"देवासुर संग्राम": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('*देवता और असुर दोनों ही प्रजापति की सन्तान हैं। *...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*[[देवता]] और [[असुर]] दोनों ही [[प्रजापति]] की सन्तान हैं।
[[देवता]] और [[असुर]] दोनों ही [[प्रजापति]] की सन्तान हैं। इन लोगों का आपस में युद्ध हुआ था, जिसे 'देवासुर संग्राम' कहा जाता है। इस संग्राम में देवताओं की पराजय हुई। विजयी असुरों ने सोचा कि निश्चय ही यह [[पृथ्वी]] हमारी है। उन सब लोगों ने सलाह की कि हम लोग पृथ्वी को आपस में बाँट लें और उसके द्वारा अपना निर्वाह करें।
*इन लोगों का आपस में युद्ध हुआ, जिसमें देवता लोग हार गए।
{{tocright}}
*असुरों ने सोचा कि निश्चय ही यह पृथ्वी हमारी है। उन सब लोगों ने सलाह की, कि हम लोग पृथ्वी को आपस में बाँट लें और उसके द्वारा अपना निर्वाह करें।
==पृथ्वी का बँटवारा==
*उन लोगों ने वृषचर्म (मानदण्ड, नपना) लेकर पूर्व-पश्चिम नापकर बाँटना शुरू किया।
असुरों ने वृषचर्म (मानदण्ड, नपना) लेकर पूर्व-पश्चिम नापकर बाँटना शुरू किया। देवताओं ने जब सुना तो उन्होंने परामर्श किया और बोले की असुर लोग पृथ्वी को बाँट रहे हैं, हमें भी उस स्थान पर पहुँचना चाहिए। देवताओं ने सोचा कि यदि हम लोग पृथ्वी का भाग नहीं पाते हैं, तो हमारी क्या दशा होगी। यह सोचकर देवताओं ने भगवान [[विष्णु]] को आगे किया और जाकर कहा कि- "हम लोगों को भी पृथ्वी का अधिकार प्रदान करो।"
*देवताओं ने जब सुना तो उन्होंने परामर्श किया और बोले की असुर लोग पृथ्वी को बाँट रहे हैं, हमें भी उस स्थान पर पहुँचना चाहिए।
====असुरों का कथन====
*देवताओं ने सोचा कि यदि हम लोग पृथ्वी का भाग नहीं पाते हैं, तो हमारी क्या दशा होगी।
असूयावश असुरों ने उत्तर दिया कि जितने परिमाण के स्थान में विष्णु व्याप सकें, उतना ही हम देंगे। विष्णु [[वामन अवतार|वामन]] थे। देवताओं ने इस बात को स्वीकार कर लिया। [[देवता]] आपस में विवाद करने लगे कि असुरों ने हम लोगों को [[यज्ञ]] भर करने के लिए ही स्थान दिया है।
*यह सोचकर देवताओं ने [[विष्णु]] को आगे किया और जाकर कहा कि हम लोगों को भी पृथ्वी का अधिकार प्रदान करो।
 
