृतिक वास स्थलों का नष्‍ट होना,नदियों में प्रदूषण होना और नदियों पर बन रहे बांध भी  डॉल्फिनों के मुक्‍त विचरण को कहीं ना कही प्रभावित करते हैं।
*जब यह सांस लेने के लिए पानी से उछाल लेती है, तभी यह मछलियों के शिकार के लिए लगाए जाल में फंस जाती है और शिकारियों की कैद में चली जाती है।
*आंकड़े गवाह है कि प्रतिवर्ष तकरीबन एक सैकड़ से अधिक डॉल्फिन की मौत विभिन्न कारणों से हो रही है जो पर्यावरणविदों के लिए चिंता का सबब बनी हुई है।
*डॉल्फिन के लिए सबसे बड़ी समस्या है, गंगा पर बैराजों का निर्माण। इस निर्माण के कारण गंगा में गंदगी और रेत बढ़ रही हैं और उसका जल स्तर घट रहा है।
*इसके अलावा 'पलेज’ की खेती भी इसके लिए एक बड़ी समस्या बनी है, जिसमें प्रयोग होने वाली रासायनिक खाद डॉल्फिन के जीवन को निगल रही है।
*खेती के कामों और उद्योग में कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण प्रदूषित गंगा विलुप्तिकरण के कगार पर पहुंच चुके भारत के राष्ट्रीय जल जीव डॉल्फिन के लिए खतरनाक बन गई है।
*कृषि भूमि में कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग डॉल्फिनों के अस्तित्व के लिए खतरा है क्योंकि डॉल्फिनों के शरीर की चयापचय क्षमता बहुत कम होती है।
 
===अवैध शिकार===
अवैध शिकार भी डॉल्फिन की संख्या में लगातार गिरावट ला रहा है। अवैध शिकार की वजह है कि डॉल्फिन के शिकर से इसके जिस्म से निकलने वाले तेल को मर्दानगी बढ़ाने एवं हडि्डयों को मजबूत करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि इसके तेल की बाजार में कीमतें भी अधिक होती हैं। इसलिए शिकारियों की नजरों में डॉल्फिन एक धन कमाने का जरिया बन चुकी है।
 
==लुप्त होती डॉलफिन==
लेकिन निरंतर बढ़ते प्रदूषण से न सिर्फ गंगा मैली हो गई, बल्कि इसकी गोद में पल रहा हमारा राष्ट्रीय जलीय जीव, डॉल्फिन का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया। डॉल्फिन के संबंध में माना जाता है कि यह अति प्राचीन मछली है, जो मानव समाज की दोस्त है। कहा जाता है कि भगीरथ की तपस्या से जब गंगा स्वर्ग से उतरी थी, तब उसकी धारा में यह मछली भी थी। बहरहाल, डॉल्फिनों को बचाने की सबसे पहली मुहिम सम्राट [[अशोक]] के काल में शुरू हुई थी, पर उसके बाद लंबे समय तक इसे बचाने का कोई प्रयास नहीं हुआ और यह शिकारियों का शिकार होती रही।
 
लेकिन एक अच्छा संकेत यह है कि अब आम आदमी भी इस मछली को बचाने के लिए आगे आ रहा है। संस्था के प्रयासों से जहां पांच ज़िलों के करीब सौ स्कूलों के बच्चे इस जीव के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चला रहे हैं, वहीं नदी में रहकर अपना
 
जीवन यापन करने वाले निषाद समुदाय के लोग भी इसे बचाने में सहयोग दे रहे हैं। चूंकि गंगा की गोद में पलने वाली यह मछली जन्मजात अंधी होती है और सोनर तरंग के माध्यम से चलती है। जब यह तरंग सूत केजाल से टकराकर वापस लौटती है, तो उसे सचेत कर देती है। लेकिन नायलॉन के जाल में यह तरंग पार हो जाती है, जिस कारण यह उसमें फंस जाती है। यदि तीन मिनट तक वह ऊपर नहीं आती, तो पानी के अंदर ही दम घुटने से उसकी मौत हो जाती है।
 
लेकिन डॉल्फिनों को बचाने के लिए और अधिक प्रयास की जरूरत है। अभी इनके संरक्षण के लिए प्रदेश के पांच जिलों में ही कार्य हो रहे हैं। यदि अन्य जिलों के लोगों को भी इससे जोड़ लिया जाए, तो गंगा की स्वच्छता का प्रमाण कही जाने वाली डॉल्फिनें गंगा में आसानी से नजर भी आएंगी।

08:09, 27 अगस्त 2011 के समय का अवतरण