"त्रिपुरा उपनिषद": अवतरणों में अंतर

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'''त्रिपुरा उपनिषद''' एक शाक्त उपनिषद है, जिसकी रचना संवत 957-1417 के मध्य किसी समय मानी जाती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=306|url=}</ref>
'''त्रिपुरा उपनिषद''' एक शाक्त उपनिषद है, जिसकी रचना संवत 957-1417 के मध्य किसी समय मानी जाती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=306|url=}}</ref>


*इस [[उपनिषद]] में 16 पद्य हैं तथा इसका सम्बन्ध [[ऋग्वेद]] की '[[शाकल शाखा]]' से जोड़ा जाता है।
*इस [[उपनिषद]] में 16 पद्य हैं तथा इसका सम्बन्ध [[ऋग्वेद]] की '[[शाकल शाखा]]' से जोड़ा जाता है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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09:13, 20 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण

त्रिपुरा उपनिषद एक शाक्त उपनिषद है, जिसकी रचना संवत 957-1417 के मध्य किसी समय मानी जाती है।[1]

  • इस उपनिषद में 16 पद्य हैं तथा इसका सम्बन्ध ऋग्वेद की 'शाकल शाखा' से जोड़ा जाता है।
  • यह शाक्तमत के दार्शनिक आधार का संक्षिप्त वर्णन उपस्थित करता है। साथ ही यह अनेक प्रकार की व्यवहृत पूजा का भी वर्णन करता है।
  • 'अथर्वशिरस् उपनिषद' के अंतर्गत पाँच उपनिषदों में से यह एक है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 306 |

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