"छोटी थी -चित्रा देसाई": अवतरणों में अंतर

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| <center>भारतकोश पर अतिथि रचनाकार<br />'श्रीमती चित्रा देसाई' की एक कविता</center>
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>[[छोटी थी -चित्रा देसाई|छोटी थी]] <small>-[[#रचनाकार संपर्क|चित्रा देसाई]]</small></font></div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>[[छोटी थी -चित्रा देसाई|छोटी थी]] <small>-[[#रचनाकार संपर्क|चित्रा देसाई]]</small></font></div>
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छोटी थी
छोटी थी
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फ़्रॉक के लिए,   
फ़्रॉक के लिए,   
मेले में जाने  
मेले में जाने  
और खिलोंनों के लिए।
और खिलौनों के लिए।
खीर पूरी खाने के लिए  
खीर पूरी खाने के लिए  
नानी की गोदी में सोने के लिए।
नानी की गोदी में सोने के लिए।
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* ईमेल- chitra_desai@yahoo.com
* ईमेल- chitra_desai@yahoo.com
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[[Category:कविता]]
[[Category:कविता]][[Category:चित्रा देसाई की कविताएँ]]
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06:32, 18 जनवरी 2013 के समय का अवतरण


छोटी थी
तो ज़िद करती थी
फ़्रॉक के लिए,
मेले में जाने
और खिलौनों के लिए।
खीर पूरी खाने के लिए
नानी की गोदी में सोने के लिए।
थोड़ी बड़ी हुई ...
तो स्कूल के लिए,
नई तख़्ती और
क़लम दवात के लिए।
थोड़ी और बड़ी हुई ...
तो धीरे से मेरे कानों में कहा ...
अब ज़िद करना छोड़ दो।
नानी की दुलारी थी
सो बात मान ली
ज़िद करना छोड़ दिया।
... और धीरे धीरे
मुझे पता ही नहीं चला
कब मेरी ज़मीन पर
दूसरों के गांव बसने लगे।
अनजान लोगों की ज़िद मानने लगी ...
पर आज अचानक भीड़ देखी
तो उस बच्ची की ज़िद याद आई।
बंद संदूक से
अपने ज़िद्दीपन को निकाला,
मनुहार किया अपना ही ...
सुनो!
अपने आह्वान में ...
मेरा भी मन जोड़ लो।
आओ इतनी ज़िद करें
कि छत और दीवार ही नहीं
नींव और ज़मीन भी हिल जाऐं ...
बंद कोठरी से
सबका ज़िद्दी मन निकालें,
खुले मैदानों में फैल जाऐं
अपने आसमान के लिए
सुनसान सड़कों पर
हवा से बह जाऐं।
आओ ...
आज पूरे ज़िद्दी बन जाऐं।

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