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| '''राष्ट्रीय गीत'''
| | #REDIRECT [[वन्दे मातरम्]] |
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| [[बंकिमचंद्र चटर्जी]] ने ‘वंदे मातरम्’ गीत की संस्कृत में रचा की है। [[श्री अरविन्दि]] ने इस गीत का अंग्रेजी में और [[आरिफ मौहम्मद खान]] ने इसका उर्दू में अनुवाद किया है| इसका स्थान जन गण मन के बराबर है। यह स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। वह पहला राजनीतिक अवसर, जब यह गीत गाया गया था, 1896 में [[भारत|भारतीय]] राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन था। इसका प्रथम पद इस प्रकार है : | |
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| <poem>
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| वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
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| सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
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| शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
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| वंदे मातरम्!
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| शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
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| फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
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| सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
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| सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
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| वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
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| </poem>
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| गद्य रूप 1 में श्री अरबिन्द द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है:
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| मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूं। ओ माता,
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| पानी से सींची, फलों से भरी,
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| दक्षिण की वायु के साथ शान्त,
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| कटाई की फसलों के साथ गहरा,
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| माता!
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| उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही है,
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| उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है,
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| हंसी की मिठास, वाणी की मिठास,
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| माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।
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| </poem>
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| (मूल गीत)
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| सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
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| सस्य श्यामलां मातरंम् .
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| शुभ्र ज्योत्सनाम् पुलकित यामिनीम्
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| फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
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| सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् .
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| सुखदां वरदां मातरम् ॥
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| कोटि कोटि कन्ठ कलकल निनाद कराले
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| द्विसप्त कोटि भुजैर्ध्रत खरकरवाले
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| के बोले मा तुमी अबले
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| बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
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| रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥
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| तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि ह्रदि तुमि मर्म
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| त्वं हि प्राणाः शरीरे
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| बाहुते तुमि मा शक्ति,
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| हृदये तुमि मा भक्ति,
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| तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे ॥
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| त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
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| कमला कमलदल विहारिणी
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| वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
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| नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
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| सुजलां सुफलां मातरम् ॥
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| श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
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| धरणीं भरणीं मातरम् ॥
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| </poem>
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| ==राष्ट्रीय गीत के राग==
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| बरसों से संगीत सरिता, स्वर सुधा, राग-अनुराग जैसे कार्यक्रम हम सुनते आए है। हमें यह पता चल गया है कि ये ढेर सारे फ़िल्मी गीत कौन-कौन से राग पर आधारित है। पर खेद है कि अब तक यह जानकारी नहीं मिली कि राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम और [[राष्ट्रीय गान]] जन गन मन किन रागों पर आधारित है।
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| यह दोनों ही रचनाएँ बंगला भाषा के कवियों से निकली है। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान रची गई इन रचनाओं को ये कवि स्वयं जन सभाओं में गाया करते थे जिससे लगता है कि यह रचनाएँ रविन्द्र संगीत में निबद्ध है। राष्ट्रीय गान के तो रचनाकार ही [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] है।
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| बंकिम चन्द्र द्वारा रचित वन्देमातरम तो बहुत लम्बी रचना है जिसमें माँ [[दुर्गा]] की शक्ति का भी बख़ान है पर पहले अंतरे के साथ इसे सरकारी गीत के रूप में मान्यता मिली है और इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा देकर इसकी न केवल धुन बल्कि गीत की अवधि तक संविधान सभा द्वारा तय की गई है जो बावन सेकेण्ड है।
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| इस तरह लगता है कि राष्ट्रीय गान और गीत के न सिर्फ़ राग बल्कि इसमें बजने वाले साज़ भी लगभग तय है। हम विविध भारती से अनुरोध करते है कि अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम संगीत सरिता में राष्ट्रीय गान और राष्ट्रीय गीत का संगीत विश्लेषण प्रस्तुत करें।
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| ==राष्ट्रगीत का निर्माण==
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| 1870 के दौरान अंग्रेज हुक्मरानों ने ‘गॉड सेव द क्वीन’ गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से बंकिम चंद्र चटर्जी को जो तब एक सरकारी अधिकारी थे, बहुत ठेस पहुंची और उन्होंने संभवत 1876 में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक नए गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया - ‘वंदे मातरम’। शुरुआत में इसके केवल दो पद रचे गए थे जो केवल संस्कृत में थे।
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| ==स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रगीत की भूमिका==
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| बंगाल में चले आजादी के आंदोलन में विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए यह गीत गाया जाने लगा। धीरे-धीरे यह गीत लोगों में लोकप्रिय हो गया। ब्रितानी हुकूमत इसकी लोकप्रियता से सशंकित हो उठी और उसने इस पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना शुरु कर दिया। 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के [[कलकत्ता]] अधिवेशन में भी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यह गीत गाया। पांच साल बाद यानी 1901 में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में श्री [[चरन दास]] ने यह गीत पुनः गाया। 1905 में बनारस में हुए अधिवेशन में इस गीत को [[सरला देवी]] चौधरानी ने स्वर दिया।
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| कांग्रेस के अधिवेशनों के अलावा भी आजादी के आंदोलन के दौरान इस गीत के प्रयोग के काफी उदाहरण मौजूद हैं। [[लाला लाजपत राय]] ने लाहौर से जिस जर्नल का प्रकाशन शुरू किया उसका नाम ‘वंदे मातरम’ रखा। अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़नेवाली आजादी की दीवानी मातंगिनी हजारा की जुबान पर आखिरी शब्द ‘वंदे मातरम’ ही थे। सन 1907 में मैडम [[भीखाजी कामा]] ने जब जर्मनी के स्टटगार्ट में [[तिरंगा]] फहराया तो उसके मध्य में ‘वंदे मातरम’ ही लिखा हुआ था।।
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| ==राष्ट्रगीत का महत्व==
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| राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में गीत, संगीत और नृत्य की महत्व भूमिका होती है। लोगों को एकसूत्र में बांधने के साथ ही संगीत मन को खुशी भी देती है।
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| सर्वप्रथम 1882 में प्रकाशित इस गीत पहले पहल 7 सितम्बर 1905 में कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया। इसीलिए 2005 में इसके सौ साल पूरे होने के उपलक्ष में 1 साल के समारोह का आयोजन किया गया। 7 सितम्बर 2006 में इस समारोह के समापन के अवसर पर मानव संसाधन मंत्रालय ने इस गीत को स्कूलों में गाए जाने पर बल दिया। हालांकि इसका विरोध होने पर उस समय के मानव संसाधन विकास मंत्री [[अर्जुन सिंह]] ने संसद में कहा कि गीत गाना किसी के लिए आवश्यक नहीं किया गया है, यह स्वेच्छा पर निर्भर करता है
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| [[Category:राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक]]
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