"मूर्ख को सीख": अवतरणों में अंतर
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'''मूर्ख को सीख''' [[पंचतंत्र]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] हैं। | |||
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एक जंगल में एक पेड पर गौरैया का घोंसला था। एक दिन कडाके की ठंड पड रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन चार | एक जंगल में एक पेड पर गौरैया का घोंसला था। एक दिन कडाके की ठंड पड रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन चार [[बंदर|बंदरों]] ने उसी पेड के नीचे आश्रय लिया। एक बंदर बोला 'कहीं से [[आग]] तापने को मिले तो ठंड दूर हो सकती हैं।' | ||
दूसरे बंदर ने सुझाया 'देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी पडी हैं। इन्हें इकट्ठा कर हम ढेर लगाते हैं और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।' | दूसरे बंदर ने सुझाया 'देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी पडी हैं। इन्हें इकट्ठा कर हम ढेर लगाते हैं और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।' | ||
बंदरों ने सूखी पत्तियों का ढेर बनाया और फिर गोल दायरे में बैठकर सोचने लगे कि ढेर को कैसे सुलगाया जाए। तभी एक बंदर की नजर दूर हवा में उडते एक जुगनू पर पडी और वह उछल पडा। उधर ही दौडता हुआ चिल्लाने लगा 'देखो, हवा में चिंगारी उड रही है। इसे पकडकर ढेर के नीचे रखकर फूंक मारने से आग सुलग जाएगी।' | |||
बंदरों ने सूखी पत्तियों का ढेर बनाया और फिर गोल दायरे में बैठकर सोचने लगे कि ढेर को कैसे सुलगाया जाए। तभी एक बंदर की नजर दूर हवा में उडते एक जुगनू पर पडी और वह उछल पडा। उधर ही दौडता हुआ चिल्लाने लगा 'देखो, हवा में चिंगारी उड रही | 'हां हां!' कहते हुए बाकी बंदर भी उधर दौडने लगे। पेड पर अपने घोंसले में बैठी गौरैया यह सब देख रही थे। उससे चुप नहीं रहा गया। वह बोली 'बंदर भाइयो, यह चिंगारी नहीं हैं यह तो जुगनू है।' | ||
एक बंदर क्रोध से गौरैया की देखकर गुर्राया 'मूर्ख चिडिया, चुपचाप घोंसले में दुबकी रह। हमें सिखाने चली है।' | |||
'हां हां!' कहते हुए बाकी बंदर भी उधर दौडने लगे। पेड पर अपने घोंसले में बैठी गौरैया यह सब देख रही थे। उससे चुप नहीं रहा गया। वह बोली 'बंदर भाइयो, यह चिंगारी नहीं हैं यह तो जुगनू | |||
एक बंदर क्रोध से गौरैया की देखकर गुर्राया 'मूर्ख चिडिया, चुपचाप घोंसले में दुबकी | |||
इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को अपनी हथेलियों के बीच कटोरा बनाकर कैद करने में सफल हो गया। जुगनू को ढेर के नीचे रख दिया गया और सारे बंदर लगे चारों ओर से ढेर में फूंक मारने। | इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को अपनी हथेलियों के बीच कटोरा बनाकर कैद करने में सफल हो गया। जुगनू को ढेर के नीचे रख दिया गया और सारे बंदर लगे चारों ओर से ढेर में फूंक मारने। | ||
गौरैया ने सलाह दी 'भाइयो! आप लोग ग़लती कर रहे हैं। जुगनू से आग नहीं सुलगेगी। दो पत्थरों को टकराकर उससे चिंगारी पैदा करके आग सुलगाइए।' | |||
गौरैया ने सलाह दी 'भाइयो! आप लोग | |||
बंदरों ने गौरैया को घूरा। आग नहीं सुलगी तो गौरैया फिर बोल उठी 'भाइयो! आप मेरी सलाह मानिए, कम से कम दो सूखी लकडियों को आपस में रगडकर देखिए।' | बंदरों ने गौरैया को घूरा। आग नहीं सुलगी तो गौरैया फिर बोल उठी 'भाइयो! आप मेरी सलाह मानिए, कम से कम दो सूखी लकडियों को आपस में रगडकर देखिए।' | ||
सारे बंदर आग न सुलगा पाने के कारण खीजे हुए थे। एक बंदर क्रोध से भरकर आगे बढा और उसने गौरैया पकडकर ज़ोर से पेड के तने पर मारा। गौरैया फडफडाती हुई नीचे गिरी और मर गई। | सारे बंदर आग न सुलगा पाने के कारण खीजे हुए थे। एक बंदर क्रोध से भरकर आगे बढा और उसने गौरैया पकडकर ज़ोर से पेड के तने पर मारा। गौरैया फडफडाती हुई नीचे गिरी और मर गई। | ||
;सीख- मूर्खों को सीख देने का कोई लाभ नहीं होता। उल्टे सीख देने वाला को ही पछताना पडता है। | |||
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10:22, 26 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण
मूर्ख को सीख पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।
कहानी
एक जंगल में एक पेड पर गौरैया का घोंसला था। एक दिन कडाके की ठंड पड रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन चार बंदरों ने उसी पेड के नीचे आश्रय लिया। एक बंदर बोला 'कहीं से आग तापने को मिले तो ठंड दूर हो सकती हैं।'
दूसरे बंदर ने सुझाया 'देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी पडी हैं। इन्हें इकट्ठा कर हम ढेर लगाते हैं और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।'
बंदरों ने सूखी पत्तियों का ढेर बनाया और फिर गोल दायरे में बैठकर सोचने लगे कि ढेर को कैसे सुलगाया जाए। तभी एक बंदर की नजर दूर हवा में उडते एक जुगनू पर पडी और वह उछल पडा। उधर ही दौडता हुआ चिल्लाने लगा 'देखो, हवा में चिंगारी उड रही है। इसे पकडकर ढेर के नीचे रखकर फूंक मारने से आग सुलग जाएगी।'
'हां हां!' कहते हुए बाकी बंदर भी उधर दौडने लगे। पेड पर अपने घोंसले में बैठी गौरैया यह सब देख रही थे। उससे चुप नहीं रहा गया। वह बोली 'बंदर भाइयो, यह चिंगारी नहीं हैं यह तो जुगनू है।'
एक बंदर क्रोध से गौरैया की देखकर गुर्राया 'मूर्ख चिडिया, चुपचाप घोंसले में दुबकी रह। हमें सिखाने चली है।'
इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को अपनी हथेलियों के बीच कटोरा बनाकर कैद करने में सफल हो गया। जुगनू को ढेर के नीचे रख दिया गया और सारे बंदर लगे चारों ओर से ढेर में फूंक मारने।
गौरैया ने सलाह दी 'भाइयो! आप लोग ग़लती कर रहे हैं। जुगनू से आग नहीं सुलगेगी। दो पत्थरों को टकराकर उससे चिंगारी पैदा करके आग सुलगाइए।'
बंदरों ने गौरैया को घूरा। आग नहीं सुलगी तो गौरैया फिर बोल उठी 'भाइयो! आप मेरी सलाह मानिए, कम से कम दो सूखी लकडियों को आपस में रगडकर देखिए।'
सारे बंदर आग न सुलगा पाने के कारण खीजे हुए थे। एक बंदर क्रोध से भरकर आगे बढा और उसने गौरैया पकडकर ज़ोर से पेड के तने पर मारा। गौरैया फडफडाती हुई नीचे गिरी और मर गई।
- सीख- मूर्खों को सीख देने का कोई लाभ नहीं होता। उल्टे सीख देने वाला को ही पछताना पडता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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