"भारत की वास्तुकला का इतिहास": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
(वास्तुकला का इतिहास को अनुप्रेषित (रिडायरेक्ट))
 
(4 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 10 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Sun-Temple-Konark.jpg|thumb|180px|[[सूर्य मंदिर कोणार्क|सूर्य मंदिर]], [[कोणार्क]]]]
#REDIRECT [[वास्तुकला का इतिहास]]
आठवीं शताब्दी के बाद और विशेषकर दसवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच का काल मन्दिर निर्माण कला का चरमोत्कर्ष माना जा सकता है। आज हम जिन भव्यों मन्दिरों को देखते हैं, उनमें से अधिकतर उसी काल में बनाये गए थे। इस काल की मन्दिर निर्माण कला की मुख्य शैली 'नागर' नाम से जानी जाती है। यद्यपि इस शैली के मन्दिर सारे भारत में पाए जाते हैं तथापि इनके मुख्य केन्द्र उत्तर भारत और दक्कन में थे।
==मंदिरों की वास्तुकला==
इसकी प्रमुख विशेषता 'प्रतिमा-कक्ष' (जिसे गर्भगृह कहा जाता है) के ऊपर की छत थी, जो गोल और बड़ी होती थी। यद्यपि इसके हर तरफ़ प्रक्षेप हो सकते थे। 'प्रतिमा कक्ष' से लगा एक और कमरा होता था जिसे 'मंडप' कहते थे और कभी-कभी मन्दिर के चारों ओर बड़ी-बड़ी दीवारें होती थीं जिनमें बड़े-बड़े फाटक थे। इस शैली के प्रमुख उदाहरण [[मध्य प्रदेश]] में [[खजुराहो]] तथा [[उड़ीसा]] में [[भुवनेश्वर]] के मन्दिर हैं। [[विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग|विश्वनाथ मन्दिर]] तथा खजुराहो का [[कंदरिया महादेव]] का मन्दिर इस शैली के उत्कृष्ट और सुन्दरतम उदाहरण हैं। इन मन्दिरों पर बारीक खुदाइयों से पता चलता है कि इस काल में मूर्ति कला अपने शिखर पर थी। इनमें से अधिकतर मन्दिरों का निर्माण चंदेलों ने किया था जो इस क्षेत्र में नवीं शताब्दी के आरम्भ से लेकर तेरहवीं शताब्दी के अन्त तक राज्य करते रहे।
[[चित्र:Lingaraj-Temple-Orissa.jpg|thumb|180px|left|[[लिंगराज मन्दिर]], [[भुवनेश्वर]]]]
==भव्यों मन्दिरों का निर्माण==
उड़ीसा में इस काल के मन्दिर निर्माण का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण [[कोणार्क सूर्य मन्दिर|कोणार्क का सूर्य मन्दिर]] (13 वीं शताब्दी) तथा [[लिंगराज मन्दिर]] (11 वीं शताब्दी में निर्मित)  हैं। [[पुरी]] का प्रसिद्ध [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ मन्दिर]] भी इसी काल की देन है।
[[चित्र:Jagannath-Temple-Puri.jpg|thumb|180px|[[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ मंदिर]], [[पुरी]]]]
उत्तर भारत के और स्थानों में [[मथुरा]], [[वाराणसी]], [[दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू|दिलवाड़ा]] ([[आबू]]) आदि में भी बड़ी संख्या में मन्दिरों का निर्माण हुआ। दक्षिण भारत की तरह यहाँ भी मन्दिर और अधिक होते गए। ये सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के केन्द्र भी थे। इनमें से [[सोमनाथ मन्दिर]] जैसे कुछ मन्दिरों ने अपार सम्पत्ति इकट्ठी कर ली। ये कई गाँव पर शासन करने लगे। उन्होंने व्यापार में भी भाग लिया।
==गुहा वास्तु==
{{main|गुहा वास्तु}}
गुहा वास्तु भारतीय प्राचीन वास्तुकला का एक बहुत ही सुन्दर नमूना है। [[अशोक]] के शासनकाल से गुहाओं का उपयोग आवास के रूप में होने लगा था। [[गया]] के निकट बराबर पहाड़ी पर ऐसी अनेक गुफ़ाएँ विद्यमान हैं, जिन्हें सम्राट अशोक ने आवास योग्य बनवाकर आजीवकों को दे दिया था। अशोककालीन गुहायें सादे कमरों के रूप में होती थीं, लेकिन बाद में उन्हें आवास एवं उपासनागृह के रूप में स्तम्भों एवं मूर्तियों से अलंकृत किया जाने लगा। यह कार्य विशेष रूप से [[बौद्ध|बौद्धों]] द्वारा किया गया।
 
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
 
[[Category:इतिहास]][[Category:स्थापत्य कला]]
[[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__

10:33, 1 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

अनुप्रेषण का लक्ष्य: