|
|
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
| '''अश्वनी कुमार दत्त''' (जन्म- [[15 जनवरी]], 1856, [[पूर्वी बंगाल]]; मृत्यु- [[1923]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और देश भक्त थे। एक अध्यापक के रूप में उन्होंने अपना व्यावसायिक जीवन प्रारम्भ किया था। उन्होंने वर्ष [[1886]] में [[कांग्रेस]] के दूसरे [[कांग्रेस अधिवेशन कलकत्ता|कोलकाता अधिवेशन]] में प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था। '[[बंगाल विभाजन]]' ने अश्वनी कुमार दत्त के विचारों को बदल दिया था, जिस कारण वे नरम विचारों के राजनीतिज्ञ न रहकर अब उग्र विचारों के हो गए थे।
| | #REDIRECT [[अश्विनी कुमार दत्त]] |
| {{tocright}}
| |
| ==जन्म तथा शिक्षा==
| |
| अश्वनी कुमार दत्त का जन्म का जन्म [[15 जनवरी]], 1856 ई. को बारीसाल ज़िला ([[पूर्वी बंगाल]]) में हुआ था। उन्होंने [[इलाहाबाद]] और [[कोलकाता]] से अपनी क़ानून की शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक अध्यापक पद पर भी कार्य किया। बाद में वर्ष [[1880]] में बारीसाल से वकालत की शुरुआत की।
| |
| ====निसंतान====
| |
| अश्वनी कुमार दत्त के कोई संतान नही थी, इसलिए उन्होंने अपने क्षेत्र के स्कूल जाने वाले सब बच्चों की शिक्षा की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी। इसके साथ ही शिक्षा के प्रसार के लिए कुछ विद्यालय भी स्थापित किए।
| |
| ==राजनीतिक गतिविधियाँ==
| |
| 1880 ई. से ही अश्वनी कुमार दत्त ने सार्वजनिक कार्यों में भाग लेना शुरू कर दिया था। सर्वप्रथम उन्होंने बारीसाल में लोकमंच की स्थापना की। वर्ष [[1886]] में [[कांग्रेस]] के दूसरे [[कांग्रेस अधिवेशन कलकत्ता|कोलकाता अधिवेशन]] में प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। [[1887]] की अमरावती कांग्रेस में उन्होंने कहा- "यदि कांग्रेस का संदेश ग्रामीण जनता तक नही पहुँचा तो यह सिर्फ़ तीन दिन का तमाशा बनकर रह जाएगी।" उनके इन विचारों का प्रभाव ही था कि वर्ष [[1898]] में उनको [[पंडित मदनमोहन मालवीय]], दीनशावाचा आदि के साथ कांग्रेस का नया संविधान बनाने का काम सौपा गया था।
| |
| ====उग्र विचार====
| |
| [[बंगाल विभाजन]] ने अश्वनी कुमार दत्त के विचार बदल दिए। वे नरम विचारों के राजनीतिज्ञ न रहकर उग्र विचारों के हो गए थे। वे लोगों के उग्र विचारों के प्रतीक बन गए। उनके शब्दों का बारीसाल के लोग क़ानून की भांति पालन करते थे।
| |
| ==जेल यात्रा==
| |
| बंगाल की जनता पर अश्वनी कुमार दत्त का बढ़ता हुआ प्रभाव [[अंग्रेज़]] सरकार को सहन नहीं हुआ। सरकार ने उन्हें [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] से निर्वासित करके [[1908]] में [[लखनऊ]] जेल में बंद कर दिया। सन [[1910]] में वे जेल से बाहर आ सके। अब वे विदेशी सरकार से किसी प्रकार का सहयोग करने के विरूद्ध थे। उन्होंने महात्मा गाँधी के '[[असहयोग आंदोलन]]' का भी समर्थन किया।
| |
| ====निधन====
| |
| ब्रह्म समाजी विचारों के अश्वनी कुमार दत्त '[[गीता]]', '[[गुरु ग्रंथ साहिब]]' और '[[बाइबिल]]' का श्रद्धा के साथ पाठ करते थे। वे समाज सुधारों के पक्षधर थे और छुआछूत, मद्यपान आदि का सदा विरोध करते रहे। अपने समय में पूर्वी बंगाल के बेताज बादशाह माने जाने वाले अश्वनी कुमार दत्त का [[1923]] ई. में देहांत हो गया।
| |
| | |
| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
| |
| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
| |
| <references/>
| |
| ==बाहरी कड़ियाँ==
| |
| ==संबंधित लेख==
| |
| {{स्वतन्त्रता सेनानी}}
| |
| [[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
| |
| __INDEX__
| |