*असूयावश असुरों ने उत्तर दिया कि जितने परिमाण के स्थान में विष्णु व्याप सकें, उतना ही हम देंगे।
देवताओं ने विष्णु को पूर्व की ओर रखकर [[अनुष्टुप छन्द]] से परिवृत किया तथा बोले- "तुमको दक्षिण दिशा में गायत्री छन्द से, पश्चिम दिशा में त्रिष्टुप छन्द से और उत्तर दिशा में जगती छन्द से परिवेष्टित करते हैं।" इस तरह उनको चारों ओर छन्दों से परिवेष्टित करके उन्होंने [[अग्नि]] को सन्मुख रखा। छन्दों के द्वारा विष्णु दिशाओं को घेरने लगे और देवगण पूर्व दिशा से लेकर [[पूजा]] और श्रम करते आगे-आगे चलने लगे। इस तरह से देवताओं ने [[पृथ्वी]] को फिर से प्राप्त कर लिया।
*विष्णु वामन थे। देवताओं ने इस बात को स्वीकार कर लिया।
*[[देवता]] आपस में विवाद करने लगे कि असुरों ने हम लोगों को [[यज्ञ]] भर करने के लिए ही स्थान दिया है।
*फिर देवताओं ने विष्णु को पूर्व की ओर रखकर अनुष्टुप छन्द से परिवृत किया तथा बोले, तुमको दक्षिण दिशा में गायत्री छन्द से, पश्चिम दिशा में त्रिष्टुप छन्द से और उत्तर दिशा में जगती छन्द से परिवेष्टित करते हैं।
*इस तरह उनको चारों ओर छन्दों से परिवेष्टित करके उन्होंने [[अग्नि]] को सन्मुख रखा।
*छन्दों के द्वारा विष्णु दिशाओं को घेरने लगे और देवगण पूर्व दिशा से लेकर [[पूजा]] और श्रम करते आगे-आगे चलने लगे।
*इस तरह से देवताओं ने पृथ्वी को फिर से प्राप्त कर लिया।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{cite book | last = पाण्डेय| first = डॉ. राजबली| title = हिन्दू धर्मकोश | edition = द्वितीय संस्करण-1988| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location = भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language = हिन्दी| pages = 330| chapter =}}
{{cite book | last = पाण्डेय| first = डॉ. राजबली| title = हिन्दू धर्मकोश | edition = द्वितीय संस्करण-1988| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location = भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language = हिन्दी| pages = 330| chapter =}}
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
[[Category:नया पन्ना]]
{{कथा}}
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:कथा साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:पौराणिक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

12:22, 7 मई 2013 के समय का अवतरण

देवता और असुर दोनों ही प्रजापति की सन्तान हैं। इन लोगों का आपस में युद्ध हुआ था, जिसे 'देवासुर संग्राम' कहा जाता है। इस संग्राम में देवताओं की पराजय हुई। विजयी असुरों ने सोचा कि निश्चय ही यह पृथ्वी हमारी है। उन सब लोगों ने सलाह की कि हम लोग पृथ्वी को आपस में बाँट लें और उसके द्वारा अपना निर्वाह करें।

पृथ्वी का बँटवारा

असुरों ने वृषचर्म (मानदण्ड, नपना) लेकर पूर्व-पश्चिम नापकर बाँटना शुरू किया। देवताओं ने जब सुना तो उन्होंने परामर्श किया और बोले की असुर लोग पृथ्वी को बाँट रहे हैं, हमें भी उस स्थान पर पहुँचना चाहिए। देवताओं ने सोचा कि यदि हम लोग पृथ्वी का भाग नहीं पाते हैं, तो हमारी क्या दशा होगी। यह सोचकर देवताओं ने भगवान विष्णु को आगे किया और जाकर कहा कि- "हम लोगों को भी पृथ्वी का अधिकार प्रदान करो।"

असुरों का कथन

असूयावश असुरों ने उत्तर दिया कि जितने परिमाण के स्थान में विष्णु व्याप सकें, उतना ही हम देंगे। विष्णु वामन थे। देवताओं ने इस बात को स्वीकार कर लिया। देवता आपस में विवाद करने लगे कि असुरों ने हम लोगों को यज्ञ भर करने के लिए ही स्थान दिया है।

देवताओं ने विष्णु को पूर्व की ओर रखकर अनुष्टुप छन्द से परिवृत किया तथा बोले- "तुमको दक्षिण दिशा में गायत्री छन्द से, पश्चिम दिशा में त्रिष्टुप छन्द से और उत्तर दिशा में जगती छन्द से परिवेष्टित करते हैं।" इस तरह उनको चारों ओर छन्दों से परिवेष्टित करके उन्होंने अग्नि को सन्मुख रखा। छन्दों के द्वारा विष्णु दिशाओं को घेरने लगे और देवगण पूर्व दिशा से लेकर पूजा और श्रम करते आगे-आगे चलने लगे। इस तरह से देवताओं ने पृथ्वी को फिर से प्राप्त कर लिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पाण्डेय, डॉ. राजबली हिन्दू धर्मकोश, द्वितीय संस्करण-1988 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 330।

संबंधित लेख