"मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये": अवतरणों में अंतर

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सन्नाटे की गहरी छाँव, ख़ामोशी से जलते गाँव
सन्नाटे की गहरी छाँव, ख़ामोशी से जलते गाँव
ये नदियों पर टूटे हुए पुल, धरती घायल और व्याकुल
ये नदियों पर टूटे हुए पुल, धरती घायल और व्याकुल
ये खेत ग़मों से झुलसे हुए, ये खाली रस्ते सहमे हुए
ये खेत ग़मों से झुलसे हुए, ये ख़ाली रस्ते सहमे हुए
ये मातम करता सारा समां,  
ये मातम करता सारा समां,  
ये जलते घर, ये काला धुआं
ये जलते घर, ये काला धुआं

12:28, 14 मई 2013 के समय का अवतरण

संक्षिप्त परिचय
  • फ़िल्म : बॉर्डर (1997)
  • संगीतकार : अनु मलिक
  • गायक : हरिहरन
  • रचनाकार : जावेद अख़्तर

जंग तो चंद रोज होती है, ज़िन्दगी बरसों तलक रोती है

बारूद से बोझल सारी फ़िज़ा, है मौत की बू फैलाती हवा
जख्मों पे है छाई लाचारी, ये मरते बच्चे हाथों में,
ये माओं का रोना रातों में, मुर्दा बस्ती मुर्दा है नगर,
चेहरे पत्थर हैं दिल पत्थर
मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये
मुझसे तुझसे, हम दोनों से, सुन ये पत्थर कुछ कहते हैं
बर्बादी के सारे मंजर कुछ कहते हैं
मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये

सन्नाटे की गहरी छाँव, ख़ामोशी से जलते गाँव
ये नदियों पर टूटे हुए पुल, धरती घायल और व्याकुल
ये खेत ग़मों से झुलसे हुए, ये ख़ाली रस्ते सहमे हुए
ये मातम करता सारा समां,
ये जलते घर, ये काला धुआं
मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये
मुझसे तुझसे, हम दोनों से ये जलते घर कुछ कहते हैं
बर्बादी के सारे मंजर कुछ कहते हैं
मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाए

मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये
चेहरों के, दिलों के ये पत्थर, ये जलते घर
बर्बादी के सारे मंजर, सब तेरे नगर सब मेरे नगर, ये कहते हैं
इस सरहद पर फुन्कारेगा कब तक नफ़रत का ये अज़गर
हम अपने अपने खेतों में, गेहूँ की जगह चावल की जगह
ये बन्दूकें क्यों बोते हैं
जब दोनों ही की गलियों में, कुछ भूखे बच्चे रोते हैं
आ खाएं कसम अब जंग नहीं होने पाए
और उस दिन का रास्ता देखें,
जब खिल उठे तेरा भी चमन, जब खिल उठे मेरा भी चमन
तेरा भी वतन मेरा भी वतन, मेरा भी वतन तेरा भी वतन
मेरे दोस्त, मेरे भाई, मेरे हमसाये

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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