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| महाकवि पुष्पदंत [[जैन साहित्य]] के अत्यंत प्रसिद्ध महाकवि थे। इन्होंने अपने ग्रंथ 'णाय कुमार चरित' (नाग कुमार चरित) के अंत में अपने माता पिता का संकेत करते हुए सम्प्रदाय का भी उल्लेख किया है।<ref>सिव भत्ताइं मि जिण सण्णासें वे वि मयाइं दुरियणिण्णासें। वंभणाइं कासवरिसि गोत्तइं गुरुवयणामिय पूरियसोत्तमं॥</ref> उसके अनुसार इनके पिता प्रथमत: [[शिव]] भक्त थे, किंतु बाद में किसी 'जिन' सन्यासी के उपदेश से [[जैन धर्म]] में दीक्षित हो गये थे। पिता के सम्प्रदाय परिवर्तन के साथ ये भी जैन हो गये। पिता का नाम 'केशव भट्ट' और माता का नाम 'मुग्धा देवी' था।
| | #REDIRECT [[पुष्पदन्त]] |
| ==अपभ्रंश के कवि==
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| रचनाओं की [[भाषा]] देखते हुए अनुमान होता है कि ये उत्तरी भारत के ही निवासी होंगे, क्योंकि दक्षिण भाषाओं का इनकी रचनाओं पर कोई प्रभाव नहीं है। इनकी भाषा को 'ब्राचड़ अपभ्रंश' या उसी से प्रभावित भाषा मानना चाहिए। कवि में आत्म सम्मान की भावना विशेष रूप में थी। एक बार निर्जन वन में पड़े रहने पर जब 'अम्मइयं' और 'इन्द्र' नामक व्यक्तियों द्वारा कारण पूछा गया तब इन्होंने कहा -
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| <poem>णउ दुज्जन भउँहा वंकियाइं, दीसंतु कालुसभावंकियाइं।
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| वर णरतरू धवलच्छिहे होहु म कुच्छिहे मरउ सोणिमुहिणग्गमे।
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| खल कुच्छिय पहुवयणइं भिउडियण यणैं म णिहालउ सुरुग्गमे॥<ref>दुर्जन की बंकिम भौंह देखना उचित नहीं, चाहे गिरि कण्दराओं में घास खाकर भले ही रहा जाए। मां के कुक्ष से उत्पन्न होते ही मर जाना ठीक है, किंतु राजा के टेढ़ी भृकुटी के नेत्र देखना और दुर्वचन सुनना उचित नहीं।</ref></poem>
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| ==उपाधियाँ==
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| यही कारण है कि उन्होंने अपने लिए 'अभिमान मेरु', 'काव्य रत्नाकर', 'कविकुल तिलक' आदि उपाधियाँ जोड़ी हैं। जहाँ मानसिक रूप से वे अपने को इतना गौरव देते थे, वहाँ वे शरीर से बहुत ही दुर्बल और कुरूप थे।<ref> कसण सरीरें सुछ कुरूवें मुद्धाएवि गब्भ सम्भूवें। उत्तर पुराण 11।</ref> इनका एक गुण विशेष था और वह यह कि ये शरीर सम्पत्ति से हीन होते हुए भी सदैव प्रसन्नचित्त रहा करते थे। इनके नाम के अनुरूप उनकी दंतपंक्ति पुष्प के समान धवल थी।<ref> सिय दंत पंति धवलीकयासु ता जंपइ बरवाया विलासु।</ref>
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| ==राष्ट्रकूट आश्रयदाता==
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| महाकवि पुष्पदंत के दो आश्रयदाता थे। प्रथम [[राष्ट्रकूट वंश]] के [[कृष्ण तृतीय|महाराजाधिराज कृष्णराज (तृतीय)]] के महामात्य भरत और दूसरे महामात्य भरत के पुत्र नन्न, जो आगे चल कर महामात्य नन्न हुए। इन्हीं दोनों के प्रोत्साहन से महाकवि पुष्पदंत ने अनेक ग्रंथों की रचना की।
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| ==रचनाएँ==
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| महाकवि पुष्पदंत के निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध हुए हैं -
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| *[[तिसट्ठि महारुरिष गुणालंकार]] (त्रिषष्टि महापुरुष गुणालंकार)
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| *[[णाय कुमार चरिउ]] (नाग कुमार चरित्र) - यह ग्रंथ महामात्य नन्न की प्रेरणा से लिखा गया है। यह एक खण्ड काव्य है, जिसमें नौ संधियाँ हैं। पंचमी के उपवास का फल कहने वाले नाग कुमार का चरित्र इसका विषय है।
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| *[[जसहर चरिउ]] (यशोधर चरित्र) - यह भी नन्न की प्रेरणा से लिखा गया। इसमें चार संधियाँ हैं। इसमें यशोधर नामक पुरुष का चरित्र कहा गया है। यह खंड काव्य भी 'णाय कुमार चरिउ' के समान सुन्दर है।
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| *[[कोश ग्रंथ]] - यह देशज शब्दों का एक कोश है। इससे महाकवि का भाषा पर अधिकार ज्ञात होता है।
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| ==काव्य पक्ष==
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| महाकवि पुष्पदंत एक महान पंडित और प्रतिभाशाली कवि थे। इनका काव्य पक्ष अत्यंत विस्तृत और उत्कृष्ट था। [[अलंकार|अलंकारों]] का प्रयोग इनकी निरीक्षण और अध्ययन शक्ति का परिचायक है।
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| <poem>;सन्ध्या वर्णन -
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| अत्थमिइ दिणेसरि जिइ सउणा। तिह पंथिय थिय माणिय सउणा।
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| जिह फुरियउ दीवय दित्तियउ। तिह कंताहरणइ दित्तियउ।
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| जिह संझा राएँ रंजियउ। तिह वेसा राएँ रंजियउ।
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| जिह भुवणुल्लउ संतावियउ। तिह चक्कुल्लुवि संतावियउ।
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| जिह दिसि दिसि तिमिरइँ मिलियाइँ। तिह दिसि दिसि जारइ मिलियाइँ।
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| जिह रयणिहि कमलइँ मउलियाइँ। तिह विरहिणि वणयइँ मउलियाइँ॥<ref>(तिसट्ठि महापुरिष गुणालंकार - महापुराण)</ref>
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| ;युद्ध वर्णन
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| संगाम भेरीहिं, णं पलय मारीहिं। भुअणं गसंतीहि गहिरं रसंतीहि।
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| सण्णद्ध कुद्धाइँ उद्धुद्ध चिंधाइँ। उववद्ध तोणाइ गुण णिहिय वाणाइँ।
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| करि चडिय जोहाइँ चम चामरोहाइँ। छत्तं धयाराइँ पसरिय वियाराइँ।
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| वाहिय तुरंगाइँ चोइय मयंगाइँ। चल धूलि कविलाइँ कप्पूर धवलाइँ॥ <ref>(णाय कुमार चरिउ)</ref>
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| </poem>
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| {{प्रचार}}
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| {{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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| {{संदर्भ ग्रंथ}}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{भारत के कवि}}
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| {{जैन धर्म2}}
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| {{जैन धर्म}}
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| __INDEX__
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| [[Category:आदि काल]]
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| [[Category:कवि]]
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| [[Category:साहित्य कोश]]
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| [[Category:जैन_साहित्य]]
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