"आत्मा का चिर-धन -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर

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क्या मेरी आत्मा का चिर-धन ?
क्या मेरी आत्मा का चिर-धन ?
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन !
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन!


     प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,
     प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,
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निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
मैं हुँ परतिपल उन्मन, उन्मन ।
मैं हूँ प्रतिपल उन्मन, उन्मन।


     मैं प्रेमी उच्चाद्रशों का,
     मैं प्रेमी उच्चादर्शों का,
     संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शो का,
     संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शो का,
     जीवन के हर्ष-विमर्शों का:
     जीवन के हर्ष-विमर्शों का,


    
    
लगता अपुर्ण मानव जीवन,
लगता अपूर्ण मानव जीवन,
मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन !
मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन!


     जग-जीवन में उल्लास मुझे,
     जग-जीवन में उल्लास मुझे,
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चाहिए विश्व को नवजीवन,
चाहिए विश्व को नवजीवन,
मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन ।
मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन।


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12:41, 15 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

आत्मा का चिर-धन -सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

क्या मेरी आत्मा का चिर-धन ?
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन!

    प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,
    त्रिण, तरु, पशु, पक्षी, नर, सुरवर,
    सुन्दर अनादि शुभ सृष्टि अमर;

           
निज सुख से ही चिर चंचल-मन,
मैं हूँ प्रतिपल उन्मन, उन्मन।

    मैं प्रेमी उच्चादर्शों का,
    संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शो का,
    जीवन के हर्ष-विमर्शों का,

   
लगता अपूर्ण मानव जीवन,
मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन!

    जग-जीवन में उल्लास मुझे,
    नव-आशा, नव अभिलाष मुझे,
    ईश्वर पर चिर विश्वास मुझे;

   
चाहिए विश्व को नवजीवन,
मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन।

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