"करघा -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर

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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं
हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं,
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
हर ज़िन्दगी किसी न किसी
हर ज़िन्दगी किसी न किसी,
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है।


ज़िन्दगी ज़िन्दगी से
ज़िन्दगी ज़िन्दगी से
इतनी जगहों पर मिलती है
इतनी जगहों पर मिलती है,
कि हम कुछ समझ नहीं पाते
कि हम कुछ समझ नहीं पाते
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
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और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
इस उलझन का सुलझाना
इस उलझन का सुलझाना
हमारे लिये मुहाल है ।
हमारे लिये मुहाल है।


मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है,
मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है,
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बुनकर इसे खूब जानता है।
बुनकर इसे खूब जानता है।


’हारे को हरिनाम’ से
 
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14:03, 6 मार्च 2012 के समय का अवतरण

करघा -रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन् 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन् 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं,
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
हर ज़िन्दगी किसी न किसी,
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है।

ज़िन्दगी ज़िन्दगी से
इतनी जगहों पर मिलती है,
कि हम कुछ समझ नहीं पाते
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
संसार संसार नहीं,
बेवकूफ़ियों का मेला है।

हर ज़िन्दगी एक सूत है
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
इस उलझन का सुलझाना
हमारे लिये मुहाल है।

मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है,
वह हर सूत की किस्मत को
पहचानता है।
सूत के टेढ़े या सीधे चलने का
क्या रहस्य है,
बुनकर इसे खूब जानता है।

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