"नरसिंह वर्मन द्वितीय": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('*परमेश्वर वर्मा के प्रताप और ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(6 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 10 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*[[परमेश्वर वर्मन प्रथम|परमेश्वर वर्मा]] के प्रताप और पराक्रम से पल्लवों की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं सदी के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद नरसिंहवर्मा द्वितीय [[कांची|काञ्जी]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई।
'''नरसिंह वर्मन द्वितीय''' (695-720 ई.) का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यों में [[महाबलीपुरम]] का समुद्रतटीय मंदिर, [[कांची]] का [[कांची कैलाशनाथार मंदिर|कैलाशनाथार मंदिर]] एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है।
*नरसिंहवर्मा द्वितीय का शासन काल शान्ति और व्यवस्था का काल था, और इसीलिए वह अपनी शक्ति को निश्चिन्तता पूर्वक मन्दिरों के निर्माण में लगा सका।
*काञ्जी (काञ्जीवरम्) के कैलाशनाथ और ऐरावतेश्वर के विशाल मन्दिर और महाबलिपुरम के अनेक प्रसिद्ध मन्दिर राजा नरसिंहवर्मा द्वितीय के ही बनवाये हुए हैं।


*[[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] के प्रताप और पराक्रम से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं [[सदी]] के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद नरसिंह वर्मन द्वितीय [[कांची]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई।
*'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।
*नरसिंह वर्मन द्वितीय को 'राज सिद्धेश्वर' भी कहा जाता था।
*इसके अतिरिक्त प्रशस्तियों में इसे अन्यन्तकाम, रणंजय, श्रीभर, उग्रदण्ड, अपराजित, शिवचुड़मणि, यित्रकार्मुक, रणविक्रम, आमित्रमल, आहवकेशरी, परमचक्रमर्दन, पाथविक्रय, समरधनन्जय आदि उपाधियों से भी विभूषित किया गया है।
*मंदिर निर्माण की शैली में नरसिंह वर्मन द्वितीय ने एक नई शैली 'राज सिंह शैली' का प्रयोग किया था।
*महाकवि 'दण्डिन' संभवतः उसका समकालीन था। इसकी वाद्यविद्याधर, वीणानारद, अंतोदय-तुम्बुरु उपाधियाँ उसकी [[संगीत]] के प्रति रुझान की परिचायक हैं।
*नरसिंह वर्मन द्वितीय का शासन काल शान्ति और व्यवस्था का काल था, इसीलिए वह अपनी शक्ति को निश्चिन्तता पूर्वक मन्दिरों के निर्माण में लगा सका।


{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
|आधार=आधार1
==संबंधित लेख==
|प्रारम्भिक=
{{पल्लव साम्राज्य}}
|माध्यमिक=
[[Category:पल्लव साम्राज्य]][[Category:भारत के राजवंश]][[Category:चरित कोश]][[Category:इतिहास_कोश]]
|पूर्णता=
__INDEX__
|शोध=
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
{{भारत के राजवंश}}
[[Category:नया पन्ना]]
 
[[Category:इतिहास_कोश]]__INDEX__

06:45, 10 जून 2013 के समय का अवतरण

नरसिंह वर्मन द्वितीय (695-720 ई.) का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यों में महाबलीपुरम का समुद्रतटीय मंदिर, कांची का कैलाशनाथार मंदिर एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है।

  • परमेश्वर वर्मन प्रथम के प्रताप और पराक्रम से पल्लवों की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं सदी के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद नरसिंह वर्मन द्वितीय कांची के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई।
  • 'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।
  • नरसिंह वर्मन द्वितीय को 'राज सिद्धेश्वर' भी कहा जाता था।
  • इसके अतिरिक्त प्रशस्तियों में इसे अन्यन्तकाम, रणंजय, श्रीभर, उग्रदण्ड, अपराजित, शिवचुड़मणि, यित्रकार्मुक, रणविक्रम, आमित्रमल, आहवकेशरी, परमचक्रमर्दन, पाथविक्रय, समरधनन्जय आदि उपाधियों से भी विभूषित किया गया है।
  • मंदिर निर्माण की शैली में नरसिंह वर्मन द्वितीय ने एक नई शैली 'राज सिंह शैली' का प्रयोग किया था।
  • महाकवि 'दण्डिन' संभवतः उसका समकालीन था। इसकी वाद्यविद्याधर, वीणानारद, अंतोदय-तुम्बुरु उपाधियाँ उसकी संगीत के प्रति रुझान की परिचायक हैं।
  • नरसिंह वर्मन द्वितीय का शासन काल शान्ति और व्यवस्था का काल था, इसीलिए वह अपनी शक्ति को निश्चिन्तता पूर्वक मन्दिरों के निर्माण में लगा सका।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख