"ऋग्वैदिक कालीन महत्त्वपूर्ण शब्द": अवतरणों में अंतर

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* सृणि- पक कर तैयार फसल को काटने का यंत्र हासिया
* सृणि- पक कर तैयार फसल को काटने का यंत्र हासिया
* दात्र- हासिया
* दात्र- हासिया
* पर्श- कटी फसल के गढ्ढे (बोझ)
* पर्श- कटी फसल के गट्ठे (बोझ)
* खल- खलिहान
* खल- खलिहान
* खनित्रिमा- खोदने से उत्पन्न यह सिंचाई के लिए व्यवहार में लाये जाने वाले जलाशय का द्योतक है।
* खनित्रिमा- खोदने से उत्पन्न यह सिंचाई के लिए व्यवहार में लाये जाने वाले जलाशय का द्योतक है।
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* कुल्या- बड़ी नाली या नहर
* कुल्या- बड़ी नाली या नहर
* स्थिव- अन्नादि का एक सूखा नाप जो लगभग 32 ली के बराबर होता था।
* स्थिव- अन्नादि का एक सूखा नाप जो लगभग 32 ली के बराबर होता था।
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* पर्जन्य- शब्द बादल के लिए प्रयोग किया गया है।
* पर्जन्य- शब्द बादल के लिए प्रयोग किया गया है।


 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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06:37, 21 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

खेत में हल (सीर) चलाता किसान

ऋग्वैदिक कालीन कुछ महत्त्वपूर्ण शब्द इस प्रकार हैं-

  • उर्वरा- जुते हुए खेत को कहा जाता था।
  • खिल्य- पशु चारण योग्य भूमि या चारागाह।
  • सीर- हल को कहा जाता था।
  • सृणि- पक कर तैयार फसल को काटने का यंत्र हासिया
  • दात्र- हासिया
  • पर्श- कटी फसल के गट्ठे (बोझ)
  • खल- खलिहान
  • खनित्रिमा- खोदने से उत्पन्न यह सिंचाई के लिए व्यवहार में लाये जाने वाले जलाशय का द्योतक है।
फ़सल के गट्ठे (पर्श) ले जाती महिला
  • कुल्या- बड़ी नाली या नहर
  • स्थिव- अन्नादि का एक सूखा नाप जो लगभग 32 ली के बराबर होता था।
  • लांगल- शब्द का प्रयोग हल के लिए हुआ है।
  • बृक- शब्द का प्रयोग बैल के लिए प्रयुक्त हुआ है।
  • करीष- शब्द का प्रयोग गोबर की खाद के लिए होता था।
  • अवत- शब्द का प्रयोग कूपों के लिए होता था।
  • सीता- शब्द का प्रयोग हल से बनी नालियों के लिए होता था।
  • ऊस्दर- शब्द का प्रयोग अनाज नापने वाले पात्र के लिए होता था।
  • कीनांश- शब्द का हलवाले के लिए प्रयोग किया जाता है
  • पर्जन्य- शब्द बादल के लिए प्रयोग किया गया है।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