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'''उदय शंकर''' (जन्म- [[8 दिसम्बर]], [[1900]] ई., [[राजस्थान]]; मृत्यु- [[26 सितम्बर]], [[1977]] ई., [[कोलकाता]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध नर्तक, नृत्य निर्देशक और और बैले निर्माता थे। उन्हें भारत में 'आधुनिक नृत्य के जन्मदाता' के रूप में भी जाना जाता है। उदय शंकर ने [[यूरोप]] और [[अमेरिका]] का भारतीय नृत्य और [[संस्कृति]] से परिचय करवाया और भारतीय नृत्य को दुनिया के मानचित्र पर प्रभावशाली ढंग से स्थापित किया। उन्होंने ताण्डव नृत्य, शिव-पार्वती, लंका दहन, रिदम ऑफ़ लाइफ़, श्रम और यंत्र, रामलीला और भगवान बुद्ध नाम से नवीन नृत्यों की रचना की थी। इनमें वेशभूषा, [[संगीत]], संगीत-यंत्र, ताल और लय आदि चीजें उन्हीं के द्वारा आविष्कृत थीं। वर्ष [[1971]] में भारत सरकार ने उन्हें '[[पद्मभूषण]]' और [[1975]] में विश्वभारती ने 'देशीकोत्तम सम्मान' प्रदान किये थे।
#REDIRECT [[उदय शंकर]]
==जन्म तथा परिवार==
सुप्रसिद्ध नर्तक उदय शंकर का जन्म 8 दिसम्बर, 1900 ई. को [[राजस्थान]] के [[उदयपुर]] में हुआ था। वैसे मूलत: वे नरैल (आधुनिक [[बांगला देश]]) के एक बंगाली परिवार से ताल्लुक रखते थे। इनके [[पिता]] का नाम श्याम शंकर चौधरी और [[माँ]] हेमांगिनी देवी थीं। उदय शंकर के पिता अपने समय के प्रसिद्ध वकील थे, जो राजस्थान में ही झालावाड़ के महाराज के यहाँ कार्यरत थे। माँ हेमांगिनी देवी एक बंगाली ज़मींदार परिवार से सम्बन्धित थीं। उदय के पिता को नवाबों द्वारा 'हरचौधरी' की उपाधि दी गई थी, किंतु उन्होंने 'हरचौधरी' में से 'हर' को हटा दिया और अपने नाम के साथ सिर्फ़ 'चौधरी' का प्रयोग करना ही पसन्द किया। उदय शंकर अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। इनके अन्य भाइयों के नाम थे- राजेन्द्र शंकर, देवेन्द्र शंकर, भूपेन्द्र शंकर और रवि शंकर। इनके भाई भूपेन्द्र की मौत वर्ष [[1926]] में ही हो गई थी।
 
उन्होंने यूरोप और अमेरिका का भारतीय नृत्य और संस्कृति से परिचय करवाया। उन्होंने भारतीय नृत्य की नवीन शैलियों का निर्माण करने के साथ पश्चिमी नृत्य विधाओं का भी अपने नृत्य में समावेश किया। उन्होंने ताण्डव नृत्य, शिव-पार्वती, लंकादहन, रिदम ऑफ़ लाइफ़, श्रम और यंत्र, रामलीला और भगवान बुद्ध नाम से नवीन नृत्यों की रचना की। इनमें वेशभूषा, संगीत, संगीत-यंत्र, ताल और लय आदि चीजें उन्हीं के द्वारा आविष्कृत थीं। रामायण पर उन्होंने नृत्य नाटिका की भी रचना की। उन्होंने यूरोप, अमेरिका आदि देशों में अपने नर्तक दल के साथ वर्षों घूमकर भारतीय नृत्यों का प्रदर्शन किया। उनके पिता झालावाड़ (राजस्थान) में दीवान थे और शिक्षा सम्बन्धी मामलों में राजा के परामर्शदाता थे। उनकी आरंभिक रुचि चित्रकला की ओर थी। उन्हें इंग्लैंड के रॉयल कॉलेज ऑफ़ आर्ट में चित्रकला सीखने के लिए भेजा गया। वहाँ एक नाट्यगृह में अन्नापावलोवा नामक सुप्रसिद्ध नर्तकी से उनकी भेंट हुई। वहीं से वे नृत्यों की ओर आकर्षित हुए और लंदन के ओपेरा हाउस में राधाकृष्णन नृत्य प्रस्तुत किया। वे स्वयं कृष्ण बने और पावलोवा ने राधा की भूमिका का रोल किया। उनकी शिष्य परंपरा भी बहुत समृद्ध रही। 1971 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण और 1975 में विश्वभारती ने देशी कोत्तम सम्मान प्रदान किये। 1977 में इनका निधन हो गया।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
 
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10:59, 27 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

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