"वातायन -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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मैं झरोखा हूँ। | मैं झरोखा हूँ। | ||
कि जिसकी टेक लेकर | कि जिसकी टेक लेकर | ||
विश्व की हर | विश्व की हर चीज़ बाहर झाँकती है। | ||
पर, नहीं मुझ पर, | पर, नहीं मुझ पर, | ||
झुका है विश्व तो उस | झुका है विश्व तो उस ज़िन्दगी पर | ||
जो मुझे छूकर सरकती जा रही है। | जो मुझे छूकर सरकती जा रही है। | ||
13:39, 1 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
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मैं झरोखा हूँ। |
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