|
|
(9 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 90 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
| {{tocright}}
| |
| इस्लाम शब्द का अर्थ ‘शान्ति व सुरक्षा’ और ‘समर्पण’ है। इस प्रकार इस्लामी परिभाषा में इस्लाम ईश्वर के समक्ष, मनुष्यों का पूर्ण आत्मसमर्पण हैं। इस आत्मसमर्पण के द्वारा व्यक्ति, समाज तथा मानवजाति के द्वारा ‘शान्ति व सुरक्षा’ की उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। आमतौर पर यह समझा जाता है कि इस्लाम 1400 वर्ष पुराना धर्म है, और इसके ‘प्रवर्तक’ [[पैग़म्बर मुहम्मद]] (सल्ल.) हैं। लेकिन वास्तव में इस्लाम 1400 वर्षों से काफ़ी पुराना धर्म है; उतना ही पुराना जितना धरती पर स्वयं मानवजाति का इतिहास और हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) इसके प्रवर्तक नहीं, बल्कि इसके आह्वाहक हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.islamdharma.org/article.aspx?ptype=A&menuid=39 |title=इस्लाम का इतिहास |accessmonthday=[[23 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इस्लाम धर्म |language=हिन्दी }}</ref>
| |
| ==अर्थ==
| |
| इस्लाम शब्द का अर्थ है–अल्लाह को समर्पण। इस प्रकार मुसलमान वह है, जिसने अपने आपको अल्लाह को समर्पित कर दिया, अर्थात् इस्लाम धर्म के नियमों पर चलने लगा। इस्लाम धर्म का आधारभूत सिद्धांत अल्लाह को सर्वशक्तिमान, एकमात्र ईश्वर और जगत का पालक तथा हज़रत मुहम्मद को उनका संदेशवाहक या पैगम्बर मानना है। यही बात उनके 'कलमे' में दोहराई जाती है—'''ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह''' अर्थात् अल्लाह एक है, उसके अलावा कोई दूसरा (दूसरी सत्ता) नहीं और मुहम्मद उसके रसूल या पैगम्बर। कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व मुसलमान यह क़लमा पढ़ते हैं। इस्लाम में अल्लाह को कुछ हद तक साकार माना गया है, जो इस दुनिया से काफ़ी दूर सातवें आसमान पर रहता है। वह अभाव (शून्य) में सिर्फ़ 'कुन' कहकर ही सृष्टि रचता है। उसकी रचनाओं में आग से बने [[फ़रिश्ते]] और मिट्टी से बने मनुष्य सर्वश्रेष्ठ हैं। गुमराह फ़रिश्तों को '[[शैतान]]' कहा जाता है। इस्लाम के अनुसार मनुष्य सिर्फ़ एक बार दुनिया में जन्म लेता है। मृत्यु के पश्चात् पुनः वह ईश्वरीय निर्णय ([[क़यामत]]) के दिन जी उठता है और मनुष्य के रूप में किये गये अपने कर्मों के अनुसार ही '[[जन्नत]]' (स्वर्ग) या 'नरक' पाता है।
| |
| पैगम्बर मुहम्मद की कही हुई बातें और उनकी स्मृतियों का 'हदीस' नामक ग्रन्थ में संग्रह है।
| |
| ==अरब==
| |
| {{main|अरब}}
| |
| अत्यंत प्राचीन काल में ‘जदीस’, ‘आद’, ‘समूद’ आदि जातियाँ, जिनका अब नाममात्र शेष है, अरब में निवास करती थीं, किन्तु [[भारत]]-सम्राट [[हर्षवर्द्धन]] के सम-सामयिक हज़रत मुहम्मद के समय ‘क़हतान’, ‘इस्माईल’ और ‘यहूदी’ वंश के लोग ही अरब में निवास करते थे। प्राचीन काल में अरब-निवासी सुसभ्य और शिल्प-कला में प्रवीण थे। परन्तु ‘'''नीचैर्गच्छत्युपरि च तथा चक्रनेमिक्रमेण'''’ के अनुसार कालान्तर में उनके वंशज घोर अविद्यान्धकार में निमग्न हो गये और सारी शिल्पकलाओं को भूल कर ऊँट-बकरी चराना मात्र उनकी जीविका का उपाय रह गया। वह इसके लिए एक स्रोत से दूसरे स्रोत, एक स्थान से दूसरे स्थान में हरे चरागाहों को खोजते हुए खेमों में निवास करके कालक्षेप करने लगे। कनखजूरा, गोह, गिरगिट आदि सारे जीव उनके भक्ष्य थे। प्रज्ज्वलित [[अग्नि]] में जीवित मनुष्य को डाल देना उनके समीप कोई असाधु कर्म नहीं समझा जाता था। [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]]-पुत्र अम्रु ने अपने भाई के मारे जाने पर एक के बदले सौ के मारने की प्रतिज्ञा की।
| |
| ==हज़रत मुहम्मद साहब==
| |
| {{main|हज़रत मुहम्मद साहब}}
| |
| इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद साहब थे, जिनका जन्म [[29 अगस्त]], 570 को सउदी अरब के मक्का नामक स्थान में कुरैश क़बीले के अब्दुल्ला नामक व्यापारी के घर हुआ था। जन्म के पूर्व ही पिता की और पाँच वर्ष की आयु में माता की मृत्यु को जाने के फलस्वरूप उनका पालन-पोषण उनके दादा मुतल्लिब और चाचा अबू तालिब ने किया था। 25 वर्ष की आयु में उन्होंने खदीजा नामक एक विधवा से विवाह किया। मोहम्मद साहब के जन्म के समय अरबवासी अत्यन्त पिछड़ा, क़बीलाई और चरवाहों की ज़िन्दगी बिता रहे थे। अतः मुहम्मद साहब ने उन क़बीलों को संगठित करके एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने का प्रयास किया। 15 वर्ष तक व्यापार में लगे रहने के पश्चात् वे कारोबार छोड़कर चिन्तन-मनन में लीन हो गये। मक्का के समीप हिरा की चोटी पर कई दिन तक चिन्तनशील रहने के उपरान्त उन्हें देवदूत जिबरील का संदेश प्राप्त हुआ कि वे जाकर [[क़ुरान शरीफ़]] के रूप में प्राप्त ईश्वरीय संदेश का प्रचार करें। तत्पश्चात् उन्होंने इस्लाम धर्म का प्रचार शुरू किया। उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया, जिससे मक्का का पुरोहित वर्ग भड़क उठा और अन्ततः मुहम्मद साहब ने 16 जुलाई 622 को मक्का छोड़कर वहाँ से 300 किमी. उत्तर की ओर यसरिब (मदीना) की ओर कूच कर दिया। उनकी यह यात्रा इस्लाम में 'हिजरत' कहलाती है। इसी दिन से हिजरी संवत् का प्रारम्भ माना जाता है। कालान्त में 630 ई0 में अपने लगभग 10 हज़ार अनुयायियों के साथ मुहम्मद साहब ने मक्का पर चढ़ाई करके उसे जीत लिया और वहाँ इस्लाम को लोकप्रिय बनाया। दो वर्ष पश्चात् [[8 जून]], 632 को उनका निधन हो गया। इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम [[क़ुरआन]] है जिसका [[हिन्दी भाषा|हिन्दी]] में अर्थ सस्वर पाठ है।
| |
|
| |
|
| ==भेद==
| |
| इस्लाम धर्म के पाँच भेद किये जाते हैं-
| |
| *नित्य,
| |
| *नैमित्तिक,
| |
| *काम्य,
