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12:21, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

पृषधु प्राचीन काल के शक्तिशाली राजा तथा शासनकर्ता थे। इन्होंने यज्ञ में गाय के वध को प्रारम्भ किया था। ऋषि आत्रेय से उनके शिष्य ने पूछा कि, 'अतिसार रोग कैसे उत्पन्न हुआ?' आत्रेय ने बताया कि यज्ञ में गाय के माँस सेवन से ही जठराग्नि उत्पन्न हुई और अतिसार रोग हुआ।

कथा

एक बार आत्रेय से उनके शिष्य अग्निवेष ने पूछा, कि अतिसार रोग कैसे उत्पन्न हुआ और इसका कारण क्या है? उसकी चिकित्सा क्या है? आचार्य ने अतिसार रोग का विवेचन किया कि प्राचीन काल में यज्ञादि अवसरों पर पालित पशु और दुग्ध देने वाले पशु, यज्ञ में सम्मिलित होते थे। यह नियम दक्ष प्रजापति के यज्ञ तक अटूट था। दक्ष के उपरान्त मारीच, नाभाग, इक्ष्वाकु, आदि मनु पुत्रों ने यज्ञ विधान में हिंसक पशुओं का मांस हव्य रूप में डालने की आज्ञा प्रदान कर दी। फलत: मांस हव्य हेतु याज्ञिक मंत्र आदि द्वारा पशु वध करने लगे। कुछ समय उपरान्त पृषधु नामक एक मधयाज्ञिक ने दीर्घ कालीन यज्ञ किए और जब अन्य प्राणी नहीं मिले, तो गाय का वध करना प्रारम्भ कर दिया। गाय वध को विधिविहित घोषित कर दिया। पृषधु के अनुकृत्य से लोग दु:खी हुए। वह राजा था। हवि शेष के रूप में गाय का मांस पकाकर यज्ञ कर्ताओं और यजमानों ने खाया। वह गरिष्ठ था। मनुष्य और ऋषियों के लिए जठराग्नि का कारण बना। मन विकृत हुए। अपच, अतिसार के कारण पृषधु के यज्ञ में ही यजमानों को प्रथम बार अतिसार रोग हुआ।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 509 |

  1. ऋग्वेद./चरकसंहिता, 11/3

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