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[[चित्र:Zari-Embroidery.jpg|thumb|ज़री की कढ़ाई]]
ज़री सोने का पानी चढ़ा हुआ चाँदी का तार है तथा इस तार से बने वस्त्र भी जरी कहलाते हैं। ज़री वस्त्र [[सोना|सोने]], [[चाँदी]] तथा [[रेशम]] अथवा तीनों प्रकार के तारों के मिश्रण से बनता है। इन तारों की सहायता से बेलबूटे तथा उभाड़दार अभिकल्प बनाए जाते हैं। बुनकर बुनाई के समय इन तारों का उपयोग अतिरिक्त बाने के रूप में करता है और इनसे केवल अभिकल्प ही बनाए जाते हैं।
ज़री सोने का पानी चढ़ा हुआ चाँदी का तार है तथा इस तार से बने वस्त्र भी ज़री कहलाते हैं। ज़री वस्त्र [[सोना|सोने]], [[चाँदी]] तथा [[रेशम]] अथवा तीनों प्रकार के तारों के [[मिश्रण]] से बनता है। इन तारों की सहायता से बेलबूटे तथा उभाड़दार अभिकल्प बनाए जाते हैं। बुनकर बुनाई के समय इन तारों का उपयोग अतिरिक्त बाने के रूप में करता है और इनसे केवल अभिकल्प ही बनाए जाते हैं।
==प्रचलन==
==ज़री का काम==
भारतीय [[किमखाब]] और पर्शियन सुनहले तारों तथा रेशम के वस्त्र को भी लोग ज़री कहते हैं, किंतु वस्तुत: ये ज़री नहीं हैं, क्योंकि इन वस्त्रों में ज़रीवाली सजावट नहीं होती। लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व पर्शिया, सीरिया, उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिणी यूरोप में सुनहले तारों का वस्त्र अंशत: ज़री होता था। [[इंग्लैंड]], [[फ्रांस]], [[रोम]], [[चीन]], तथा [[जापान]] में ज़री का प्रचलन प्राचीन काल से है।
भारतीय [[किमखाब]] और पर्शियन सुनहले तारों तथा रेशम के वस्त्र को भी लोग ज़री कहते हैं, किंतु वस्तुत: ये ज़री नहीं हैं, क्योंकि इन वस्त्रों में ज़रीवाली सजावट नहीं होती। लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व पर्शिया, सीरिया, उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिणी यूरोप में सुनहले तारों का वस्त्र अंशत: ज़री होता था। [[इंग्लैंड]], [[फ्रांस]], [[रोम]], [[चीन]], तथा [[जापान]] में ज़री का प्रचलन प्राचीन काल से है।
==उद्योग के रूप में==
==ज़रदोज़ी==
भारत का ज़री उद्योग प्राचीन काल से विश्वविख्यात रहा है ओर यहाँ के बने ज़री वस्त्रों को धारण कर देश विदेश के नृपति अपने को गौरवान्वित समझते रहे हैं। [[काशी]] ज़री उद्योग का केंद्र रहा है। [[बनारस]] की प्रसिद्ध बनारसी सड़ियाँ और दुपट्टे शताब्दियों से लोकप्रिय रहे हैं। आज इनकी खपत, [[अमरीका]], [[ब्रिटेन]] और [[रूस]] आदि देशों में क्षिप्र गति से वृद्धि प्राप्त कर रही है। [[गुजरात]] वर्तमान भारतीय ज़री तार उद्योग का केंद्र है। इसके पूर्व काशी ही इसका केंद्र था। पहले चाँदी के तारों को सोने की पतली पत्तरों पर खींचकर सुनहला बनाया जाता था, किंतु [[विज्ञान]] को उन्नति ने इस श्रमसाध्य विधि के स्थान पर विद्युद्विश्लेषण विधि प्रदान की है। विदेश से आने वाले ज़री के तार इसी विधि द्वारा सुनहले बनाए जाते हैं और भारतीय विधि से बने तारों की अपेक्षा सस्ते भी होते हैं।
{{Main|ज़रदोज़ी}}
==सूती वस्त्रों के लिए==
ज़री का कार्य को [[ज़रदोज़ी]] कढ़ाई कहते हैं। यह कार्य [[भारत]] में [[ऋग्वेद]] के समय से प्रचलित है।  
अब ज़री शब्द का व्यवहार उभाड़दार अभिकल्प के बने सूती वस्त्रों के लिए भी होने लगा है। इन वस्त्रों के अंतर्गत पर्दे तथा बच्चों एवं स्त्रियों के पहनने के वस्त्र आते हैं। सूती ज़री वस्त्र दोनों ओर एक-सा या उल्टा सीधा होता है। इसके उल्टा सीधा होने पर ताने बाने कई रंग, विभिन्न संख्या और कई किस्म के हो सकते हैं। पर्दे के ताने-बाने की संख्या और किस्म में पहनने के वस्त्र की अपेक्षा कम विषमता होती है।
 
==हाथ द्वारा==
ज़री के काम की खासियत ये होती है कि ये काम हाथ से किया जाता है इसमें किसी भी तरह की मशीन का कोई इस्तेमाल नहीं होता है हाथ से किया गया ये काम इतना बारीक़ और खूबसूरत होता है कि कोई भी इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकता हाथ से की गई इस कारीगरी में एक डिजाइन को पूरा करने में कई-कई दिन लग जाते हैं। लकड़ी का अड्डा (फ्रेम) बनाकर उसमें सलमा-सितारे, कटदाना, कसब, नलकी, मोती, स्टोन आदि बड़ी सफाई से टांकते है।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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06:47, 18 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

ज़री की कढ़ाई

ज़री सोने का पानी चढ़ा हुआ चाँदी का तार है तथा इस तार से बने वस्त्र भी ज़री कहलाते हैं। ज़री वस्त्र सोने, चाँदी तथा रेशम अथवा तीनों प्रकार के तारों के मिश्रण से बनता है। इन तारों की सहायता से बेलबूटे तथा उभाड़दार अभिकल्प बनाए जाते हैं। बुनकर बुनाई के समय इन तारों का उपयोग अतिरिक्त बाने के रूप में करता है और इनसे केवल अभिकल्प ही बनाए जाते हैं।

ज़री का काम

भारतीय किमखाब और पर्शियन सुनहले तारों तथा रेशम के वस्त्र को भी लोग ज़री कहते हैं, किंतु वस्तुत: ये ज़री नहीं हैं, क्योंकि इन वस्त्रों में ज़रीवाली सजावट नहीं होती। लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व पर्शिया, सीरिया, उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिणी यूरोप में सुनहले तारों का वस्त्र अंशत: ज़री होता था। इंग्लैंड, फ्रांस, रोम, चीन, तथा जापान में ज़री का प्रचलन प्राचीन काल से है।

ज़रदोज़ी

ज़री का कार्य को ज़रदोज़ी कढ़ाई कहते हैं। यह कार्य भारत में ऋग्वेद के समय से प्रचलित है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

मेहरोत्रा, अजीत नारायण “खण्ड 4”, हिन्दी विश्वकोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, पृष्ठ संख्या- 400।

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