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कोशिका तथा तंतु
*[[विश्वामित्रकल्प]]
जीवों की सूक्ष्म संरचना और संरचना के विवरणों का, जिन्हें नग्न आँख से देखना असम्भव था, अध्ययन सूक्ष्मदर्शी की खीज के बाद (XVII शताब्दो ) सम्भव हो सका। सूक्ष्मदर्शी द्वारा किये गये आरम्भिक अध्ययनों ने ही सिद्ध कर दिया कि पौधे पृथक-पृथक कोशों या कोशिकाओं से बने हैं (यहीं से इसका नाम कोशिका पड़ा)। बाद में अनुसंधानकर्ताओं ने जीव-जंतुओं में भी कोशिकाओं को देखा। लगभग दो शताब्दियों तक यथार्थ तथ्यों का संकलन होता रहा जो कोशिका सिद्धांत-जीवों की कोशिकीय संरचना का सिद्धांत- के आधार बने।
*[[विश्वामित्रकल्पतरु]]
विशेषतः, जंतुओं व मानव के विभिन्न तंतुओं व अंगों की सूक्ष्म संरचना के बारे में विशाल सामग्री XIX शताब्दी के आरम्भ में चेक वैज्ञानिक पूरकिन्ये तथा इसके शिष्यों द्वारा एकत्रित की गई थी।
*[[विश्वामित्रसंहिता]]
सन् 1831 में जर्मन वैज्ञानिक ट॰ शवानी ने कोशिका-सिद्धांत का एक मुख्य विचार प्रस्तुत किया : “कोशिका संरचना सभी पौधों और जीवों के लिये सामान्य है।“ प्रकृति विज्ञान के विकास में जीवों की कोशिका-सिद्धांत की खोज  का बहुत महत्त्व है। फ्रे॰ ऐंगेल्स ने इस खोज की प्रशंसा करते हुए इसे मानव की महानतम उपलब्धियों-ऊर्जा-संरक्षण नियम तथा विकासवाद के तुल्य माना। यह समझ में भी आता है, क्योंकि कोशिका सिद्धांत ने जीव-जगत की संरचना में समानता को दिखाया, जिसके आधार पर उत्पत्ति की समानता यानी विकासवाद का विकास हुआ। वस्तुतः, कोशिका सिद्धांत डारविन के विकासवाद की एक आधारशिला थी। इसकी मदद से चिकित्सकों को उन परिवर्तनों को समझने में आसानी हुई, जो जीवों में रोगी अवस्था में होता हैं। इसके बिना उपचार-विज्ञान का सफल विकास असम्भव था।
*[[विश्वेश्वरनिबन्ध]]
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*[[विश्वेश्वरपद्धति]]
कोशिकाएँ
*[[विश्वेश्वरीपद्धति]]
कोशिकाएँ सप्राण द्रव्य के अस्तित्व के मूल रूप हैं। वनस्पति तथा प्राणी जीव-कोशिकाओं से बने हैं। कोशिका-द्रव्य तथा केन्द्रक कोशिकाओं के दो मुख्य संघटक हैं।
*[[विश्वेश्वरीस्मृति]]
वनस्पति कोशिका :-
*[[विषघटिकाजननशान्ति]]
वनस्पति कोशिकाओं का रूप लगभग सममित होता है जो प्रायः चतुर्भुजी होता है। इस का कारण उनमें सेलुलोस नामक विशेष पदार्थ से बनी सुनिश्चित झिल्ली की विद्यमानता है। कोशिका-द्रव्य झिल्ली के नीचे होता है तथा केन्द्रक कोशिका के केन्द्र में स्थित होते है। कोशिकाओं में रसधानियाँ (vacnoles) या कोशिका रस के बुलबुले भी होते हैं।
*[[विष्णुतत्त्वप्रकाश]]
प्राणि कोशिका :-
*[[विष्णुतत्त्वविनिर्णय]]
प्राणि कोशिकाओं की भिन्न-भिन्न आकृतियाँ होती हैं : ये गोलाकार, प्रिज़्मीय, तर्क्वाकार, द्रुमाकृतिक आदि होती हैं; प्राणि कोशिकाओं की झिल्ली सुनिश्चित नहीं होती है। केन्द्रक प्रायः कोशिकाओं के केन्द्र में होता है लेकिन वह झिल्ली के समीप भी स्थित हो सकता है। नियमतः, कोशिकाएँ सूक्ष्म होती हैं (जैसे, मछली और जलस्थलचरों के अंडाणु)।
*[[विष्णुतीर्थीयव्याख्यान]]
उपापचय, उत्तेजनशीलता (वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाने की क्षमता) और जनन (विभाजन) प्रत्येक कोशिका के मूल, अनिवार्य गुण हैं। कोशिका के प्रकायों की मिश्रता उसकी संरचना एवं संघटन को निर्धारित करती है। कोशिकीय पदार्थ मिश्रित कार्बनिक पदार्थों- प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, और जल तथा अकार्बनिक लवणों का कोलॉइडी तंत्र होता है। कोशिका के भिन्न गठनों का आधारभूत पदार्थ प्रोटीन होता है जो उसके मूल अनिवार्य गुणों को निर्धारित करता है। वसा कोशिकीय झिल्ली और सूत्रकणिका (mitochondria) का भाग बनाते हैं तथा ऊर्जा उत्पन्न करने वाले पदार्थ का कार्य करते हैं। कार्बोहाइड्रेट ऊर्ज का मुख्य स्रोत होता हैं, जो कोशिकाओं में घटने वाली जैव क्रियाओं के लिए अनिवार्य है। जल प्रोटीन एवं अन्य कार्बनिक पदार्थों के साथ युग्मित है तथा अकार्बनिक लवणों के साथ मिलकर कोलॉइड के रूप में कोशिकीय भोतिकीयरासायनिक गुण निश्वित करता है। यह नोट करना चाहिये कि कोशिकीय द्रव्य में लवण निश्चित सान्द्रता में विद्यमान होते हैं और कोशिका में एक स्थिर परासरणी दाव बनाये रखते हैं।
*[[विष्णुधर्ममीमांसा]]
प्रकिण्व :-
*[[विष्णुधर्मसूत्र]]
प्रकिण्व (enzymes)
*[[विष्णुघर्मोत्तरामृत]]
*[[विष्णुपूजाक्रदीपिका]]
*[[विष्णुपूजापद्धति]]
*[[विष्णुपूजाविधि]]
*[[विष्णुप्रतिष्ठापद्धति]]
*[[विष्णुप्रतिष्ठाविघिदर्पण]]
*[[विष्णुभक्तिचन्द्र]]
*[[विष्णुभक्तिचन्द्रोदय]]
*[[विष्णुभक्तिरहस्य]]
*[[विष्णुमूतिप्रतिष्ठाविघि]]
*[[विष्णुयागपद्धति]]
*[[विष्णुरहस्य]]
*[[विष्णुश्राद्ध]]
*[[विष्णुश्राद्धपद्धति]]

08:09, 27 अगस्त 2011 के समय का अवतरण