"मनुष्य के रूप (उपन्यास)": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('यशपाल के लिखे उपन्यासों में '[[दिव्या (उपन्यास)|दिव्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Manushya-ke-Roop.jpg
|चित्र का नाम='मनुष्य के रूप' आवरण पृष्ठ
|लेखक= [[यशपाल]]
|कवि=
|मूल_शीर्षक =मनुष्य के रूप
|मुख्य पात्र =
|कथानक =
|अनुवादक =
|संपादक =
|प्रकाशक = लोकभारती प्रकाशन
|प्रकाशन_तिथि =[[1 जनवरी]], [[1996]]
|भाषा = [[हिंदी]]
|देश = [[भारत]]
|विषय =
|शैली =
|मुखपृष्ठ_रचना = सजिल्द
|विधा = उपन्यास
|प्रकार =
|पृष्ठ = 240
|ISBN =
|भाग =
|विशेष =
|टिप्पणियाँ =
}}
[[यशपाल]] के लिखे उपन्यासों में '[[दिव्या (उपन्यास)|दिव्या]]' और 'मनुष्य के रूप' अमर कृतियाँ मानी जाती हैं।  
[[यशपाल]] के लिखे उपन्यासों में '[[दिव्या (उपन्यास)|दिव्या]]' और 'मनुष्य के रूप' अमर कृतियाँ मानी जाती हैं।  
‘‘लेखक को कला की महानता इसमें है कि उसने उपन्यास में यथार्थ से ही सन्तोष किया है। अर्थ और काम की प्रेरणाओं की विगर्हणा उसने स्पष्ट कर दी है। अर्थ की समस्या जिस प्रकार वर्ग और श्रेणी के स्वरूप को लेकर खड़ी हुई है, उसमें उपन्यासकार ने अपने पक्ष का कोई कल्पित उपलब्ध स्वरूप एक स्वर्ग, प्रस्तुत नहीं किया,... अर्थ सिद्धांत की किसी यथार्थ स्थिति की कल्पना इसमें नहीं।
‘‘लेखक को कला की महानता इसमें है कि उसने उपन्यास में यथार्थ से ही सन्तोष किया है। अर्थ और काम की प्रेरणाओं की विगर्हणा उसने स्पष्ट कर दी है। अर्थ की समस्या जिस प्रकार वर्ग और श्रेणी के स्वरूप को लेकर खड़ी हुई है, उसमें उपन्यासकार ने अपने पक्ष का कोई कल्पित उपलब्ध स्वरूप एक स्वर्ग, प्रस्तुत नहीं किया,... अर्थ सिद्धांत की किसी यथार्थ स्थिति की कल्पना इसमें नहीं।
पंक्ति 7: पंक्ति 32:




{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://pustak.org/bs/home.php?bookid=2351  मनुष्य के रूप]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{यशपाल की रचनाएँ}}
{{यशपाल की रचनाएँ}}
[[Category:गद्य साहित्य]]
[[Category:गद्य साहित्य]]
[[Category:उपन्यास]][[Category:यशपाल]][[Category:साहित्य_कोश]]
[[Category:उपन्यास]]
 
[[Category:यशपाल]][[Category:साहित्य_कोश]]
[[Category:पुस्तक कोश]]
__NOTOC__
__NOTOC__
__INDEX__
__INDEX__

14:00, 23 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण

मनुष्य के रूप (उपन्यास)
'मनुष्य के रूप' आवरण पृष्ठ
'मनुष्य के रूप' आवरण पृष्ठ
लेखक यशपाल
मूल शीर्षक मनुष्य के रूप
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 1996
देश भारत
पृष्ठ: 240
भाषा हिंदी
विधा उपन्यास
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द

यशपाल के लिखे उपन्यासों में 'दिव्या' और 'मनुष्य के रूप' अमर कृतियाँ मानी जाती हैं। ‘‘लेखक को कला की महानता इसमें है कि उसने उपन्यास में यथार्थ से ही सन्तोष किया है। अर्थ और काम की प्रेरणाओं की विगर्हणा उसने स्पष्ट कर दी है। अर्थ की समस्या जिस प्रकार वर्ग और श्रेणी के स्वरूप को लेकर खड़ी हुई है, उसमें उपन्यासकार ने अपने पक्ष का कोई कल्पित उपलब्ध स्वरूप एक स्वर्ग, प्रस्तुत नहीं किया,... अर्थ सिद्धांत की किसी यथार्थ स्थिति की कल्पना इसमें नहीं।

समस्त उपन्यास का वातावरण बौद्धिक है। अतः आदि से अन्त तक यह यथार्थवादी है।... मनुष्यों की यथार्थ मनोवृति का चित्रांकन करने की लेखक ने सजग चेष्ठा की है।... यह उपन्यास लेखक के इस विश्वास को सिद्ध करता है कि परिस्थितियों से विवश होकर मनुष्य के रूप बदल जाते है ।

‘मनुष्य के रूप’ में मनुष्य की हीनता और महानता के यथार्थ के चित्रण का एक विशद् प्रयत्न किया गया है।’’[1] - डॉ. सत्येन्द्र


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मनुष्य के रूप (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख