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[[चित्र:Rewalsar-Lake-Mandi.jpg|thumb|250px|रिवालसर झील, [[मंडी हिमाचल प्रदेश|मंडी]]]]
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[[हिमाचल प्रदेश]] का गौरव बढ़ाने वाली अनेक सुंदर झीलों में रिवालसर झील अपना विशेष स्थान रखती है। घने वृक्षों तथा ऊँचे पहाड़ों से घिरी रिवालसर झील प्राकृतिक सौंदर्य के आकर्षण का केंद्र है। [[मंडी हिमाचल प्रदेश|मंडी]] से 24 किमी दूर तथा समुद्रतल से 1350 मीटर की ऊँचाई पर स्थित रिवालसर झील के किनारे विभिन्न धर्मों के कुछ पूजनीय स्थल हैं। मुख्य रूप से यहाँ [[बौद्ध धर्म]] के अनुयायी रहते हैं।
 
==प्राकृतिक सौंर्न्दय==
रिवालसर झील पर अकसर मिट्टी के टीले तैरते हुए देखे जा सकते हैं, जिन पर सरकण्डों वाली ऊँची घास लगी होती है। टीलों के तैरने की अद्भुत प्राकृतिक प्रक्रिया ने रिवालसर झील को सदियों से एक पवित्र झील का दर्जा दिला रखा है। वैज्ञानिक तर्क चाहे कुछ भी हो, परंतु टीलों का चलना दैविक चमत्कार माना जाता है। स्थानीय लोग कहते हैं कि प्रकृति की यह लीला केवल पुण्य कर्म करने वाले लोगों को ही दिखाई देती है।
 
==धार्मिक स्थल==
रिवालसर बौद्ध गुरु एवं तांत्रिक पद्मसंभाव की साधना स्थली माना जाता है। यह ईर्श्यालु धार्मिक गुरु अपनी आध्यात्मिक शक्तियों की सहायता से रिवालसर से [[तिब्बत]] गए और वहाँ पर महायान बौद्धधर्म का प्रचार तथा स्थापना की। तिब्बत में पद्मसंभव को गुरु रिमबोद्दे के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि रिवालसर झील में एक किनारे से दूसरे किनारे तक समय-समय पर चलने वाले टीलों में गुरु पद्मसंभाव की आत्मा का निवास है। विश्व भर से तिब्बत के लोग गुरु रिमबोद्दे की पूजा-अर्चना करने और श्रद्धांजलि देने रिवालसर आते हैं। वर्ष भर बौद्ध बच्चे यहाँ मोनास्टि्रयों में शिक्षा प्राप्त करते हुए तथा पूजा करते हुए भिक्षु देखे जा सकते हैं।
 
==दर्शनीय स्थल==
 
रिवालसर झील के किनारे तीन बौद्ध मठ '''मोनास्टि्रयां''' हैं जो निग्मया पंथ से संबंधित हैं। इन मठों में से एक [[भूटान]] के लोगों का है। इसके अतिरिक्त भगवान [[कृष्ण]], [[शिव]] जी तथा लोमश ऋषि के मंदिर हैं। प्रायश्चित के तौर पर लोमश ऋषि ने शिव जी के निमित्त रिवालसर में तपस्या की थी।
[[चित्र:Rewalsar-Lake.jpg|thumb|250px|रिवालसर झील, [[मंडी हिमाचल प्रदेश|मंडी]]]]
यहाँ एक गुरुद्वारा भी है। कहते हैं [[गुरु गोविंद सिंह]] ने [[मुग़ल साम्राज्य]] से लड़ते सन् 1738 में रिवालसर झील के शांत वातावरण में कुछ समय बिताया था।
 
गुरुद्वारे को मण्डी के राजा जोगेन्द्र सेन ने बनवाया था। हिमाचल में जोगेन्द्र नगर इसी राजा के नाम से प्रसिद्ध है।
 
सुंदर हरे रंग की इस झील के एक ओर बौद्ध अनुयायियों ने रंग-बिरंगी झंडियाँ लगाई हुई हैं। इस झील में बड़ी-बड़ी और बहुत अधिक संख्या में [[मछली|मछलियाँ]] है। इनका शिकार वर्जित है। तीर्थयात्री इन्हें आटे की गोलियाँ खिलाते हैं मगर स्वच्छता की दृष्टि से प्रशासन ने ऐसा करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। सरकारी वन विभाग ने एक छोटा-सा चिडि़याघर भी यहाँ बनाया हुआ है जिसमें हिरण, [[भालू]] और रंग-बिरंगे पंखों वाले पक्षी देखे जा सकते हैं। [[शिमला]] में जाखू तथा अन्य कई धार्मिक स्थानों पर उछलते-कूदते [[बंदर|बंदरों]] की तरह यहाँ भी बंदरों की कमी नहीं है। छोटा सा बा़जार भी है।
 
शाम होते ही बिजली की रोशनी के प्रतिबिंबों से झील जगमगाने लगती है जिससे उसका ऩजारा ही बदल जाता है। यहाँ नौका भ्रमण नहीं होता। हलके अंधेरे में दिखाई देते समीप के पर्वतों के आकार भयावह दृश्य प्रस्तुत करते हैं। झील के सान्निध्य में रहने वाले अनेक लोग कहते हैं कि यहाँ स्वत: ही भगवत भजन करने को मन करता है।
 
==अन्य झीलें==
 
शीतकाल में रिवालसर का तापमान शून्य के आस-पास पहुँच जाता है, परंतु ग्रीष्मकाल में प्राय: मौसम सुहावना या कुछ गर्म रहता है। मंद-मंद शीतल पवन मन को आनंदित करती है। रिवालसर के समीप कुछ अन्य झीलें भी हैं। जैसे कुण्ठभ्योग, सुखसर तथा कालासर, जहाँ पैदल जाया जा सकता है। मानसून के दौरान ये झीलें अपने पूरे यौवन पर होती हैं।
 
ट्रेकिंग का शौक रखने वाले रिवालसर से घने जंगलों में से होते हुए 2850 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शिकारी देवी मंदिर तथा कामरू नाग झील (3600 मीटर की ऊँचाई) तक जाकर अपनी यात्रा में रोमांच भर सकते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.jagranyatra.com/2010/03/rewalsar-lake-eco-tourism/ |title=साधना की पुण्यभूमि रिवालसर झील |accessmonthday=[[17 सितंबर]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=यात्रा जागरण.कॉम |language=हिन्दी }}</ref>
 
 
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{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
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[[Category:हिमाचल प्रदेश]]
[[Category:हिमाचल प्रदेश की झीलें]]
[[Category:हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थल]]
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