"साँचा:कबीर के दोहे": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।</poem> | बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।</poem> | ||
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<poem>ऐसी वाणी बोलिए मन का | <poem>ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये । | ||
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।।</poem> | औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।।</poem> | ||
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13:31, 23 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूँ पाय। |
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये । |
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट । |
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर । |
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । |
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । |
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । |
माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । |
मांगन मरण सामान है, मत मांगो कोई भीख,। |
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये । |
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । |
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । |
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । |
जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान । |
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये। |
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी। |
कबीर खडा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर । |
उठा बगुला प्रेम का, तिनका चढ़ा अकास। |
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय । |
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय । |
साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय। |
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये। |
सुमिरन सूरत लगाईं के, मुख से कछु न बोल । |
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय । |