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| ==इतिहास==
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| <quiz display=simple>
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| {[[अकबर]] का अंतिम विजय अभियान कौन-सा था?
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| -[[मालवा]] विजय
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| -[[गुजरात]] विजय
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| +[[असीरगढ़]] विजय
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| -[[हल्दीघाटी|हल्दीघाटी का युद्ध]]
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| ||[[चित्र:Asirgarh-Fort.jpg|right|120px|असीरगढ़ क़िला]]सम्राट [[अकबर]] [[असीरगढ़]] की प्रसिद्धि सुनकर इस क़िले पर अपना अधिपत्य स्थापित करने के लिए व्याकुल हो रहा था। जैसे ही [[फ़ारूक़ी वंश|फ़ारूक़ी]] शासक 'बहादुरशाह' को इस बात की सूचना मिली, उसने अपनी सुरक्षा के लिए क़िले में ऐसी शक्तिशाली व्यवस्था की, कि दस वर्षों तक क़िला घिरा रहने पर भी बाहर से किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं पड़ी। सम्राट अकबर ने असीरगढ़ पर आक्रमण कराना प्रारंभ कर दिया। 17 जनवरी सन 1601 ई. को असीरगढ़ के क़िले पर अकबर को विजय प्राप्त हो गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असीरगढ़]]
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| {[[शिवाजी]] को 'राजा' की उपाधि किसने प्रदान की थी?
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| -[[बीजापुर]] के शासक ने
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| -[[अहमदनगर]] के शासक ने
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| +[[औरंगजेब]] ने
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| -[[जयसिंह|महाराजा जयसिंह ने]]
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| ||[[चित्र:Darbarscene-Aurangzeb.jpg|right|120px|औरंगज़ेब का दरबार]]'जयपुर भवन' से फरार होने के बाद [[शिवाजी]] तीन वर्ष तक मुग़लों के साथ शांतिपूर्वक रहे। [[मुग़ल]] शासक [[औरंगज़ेब]] ने उन्हें राजा की उपाधि तथा [[बरार]] में एक जागीर प्रदान की, तथा उनके पुत्र [[शम्भुजी]] को 'पंचहज़ारी सरदार' के पद पर नियुक्ति किया। शिवाजी ने [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]] में 16 जून, 1674 ई. को अपना राज्याभिषेक करवाकर ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की। 14 अप्रैल, 1680 ई. को उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र शम्भुजी [[मराठा]] शासक बना।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[औरंगजेब]]
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| {किस [[मराठा]] शासक के शासनकाल को [[पेशावा|पेशावाओं]] के शासनकाल के नाम से जाना जाता है।
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| |type="()"}
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| -[[छत्रपति राजाराम|राजाराम]]
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| -[[औरंगज़ेब]]
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| +[[शाहू]]
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| -शभ्भाजी
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| ||[[बाजीराव प्रथम]] तथा [[बालाजी बाजीराव]] ने, जो क्रमश: द्वितीय तथा तृतीय [[पेशवा]] हुए, [[शाहू]] की शक्ति एवं सत्ता का उत्तरी तथा दक्षिणी [[भारत]] में विशेष विस्तार किया। वस्तुत: शाहू ने पेशवा का पद [[बालाजी विश्वनाथ]] के वंशजों को पैतृक रूप में दे दिया था और स्वयं राज्यकार्य में विशेष रुचि न लेकर शासन का समस्त भार पेशवाओं पर ही छोड़ दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शाहू]]
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| {[[जहाँगीर]] ने किसे 'ख़ान' की उपाधि से सम्मानित किया था?
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| |type="()"}
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| +[[विलियम हॉकिंस]]
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| -[[टॉमस रो]]
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| -[[एडवर्ड टैरी]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||विलियम हॉकिंस [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] का एक कर्मचारी तथा व्यापारी था। वह [[फ़ारसी भाषा]] का बहुत अच्छा जानकार था। हॉकिंस, 'हेक्टर' नामक जहाज़ पर सवार होकर पूर्व की ओर ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तीसरी यात्रा का संचालक था। [[जहाँगीर]] उससे अक्सर मिला करता था और उसने हॉकिन्स को 400 सवारों का [[मनसबदार]] बना दिया था। हॉकिन्स को जहाँगीर ने 'ख़ान' की उपाधि देकर सम्मानित किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विलियम हॉकिंस]]
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| {[[नालन्दा विश्वकविद्यालय]] किसलिए विश्व प्रसिद्ध था?
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| |type="()"}
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| -चिकित्सा विज्ञान
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| -तर्कशास्त्र
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| +[[बौद्ध दर्शन|बौद्ध धर्म दर्शन]]
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| -[[रसायन विज्ञान]]
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| ||[[चित्र:Nalanda-University-Bihar.jpg|नालंदा विश्विविद्यालय, नालंदा, बिहार|100px|right]]नालंदा में [[बौद्ध धर्म]] के अतिरिक्त 'हेतुविद्या', 'शब्दविद्या', 'चिकित्सा शास्त्र', [[अथर्ववेद]] तथा [[सांख्य दर्शन]] से संबधित विषय भी पढ़ाए जाते थे। [[युवानच्वांग]] ने लिखा था कि, '[[नालंदा]] के एक सहस्त्र विद्वान आचार्यों में से सौ ऐसे थे, जो सूत्र और शास्त्र जानते थे। पांच सौ, 3 विषयों में पारंगत थे, और बीस, 50 विषयों में। केवल शीलभद्र ही ऐसे थे, जिनकी सभी विषयों में समान गति थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बौद्ध दर्शन]]
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| {किस [[विदेशी यात्री]] ने [[भारत]] का दौरा सबसे पहले किया था?
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| |type="()"}
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| -[[ह्वेन त्सांग]]
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| -[[इत्सिंग]]
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| +[[मैगस्थनीज़]]
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| -[[फाह्यान]]
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| ||[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] एवं [[सेल्युकस]] के मध्य हुई संधि के अंतर्गत, जहाँ सेल्यूकस ने अनेक क्षेत्र 'एरिया', 'अराकोसिया', 'जेड्रोशिया', 'पेरापनिसदाई' आदि चन्द्रगुप्त को प्रदान किये, वहीं उसने [[मैगस्थनीज़]] नामक [[यूनानी]] राजदूत भी [[मौर्य]] दरबार में भेजा। [[भारत]] में राजदूत नियुक्त होने से पूर्व मैगस्थनीज़ 'एराक्रोशिया' के क्षत्रप 'सिबाइर्टिओस' के यहां महत्त्वपूर्ण अधिकारी के पद पर कार्यरत था। मैगस्थनीज़ ने 'इण्डिका' में भारतीय जीवन, परम्पराओं, रीति-रिवाजों का वर्णन किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मैगस्थनीज़]]
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| {मानव द्वारा सर्वप्रथम प्रयुक्त अनाज कौन-सा था?
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| -[[गेहूँ]]
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| -जौ
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| +[[चावल]]
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| -बाजरा
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| ||[[चित्र:Rice-Harvest.jpg|चावल की फ़सल|100px|right]]चावल धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। कोई भी [[पूजा]], [[यज्ञ]] आदि अनुष्ठान बिना [[चावल]] के पूर्ण नहीं हो सकता। चावल अर्थात 'अक्षत' का मतलब, जिसका क्षय नहीं हुआ है। शास्त्रों के अनुसार अक्षत ही एक ऐसा अनाज है, जिसे पूर्ण स्वरूप माना जाता है। पूर्ण स्वरूप होने के कारण इसे सभी देवी-[[देवता|देवताओं]] को अर्पित किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चावल]]
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| {[[हिन्दू]] विधि पर एक पुस्तक 'मिताक्षरा' किसने लिखी है?
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| |type="()"}
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| -नयचन्द्र
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| -[[अमोघवर्ष प्रथम|अमोघवर्ष]]
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| +विज्ञानेश्वर
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| -[[कंबन]]
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| {निम्नलिखित में किस [[भक्ति]] संत ने अपने संदेश के प्रचार के लिए सबसे पहले [[हिन्दी]] का प्रयोग किया?
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| -[[दादू दयाल]]
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| -[[कबीर]]
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| +[[रामानन्द]]
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| -[[तुलसीदास]]
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| ||रामानंद संप्रदाय का नाम 'श्रीसंप्रदाय' तथा 'वैरागी संप्रदाय' भी है। इस संप्रदाय में आचार पर अधिक बल नहीं दिया जाता। कर्मकांड का महत्त्व यहाँ बहुत कम है। इस संप्रदाय के अनुयायी 'अवधूत' और 'तपसी' भी कहलाते हैं। [[रामानन्द]] के धार्मिक आंदोलन में जाति-पांति का भेद-भाव नहीं था। उनके शिष्यों में [[हिन्दू|हिंदुओं]] की विभिन्न जातियों के लोगों के साथ-साथ [[मुसलमान]] भी थे। [[भारत]] में रामानन्दी [[साधु|साधुओं]] की संख्या सर्वाधिक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामानन्द]]
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| {निम्नलिखित में से किन शासकों के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी?
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| |type="()"}
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| +[[चोल]]
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| -[[पांड्य राजवंश|पांण्ड्य]]
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| -[[चेर वंश|चेर]]
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| -[[पल्लव वंश|पल्लव]]
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| ||चोलों के विषय में प्रथम जानकारी [[पाणिनी]] कृत [[अष्टाध्यायी]] से मिलती है। [[चोल वंश]] के विषय में जानकारी के अन्य स्रोत हैं - [[कात्यायन]] कृत 'वार्तिक', '[[महाभारत]]', '[[संगम साहित्य]]', 'पेरिप्लस ऑफ़ दी इरीथ्रियन सी' एवं टॉलमी का उल्लेख आदि। चोल राज्य आधुनिक [[कावेरी नदी]] घाटी, कोरोमण्डल, त्रिचनापली एवं [[तंजौर]] तक विस्तृत था। यह क्षेत्र उसके राजा की शक्ति के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चोल]]
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| {'[[तुग़लक़नामा]]' के रचनाकार का नाम है-
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| |type="()"}
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| -[[तबरी]]
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| -गुलबदन बेगम
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| +[[अमीर ख़ुसरो]]
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| -[[अलबेरूनी]]
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| ||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|right|120px|अमीर ख़ुसरो]][[जलालुद्दीन ख़िलजी]] के हत्यारे उसके भतीजे [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने भी सुल्तान होने पर [[अमीर ख़ुसरो]] को सम्मानित किया, और उन्हें राजकवि की उपाधि प्रदान की। अलाउद्दीन ख़िलजी की प्रशंसा में अमीर ख़ुसरो ने जो रचनाएँ कीं, वे अभूतपूर्व थीं। ख़ुसरो की अधिकांश रचनाएँ अलाउद्दीन ख़िलजी के राजकाल की ही हैं। [[तुग़लक़नामा]] अमीर ख़ुसरो द्वारा रचित अंतिम कृति है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]]
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| {[[कृष्णदेव राय]] किसके समकालीन थे?
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| |type="()"}
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| -[[शेरशाह सूरी]]
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| +[[हुमायूँ]]
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| -[[बाबर]]
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| -[[अकबर]]
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| ||[[चित्र:Humayun.jpg|हुमायूँ|100px|right]]'नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ' का जन्म [[बाबर]] की पत्नी ‘माहम बेगम’ के गर्भ से 6 मार्च, 1508 ई. को [[काबुल]] में हुआ था। [[बाबर]] के 4 पुत्रों- [[हुमायुँ]], कामरान, [[अस्करी]] और हिन्दाल में [[हुमायुँ]] सबसे बड़ा था। बाबर ने उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। [[भारत]] में राज्याभिषेक के पूर्व 1520 ई. में 12 वर्ष की अल्वायु में उसे बदख्शाँ का सूबेदार नियुक्त किया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हुमायूँ]]
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| {'[[आदिग्रंथ]]' किसने संकलित किया था?
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| |type="()"}
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| -[[गुरु नानक]] ने
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| +गुरु अर्जुन ने
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| -गुरु रामदास ने
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| -[[गुरु गोविन्द सिंह]] ने
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| {[[चोल]] काल में 'कडिमै' का अर्थ क्या था?
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| |type="()"}
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| +भूराजस्व/लगान
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| -गृह कर
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| -चारागाह कर
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| -जलाशय कर
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| {'[[ब्रह्म समाज]]' किस सिद्धांत पर आधारित है?
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| |type="()"}
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| +[[एकेश्वरवाद]]
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| -बहुदेववाद
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| -[[अनीश्वरवाद]]
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| -अद्वैतवाद
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| ||व्यावहारिक जीवन में [[एकेश्वरवाद]] की प्रधानता होते हुए भी पारमार्थिक और आध्यात्मिक अनुभूति की दृष्टि से इसका पर्यवसान अद्वैतवाद में होता है। 'अद्वैतवाद' अर्थात् मानव के व्यक्तित्व का विश्वात्मा में पूर्ण विलय। जागतिक सम्बन्ध से एकेश्वरवाद के कई रूप हैं। [[ब्रह्म समाज]] अधिकांशत: एकेश्वरवाद के सिद्धांत पर ही आधारित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[एकेश्वरवाद]]
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| </quiz>
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