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*लिपिबद्ध होने और लिखित | *यह सामान्यता: 8,000 वर्णों में फैली एक इकाई है, जिसमें वाचन हेतु प्राचीन काल में पालि बौद्ध ग्रंथ विभाजित किए जाते थे। | ||
*लिपिबद्ध होने और लिखित पुस्तकों के आम लोगों में पूर्व [[धर्मसूत्र|धर्मसूत्रों]] के संरक्षण और संप्रेषण के माध्यम के लिए ही भंवर पद्धति विकसित की गई थी। | |||
*प्रारंभ में विभिन्न समूह के भाणकों (वाचकों) पर धर्मसूत्र के विभिन्न खंडों का दायित्व था। उदाहरणार्थ, दिघ भाणकों को दिघ निकाय (वृहद संकलन) की विशिष्टता प्राप्त थी। | *प्रारंभ में विभिन्न समूह के भाणकों (वाचकों) पर धर्मसूत्र के विभिन्न खंडों का दायित्व था। उदाहरणार्थ, दिघ भाणकों को दिघ निकाय (वृहद संकलन) की विशिष्टता प्राप्त थी। | ||
*बाद में सीलोन (वर्तमान [[श्रीलंका]]) में ये समूह व्याखा की प्रारंभिक शाखाओं में विकसित हो गए और अब कुछ टीकात्मक [[साहित्य]] में उनका मतभेद दिखाईं देता है। | *बाद में [[सीलोन]] (वर्तमान [[श्रीलंका]]) में ये समूह व्याखा की प्रारंभिक शाखाओं में विकसित हो गए और अब कुछ टीकात्मक [[साहित्य]] में उनका मतभेद दिखाईं देता है। | ||
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07:26, 27 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
- भंवर शब्द संस्कृत और पालि शब्द वाचन शाखा का है।
- यह सामान्यता: 8,000 वर्णों में फैली एक इकाई है, जिसमें वाचन हेतु प्राचीन काल में पालि बौद्ध ग्रंथ विभाजित किए जाते थे।
- लिपिबद्ध होने और लिखित पुस्तकों के आम लोगों में पूर्व धर्मसूत्रों के संरक्षण और संप्रेषण के माध्यम के लिए ही भंवर पद्धति विकसित की गई थी।
- प्रारंभ में विभिन्न समूह के भाणकों (वाचकों) पर धर्मसूत्र के विभिन्न खंडों का दायित्व था। उदाहरणार्थ, दिघ भाणकों को दिघ निकाय (वृहद संकलन) की विशिष्टता प्राप्त थी।
- बाद में सीलोन (वर्तमान श्रीलंका) में ये समूह व्याखा की प्रारंभिक शाखाओं में विकसित हो गए और अब कुछ टीकात्मक साहित्य में उनका मतभेद दिखाईं देता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