"शक्ति और क्षमा -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर

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|चित्र का नाम=रामधारी सिंह दिनकर
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|कवि=[[रामधारी सिंह दिनकर]]
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|जन्म=[[23 सितंबर]], सन 1908
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|जन्म स्थान=सिमरिया, ज़िला मुंगेर ([[बिहार]])  
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|मुख्य रचनाएँ=
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जिसके पास गरल हो
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।
विषरहित, विनीत, सरल हो।


तीन दिवस तक पंथ मांगते
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।
अनुनय के प्यारे-प्यारे।


उत्तर में जब एक नाद भी
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।
आग राम के शर से।


सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
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बँधा मूढ़ बन्धन में।
बँधा मूढ़ बन्धन में।


सच पूछो , तो शर में ही
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
सन्धि-वचन सम्पूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।
जिसमें शक्ति विजय की।


सहनशीलता, क्षमा, दया को
सहनशीलता, क्षमा, दया को
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

14:05, 6 मार्च 2012 के समय का अवतरण

शक्ति और क्षमा -रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन् 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन् 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन सम्पूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।










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