| |
| *असम्मत तथा
| |
| *निषिद्ध।
| |
| '''नित्य''' वे आधारभूत हैं, जिन्हें हर रोज़ करना चाहिए। इस्लाम में निम्न पाँच कर्तव्यों को हर मुसलमान के लिए अनिवार्य बताया गया है-
| |
| #प्रतिदिन पाँच वक्त (फ़जर, जुहर, असर, मगरिब, इशा) नमाज़ पढ़ना
| |
| #ज़रूरतमंदों को ज़कात (दान) देना
| |
| #रमज़ान के महीने में सूर्योदय के पहले से लेकर सूर्यास्त तक रोज़ा रखना
| |
| #जीवन में कम से कम एक बार हज अर्थात् मक्का स्थित काबा की यात्रा करना तथा
| |
| #इस्लाम की रक्षा के लिए ज़िहाद (धर्मयुद्ध) करना।
| |
| '''नैमित्तिक''' कर्म वे कर्म हैं, जिन्हें करने पर पुण्य होता है, परन्तु न करने से पाप नहीं होता।
| |
|
| |
| '''काम्य''' वे कर्म हैं जो किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं।
| |
|
| |
| '''असम्मत''' वे कर्म हैं जिनकों करने की धर्म सम्मति तो नहीं देता, किन्तु करने पर कर्ता को दण्डनीय भी नहीं ठहराता।
| |
|
| |
| '''निषिद्ध''' (हराम) कर्म वे हैं, जिन्हें करने की धर्म मनाही करता है और इसके कर्ता को दण्डनीय ठहराता है।
| |
| ==इस्लाम के सम्प्रदाय==
| |
| इस्लाम में दो मुख्य सम्प्रदाय- [[शिया]] और [[सुन्नी]] मिलते हैं। मुहम्मद साहब की पुत्री फ़ातिमा और दामाद अली के बेटों हसन और हुसैन को पैगम्बर का उत्तराधिकारी मानने वाले मुसलमान 'शिया' कहलाते हैं। दूसरी ओर सुन्नी सम्प्रदाय ऐसा मानने से इन्कार करता है।
| |
| ==हिजरी संवत्==
| |
| शुक्रवार, 16 जुलाई, 622 को हिजरी संवत् का प्रारम्भ हुआ, क्योंकि उसी दिन हज़रत मुहम्मद साहब मक्का के पुरोहितों एवं सत्ताधारी वर्ग के दबावों के कारण मक्का छोड़कर मदीना की ओर कूच कर गये थे। ख़लीफ़ा उमर की आज्ञा से प्रारम्भ हिजरी संवत् में 12 चन्द्रमास होते हैं। जिसमें 30 और 29 दिन के मास एक-दूसरे के बाद पड़ते हैं। वर्ष में 354 दिन होते हैं, फलतः यह सौर संवत् के वर्ष से 11 दिन छोटा हो जाता है। इस अन्तर को पूरा करने के लिए 30 वर्ष बाद ज़िलाहिज़ा महीन में कुछ दिन जोड़ दिये जाते हैं। हिजरी संवत् के महीनों के नाम इस प्रकार हैं—
| |
| #मोहर्रम-उल-हराम
| |
| #सफ़र
| |
| #रबी-उल-अव्वल
| |
| #उबी-उल-सानी
| |
| #जमादी-उल-अव्वल
| |
| #जमादी-उस-सानी
| |
| #रज़ब
| |
| #शाबान
| |
| #रमज़ान-उल-मुबारिक
| |
| #शवाल
| |
| #ज़ीकादा तथा
| |
| #जिज हिजा।
| |
| ==शरीयत==
| |
| इस्लाम में शरीयत का तात्पर्य धार्मिक विधिशास्त्र से है। वे क़ानून, जो क़ुरान शरीफ़ तथा हदीस के विवरणों पर आधारित होते हैं तथा इस्लाम के आचार-व्यवहार का पालन करते है, शरीयत के अन्तर्गत आते हैं। शरीयत के चार प्रमुख स्रोत हैं—
| |
| *क़ुरान मज़ीद,
| |
| *हदीस या सुन्नत,
| |
| *इज्माअ तथा
| |
| *किआस।
| |
| इन चारों को इस्लाम की आधार शिला भी माना जाता है।
| |
| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
| |
| <references/>
| |