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'''काका की फुलझड़ियाँ''' शीर्षक वाली पुस्तक में प्रसिद्ध हास्य [[कवि]] [[काका हाथरसी]] की कविताएँ संकलित हैं। ये हास्‍य-कविताएँ, कवि सम्‍मेलनों और काव्‍य-गोष्ठियों में हजारों-लाखों श्रोताओं को गुदगुदा चुकी हैं। सन [[1965]] में पहली बार प्रकाशित इस संकलन की तीन लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।
'''काका की फुलझड़ियाँ''' शीर्षक वाली पुस्तक में प्रसिद्ध हास्य [[कवि]] [[काका हाथरसी]] की कविताएँ संकलित हैं। ये हास्‍य-कविताएँ, कवि सम्‍मेलनों और काव्‍य-गोष्ठियों में हजारों-लाखों श्रोताओं को गुदगुदा चुकी हैं। सन [[1965]] में पहली बार प्रकाशित इस संकलन की तीन लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।


[[काका हाथरसी]] ने हास्‍य को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया था। वे आजीवन इसी के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे। अपने जीवन काल में उन्‍होंने कितने उदास चेहरों को मुस्‍काने बाँटीं, यह ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है। उनकी रचनाएँ सचमुच फुलझड़ियों के समान हैं, जो पढ़ने वालों के मन को हास्‍य के उजाले से भर जातीं हैं।
[[काका हाथरसी]] ने हास्‍य को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया था। वे आजीवन इसी के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे। अपने जीवन काल में उन्‍होंने कितने उदास चेहरों को मुस्‍काने बाँटीं, यह ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है। उनकी रचनाएँ सचमुच फुलझड़ियों के समान हैं, जो पढ़ने वालों के मन को हास्‍य के उजाले से भर जातीं हैं।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=4745|title=काका की फुलझड़ियाँ|accessmonthday=13 जून|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref>


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13:10, 13 जून 2013 के समय का अवतरण

काका की फुलझड़ियाँ -काका हाथरसी
'काका की फुलझड़ियाँ' आवरण पृष्ठ
'काका की फुलझड़ियाँ' आवरण पृष्ठ
कवि काका हाथरसी
मूल शीर्षक 'काका की फुलझड़ियाँ'
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स
ISBN 81-7182-413-7
देश भारत
भाषा हिन्दी
शैली हास्य
विशेष सन 1965 में पहली बार प्रकाशित इस संकलन की तीन लाख से भी अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।

काका की फुलझड़ियाँ शीर्षक वाली पुस्तक में प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी की कविताएँ संकलित हैं। ये हास्‍य-कविताएँ, कवि सम्‍मेलनों और काव्‍य-गोष्ठियों में हजारों-लाखों श्रोताओं को गुदगुदा चुकी हैं। सन 1965 में पहली बार प्रकाशित इस संकलन की तीन लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।

काका हाथरसी ने हास्‍य को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया था। वे आजीवन इसी के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे। अपने जीवन काल में उन्‍होंने कितने उदास चेहरों को मुस्‍काने बाँटीं, यह ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है। उनकी रचनाएँ सचमुच फुलझड़ियों के समान हैं, जो पढ़ने वालों के मन को हास्‍य के उजाले से भर जातीं हैं।[1]

'हास्य और व्यंग्य, जीवन के अंग।'
'हँसी मन की गाँठें आसानी से खोल देती है।'
'उल्लास और हँसी का नाम ही जवानी है।'
'हँस-मुख स्वभाव दीर्घायु का चिह्न है।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काका की फुलझड़ियाँ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 जून, 2013।

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