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| | #REDIRECT [[अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस]] |
| अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष [[8 मार्च]] को विश्वभर में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/special08/womensday/ |title=अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस |accessmonthday=[[8 नवम्बर]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| <blockquote><span style="color: #8f5d31">“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।<br />
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| पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।“</span></blockquote>
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| ==इतिहास==
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| इतिहास के अनुसार आम महिलाओं द्वारा समानाधिकार की यह लड़ाई शुरू की गई थी। लीसिसट्राटा नामक महिला ने प्राचीन ग्रीस में फ्रेंच क्रांति के दौरान युद्ध समाप्ति की मांग रखते हुए आंदोलन की शुरूआत की, फ़ारसी महिलाओं के समूह ने वरसेल्स में इस दिन एक मोर्चा निकाला, इसका उद्देश्य युद्ध के कारण महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार को रोकना था।
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| पहली बार सन [[1909]] में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ अमेरिका द्वारा पूरे [[अमेरिका]] में [[28 फ़रवरी]] को महिला दिवस मनाया गया था। [[1910]] में सोशलिस्ट इंटरनेशनल द्वारा कोपेनहेगन में महिला दिवस की स्थापना हुई। [[1911]] में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, [[जर्मनी]] और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। इस रैली में मताधिकार, सरकारी नौकरी में भेदभाव खत्म करने जैसे मुद्दों की मांग उठी।
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| {{tocright}}
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| प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, रूसी महिलाओं द्वारा पहली बार शांति की स्थापना के लिए [[फ़रवरी]] माह के अंतिम [[रविवार]] को महिला दिवस मनाया गया। [[यूरोप]] भर में भी युद्ध विरोधी प्रदर्शन हुए। [[1917]] तक रूस के दो लाख से ज़्यादा सैनिक मारे गए, रूसी महिलाओं ने फिर रोटी और शांति के लिए इस दिन हड़ताल की। हालांकि राजनेता इसके खिलाफ़ थे, फिर भी महिलाओं ने आंदोलन जारी रखा और तब रूस के जार को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी और सरकार को महिलाओं को वोट के अधिकार की घोषणा करनी पड़ी।
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| महिला दिवस अब लगभग सभी विकसित, विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।<ref name="महिला दिवस">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/special-2011/womens-day-2011/1103/06/1110306021_1.htm |title=महिला दिवस |accessmonthday=[[8 नवम्बर]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम |publisher=वेबदुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियाँ, कार्यक्रम और मापदंड निर्धारित किए हैं। भारत में भी महिला दिवस व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-161466.html |title=विश्व महिला दिवस |accessmonthday=[[8 नवम्बर]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=लाइव हिंदुस्तान डॉट कॉम |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| ==प्रगति, दुर्गति में परिणत==
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| समाज में यह विषमता चारों तरफ है और महिलाओं को लेकर भी यह सहज स्वाभाविक है। महिलाओं की प्रगति बदलाव की बयार में दुर्गति में अधिक परिणत हुई है। हम बार-बार आगे बढ़कर पीछे खिसके हैं। बात चाहे अलग-अलग तरीके से किए गए बलात्कार या हत्या की हो, खौफनाक फरमानों की या महिला अस्मिता से जुड़े किसी विलंबित अदालती फैसले की। कहीं ना कहीं महिला कहलाए जाने वाला वर्ग हैरान और हतप्रभ ही नज़र आया है।<ref name="महिला दिवस" />
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| ==श्रृष्टि सृजन में योगदान==
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| श्रृष्टि के रचयिता [[ब्रह्मा]] के बाद श्रृष्टि सृजन में यदि किसी का योगदान है तो वो नारी का है। अपने जीवन को दांव पर लगा कर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल महिला को प्रदान किया है। हालाँकि तथा-कथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की ये शक्ति उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी मानी जाती है.
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| आज समाज के दोहरे मापदंड नारी को एक तरफ पूज्यनीय बताते है तो दूसरी ओर उसका शोषण करते हैं। यह नारी जाति का अपमान है। औरत समाज से वही सम्मान पाने की अधिकारिणी है जो समाज पुरुषों को उसकी अनेकों ग़लतियों के बाद भी पुन: एक अच्छा आदमी बनने का अधिकार प्रदान करता है।
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| [[चित्र:Women-Day-2.jpg|thumb|220px]]
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| ==शक्ति प्रधान समाज का अंग==
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| नारी को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है। उन्हें उचित सुविधाओं की आवश्यकता है, उनकी प्रतिभाओं और महत्त्वकांक्षाओ के सम्मान की और सबसे बढ़ कर तो ये है की समाज में नारी ही नारी को सम्मान देने लगे तो ये समस्या काफ़ी हद तक कम हो सकती है।
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| महिला अपनी शक्ति को पहचाने और पुरुषों की झूठी प्रशंसा से बचे और सोच बदले कि वे पुरुष प्रधान समाज की नहीं बल्कि शक्ति प्रधान समाज का अंग है और शक्ति प्राप्त करना ही उनका लक्ष्य है और वो केवल एक दिन की सहानुभूति नहीं अपितु हर दिन अपना हक एवं सम्मान चाहती है.<ref>{{cite web |url=http://rahulnigam.jagranjunction.com/2011/03/05/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%81/ |title=महिला दिवस |accessmonthday=[[8 नवम्बर]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जंक्शन |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| ==पूंजीवादी शोषण के खिलाफ़==
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| अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस लगभग सौ वर्ष पूर्व, पहली बार मनाया गया था, जब पूंजीवाद और साम्राज्यवाद तेज़ी से विकसित हो रहे थे और लाखों महिलायें मज़दूरी करने निकल पड़ी थीं। महिलाओं को पूंजीवाद ने मुक्त कराने के बजाय, कारख़ानों में गुलाम बनाया, उनके परिवारों को अस्त-व्यस्त कर दिया, उन पर महिला, मज़दूर और गृहस्थी होने के बहुतरफा बोझ डाले तथा उन्हें अपने अधिकारों से वंचित किया। महिला मज़दूर एकजुट हुईं और बड़ी बहादुरी व संकल्प के साथ, सड़कों पर उतर कर संघर्ष करने लगीं। अपने दिलेर संघर्षों के जरिये, वे शासक वर्गों व शोषकों के खिलाफ़ संघर्ष में कुछ जीतें हासिल कर पायीं। इसी संघर्ष और कुरबानी की परंपरा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मनायी जाती है।
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| अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पूंजीवादी शोषण के खिलाफ़ और शोषण-दमन से मुक्त नये समाज के लिये संघर्ष, यानि समाजवाद के लिये संघर्ष के साथ नज़दीकी से जुड़ा रहा। समाजवादी व कम्युनिस्ट आन्दोलन ने सबसे पहले संघर्षरत महिलाओं की मांगों को अपने व्यापक कार्यक्रम में शामिल किया। जिन देशों में बीसवीं सदी में समाजवाद की स्थापना हुई, वहाँ महिलाओं को मुक्त कराने के सबसे सफल प्रयास किये गये थे।
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| ==अपराधीकरण और असुरक्षा का शिकार==
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| आज प्रथम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मनाये जाने के लगभग सौ वर्ष बाद हमें नज़र आता है, कि एक तरफ, दुनिया की लगभग हर सरकार और सरमायदारों के कई अन्य संस्थान अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ख़ूब धूम मचाते हैं। वे महिलाओं के लिये कुछ करने के बड़े-बड़े वादे करते हैं।
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| दूसरी ओर, सारी दुनिया में लाखों महिलायें आज भी हर प्रकार के शोषण और दमन का शिकार बनती रहती हैं। वर्तमान उदारीकरण और भूमंडलीकरण के युग में पूंजी पहले से कहीं ज़्यादा आज़ादी के साथ, मज़दूरी, बाज़ार और संसाधनों की तलाश में, दुनिया के कोने-कोने में पहुँच रही है। विश्व में पूरे देश, इलाके और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र विकास के नाम पर तबाह हो रहे हैं और करोड़ों मेहनतकशों की ज़िन्दगी बरबाद हो रही हैं। जहाँ हिन्दुस्तान में हज़ारों की संख्या में विकास कृषि क्षेत्र में तबाही की वजह से खुदकुशी कर रहे हैं, मिल-कारख़ाने बंद किये जा रहे हैं, लोगों को रोज़गार की तलाश में घर-बार छोड़कर शहरों को जाना पड़ता है, शहरों में उन्हें न तो नौकरी मिलती है न सुरक्षा और बेहद गंदी हालतों में जीना पड़ता है। महिलायें, जो दुगुने व तिगुने शोषण का सामना करती हैं, जिन्हें घर-परिवार में भी ख़ास जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं, जो बढ़ते अपराधीकरण् और असुरक्षा का शिकार बनती हैं, इन परिस्थितियों में महिलायें बहुत ही उत्पीड़ित हैं।
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| ==न्याय==
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| विश्व में बीते सौ वर्षों में महिलाओं के अनुभवों से हम यह अहम सबक लेते हैं कि महिलाओं का उद्धार पूंजीवादी विकास से नहीं हो सकता। बल्कि, महिलाओं का और ज़्यादा शोषण करने के लिये, महिलाओं को दबाकर रखने के लिये, पूंजीवाद समाज के सबसे प्रतिक्रियावादी ताकतों और तत्वों के साथ गठजोड़ बना लेता है। जो भी महिलाओं की उन्नति और उद्धार चाहते हैं, उन्हें इस सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। जो व्यवस्था मानव श्रम के शोषण के आधार पर पनपती है, वह महिलाओं को कभी न्याय नहीं दिला सकती।
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| ==महिला आन्दोलन==
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| हिन्दुस्तान में महिला आन्दोलन पर यह दबाव और भी बढ़ गया है क्योंकि कम्युनिस्ट आन्दोलन की सबसे बड़ी पार्टियाँ और उनके महिला संगठन भी इसी रास्ते पर चलते हैं। इन संगठनों ने एक नयी सामाजिक व्यवस्था के लिये संघर्ष तो छोड़ ही दिया है। महिला आन्दोलन को विचारधारा से न बंधे हुये होने के नाम पर बहुत ही तंग या तत्कालीन मुद्दों तक सीमित रखा गया है। महिला आन्दोलन पर कई लोगों ने ऐसा विचार थोप रखा है कि महिलाओं की चिंता के विषय इतने महिला-विशिष्ट हैं, कि महिलाओं के उद्धार के संघर्ष का सभी मेहनतकशों के उद्धार के संघर्ष से कोई संबंध ही नहीं है। इस तरह से यह नकारा जाता है कि निजी सम्पत्ति ही परिवार और समाज में महिलाओं के शोषण-दमन का आधार है। ऐसी ताकतों ने इस प्रकार से महिला आन्दोलन को राजनीतिक जागरुकता से दूर रखने का पूरा प्रयास किया है, ताकि महिला आन्दोलन पंगू रहे और महिलाओं के उद्धार के संघर्ष को अगुवाई देने के काबिल ही न रहे।
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| हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर देश की सभी संघर्षरत महिलाओं से आह्वान करती है कि आपका भविष्य समाजवाद में है, वर्तमान व्यवस्था के विकल्प के लिये संघर्ष में है! सिर्फ़ वही समाज जो परजीवियों व शोषकों के दबदबे से मुक्त है, वही महिलाओं को समानता, इज्ज़त, सुरक्षा व खुशहाली का जीवन दिला सकती है। पर ऐसी व्यवस्था की रचना तभी हो पायेगी जब महिलायें, जो समाज का आधा हिस्सा हैं, खुद एकजुट होकर इसके लिये संघर्ष में आगे आयेंगी। जैसे-जैसे महिलायें अपने उद्धार के लिये संघर्ष को और तेज़ करेंगी, अधिक से अधिक संख्या में इस संघर्ष में जुड़ने के लिये आगे आयेंगी, वैसे-वैसे वह दिन नजदीक आता जायेगा जब अपने व अपने परिजनों के लिये बेहतर जीवन सुनिश्चित करने का महिलाओं का सपना साकार होगा!
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| {{महिला चित्र सूची1}}
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| ==अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता==
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| {| width="100%"
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| |-valign="top"
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| {| class="bharattable-pink"
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| |+ '''(1) सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा'''
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| <div style="height: 400px; overflow:auto; overflow-x: hidden; border:thin solid #aaa; width:300px">
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| {| width="300px"
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| |-valign="top"
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| <poem>
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| मैंने हँसाना सीखा है
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| मैं नहीं जानती रोना।
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| बरसा करता पल-पल पर
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| मेरे जीवन में सोना॥
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| मैं अब तक जान न पाई
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| कैसी होती है पीड़ा।
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| हँस-हँस जीवन में मेरे
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| कैसे करती है क्रीडा॥
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| जग है असार, सुनती हूँ
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| मुझको सुख-सार दिखाता।
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| मेरी आँखों के आगे
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| सुख का सागर लहराता।
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| उत्साह-उमंग निरंतर
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| रहते मेरे जीवन में।
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| उल्लास विजय का हँसता
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| मेरे मतवाले मन में।
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| आशा आलोकित करती
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| मेरे जीवन को प्रतिक्षण।
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| हैं स्वर्ण-सूत्र से वलयित
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| मेरी असफलता के घन।
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| सुख भरे सुनहले बादल
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| रहते हैं मुझको घेरे।
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| विश्वास प्रेम साहस हैं
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| जीवन के साथी मेरे।<ref>{{cite web |url=http://kavita.hindyugm.com/2009/03/subhadra-kumari-chauhan-mahila-divas.html |title=अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस |accessmonthday=[[8 नवम्बर]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=हिन्दी युग्म |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| </poem>
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| |}
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| </div>
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| |}
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| {| class="bharattable-pink"
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| |+ '''(2) धीरेन्द्र सिंह द्वारा'''
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| <div style="height: 400px; overflow:auto; overflow-x: hidden; border:thin solid #aaa; width:300px">
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| {| width="300px"
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| |-valign="top"
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| <poem>
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| आसमान सा है जिसका विस्तार
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| चॉद-सितारों का जो सजाए संसार
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| धरती जैसी है सहनशीलता जिसमें
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| है नारी हर जीवन का आधार
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| कभी फूल सा रंग-सुगंध लगे
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| कभी चींटी सा बोझ उठाए अपार
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| कभी स्नेह का लगे दरिया निर्झर
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| कभी बने किसी का परम आधार
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| चूल्हा-चौका रिश्तों-नातों की वेणी
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| हर घर की यह गरिमामय श्रृंगार
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| आज कहाँ से कहाँ पहुँच गई है
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| हर नैया की बन सशक्त पतवार
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| घर से दफ्तर चूल्हे से चंदा तक
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| पुरूष संग अब दौड़े यह नार
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| महिला दिवस है शक्ति दिवस भी | |
| पुरूष नज़रिया में हो और सुधार<ref>{{cite web |url=http://kavitayan.mywebdunia.com/2009/03/05/1236225000000.html |title=अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस |accessmonthday=[[8 नवम्बर]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=वेबदुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| </poem>
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| |}
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| </div>
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| |}
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| |}
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| ==समाचार==
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| ====सबसे ज़्यादा तनावग्रस्त हैं भारतीय महिलाएँ====
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| ;29 जून, 2011, बुधवार
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| दुनिया के प्रमुख विकसित एवं विकासशील देशों में आज की भागदौड़ और आपाधापी से होने वाले तनाव के बारे में किए गए भारतीय महिलाएं के सर्वेक्षण के अनुसार [[भारत]] की सर्वाधिक महिलाएँ तनाव में रहती हैं। दुनिया भर में महिलाएं खुद को बेहद तनाव और दबाव में महसूस करती हैं। यह समस्या आर्थिक तौर पर उभरते हुए देशों में ज़्यादा दिख रही है। एक सर्वे में भारतीय महिलाओं ने खुद को सबसे ज़्यादा तनाव में बताया। 21 विकसित और उभरते हुए देशों में कराए गए नीलसन सर्वे में सामने आया कि तेजी से उभरते हुए देशों में महिलाएँ बेहद दबाव में हैं लेकिन उन्हें आर्थिक स्थिरता और अपनी बेटियों के लिए शिक्षा के बेहतर अवसर मिलने की उम्मीद भी दूसरों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है। सर्वे में 87 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने कहा कि ज़्यादातर समय वे तनाव में रहती हैं और 82 फीसदी का कहना है कि उनके पास आराम करने के लिए वक्त नहीं होता।
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| ====समाचार को विभिन्न स्त्रोतों पर पढ़ें====
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| *[http://www.dw-world.de/dw/article/0,,15193649,00.html dw-world.de]
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| *[http://shodh-survey.blogspot.com/2011/06/blog-post_29.html शोध व सर्वे]
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| {{प्रचार}}
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| {{लेख प्रगति
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| }}
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| {{संदर्भ ग्रंथ}}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{अंतर्राष्ट्रीय विश्व दिवस}}
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| [[Category:अंतर्राष्ट्रीय विश्व दिवस]]
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| [[Category:महत्त्वपूर्ण दिवस]]
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