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'''बख्शी ग्रन्थावली-8''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का आठवाँ खण्ड है। इस खण्ड में बख्शी जी के सम्पादकीय और डायरी के बारे में उल्लेख किया गया है।  
'''बख्शी ग्रन्थावली-8''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का आठवाँ खण्ड है। इस खण्ड में बख्शी जी के सम्पादकीय और डायरी के बारे में उल्लेख किया गया है।  
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बख्शी जी की डायरी में हम उन तारीखों से गुजरते हुए उनके रोजमर्रा की जिन्दगी की धड़कनों को महसूस करते हैं। इनकी डायरियाँ बख्शी के साहित्य के प्रति समर्पण को रेखांकित करती हैं।  उनका सम्पूर्ण जीवन डायरी में परिलक्षित होता है बख्शी की डायरी साहित्य का अमूल्य दस्तावेज है ।  बख्शी जी [[महावीर प्रसाद द्विवेदी|आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी]] के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। बख्शी जी के व्यक्तित्व में सम्पादक, अध्यापक तथा निबंधकार समान रूप से ही सशक्त रहे हैं। [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती पत्रिका]] के सम्पादक के रूप में बख्शी जी ने सर्वाधिक ख्याति और प्रतिष्ठा अर्जित की। मूलत: बख्शी जी का साहित्यकार का स्थापन सम्पादकीय कार्य से प्रारम्भ हुआ। सरस्वती के सम्पादक के रूप में जहाँ एक ओर इन्होंने [[सुमित्रानन्दन पन्त]] की कविताएँ प्रकाशित कर द्विवेदी युगीन इतिवृत्तात्मक काव्य को छायावादी काव्य का परिधान पहनाया वहीं दूसरी ओर [[प्रेमचन्द]], [[इलाचन्द्र जोशी]] व सुदर्शन आदि की कहानियाँ प्रकाशित करने में अपना योगदान दिया। इनका सम्पादकीय लेखन केवल साहित्यिक विषयों तक ही सीमित न होकर जीवन की सामयिक महत्ता के सभी प्रसंगों से भी सम्बन्धित रहा है।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में  |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव  |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>
बख्शी जी की डायरी में हम उन तारीख़ों से गुजरते हुए उनके रोजमर्रा की ज़िन्दगी की धड़कनों को महसूस करते हैं। इनकी डायरियाँ बख्शी के [[साहित्य]] के प्रति समर्पण को रेखांकित करती हैं।  उनका सम्पूर्ण जीवन डायरी में परिलक्षित होता है बख्शी की डायरी साहित्य का अमूल्य दस्तावेज़ है ।  बख्शी जी [[महावीर प्रसाद द्विवेदी|आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी]] के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। बख्शी जी के व्यक्तित्व में सम्पादक, अध्यापक तथा निबंधकार समान रूप से ही सशक्त रहे हैं। [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती पत्रिका]] के सम्पादक के रूप में बख्शी जी ने सर्वाधिक ख्याति और प्रतिष्ठा अर्जित की। मूलत: बख्शी जी का साहित्यकार का स्थापन सम्पादकीय कार्य से प्रारम्भ हुआ। सरस्वती के सम्पादक के रूप में जहाँ एक ओर इन्होंने [[सुमित्रानन्दन पन्त]] की कविताएँ प्रकाशित कर द्विवेदी युगीन इतिवृत्तात्मक काव्य को [[छायावाद युग|छायावादी काव्य]] का परिधान पहनाया वहीं दूसरी ओर [[प्रेमचन्द]], [[इलाचन्द्र जोशी]] व [[सुदर्शन]] आदि की कहानियाँ प्रकाशित करने में अपना योगदान दिया। इनका सम्पादकीय लेखन केवल साहित्यिक विषयों तक ही सीमित न होकर जीवन की सामयिक महत्ता के सभी प्रसंगों से भी सम्बन्धित रहा है।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में  |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव  |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>





03:57, 17 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

बख्शी ग्रन्थावली-8
बख्शी ग्रन्थावली-8
बख्शी ग्रन्थावली-8
लेखक पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
मूल शीर्षक बख्शी ग्रन्थावली
संपादक डॉ. नलिनी श्रीवास्तव
प्रकाशक वाणी प्रकाशन
ISBN 81-8143-517-6
देश भारत
भाषा हिंदी
विधा निबन्ध, सम्पादकीय, डायरी

बख्शी ग्रन्थावली-8 हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की 'बख्शी ग्रन्थावली' का आठवाँ खण्ड है। इस खण्ड में बख्शी जी के सम्पादकीय और डायरी के बारे में उल्लेख किया गया है।
बख्शी जी की डायरी में हम उन तारीख़ों से गुजरते हुए उनके रोजमर्रा की ज़िन्दगी की धड़कनों को महसूस करते हैं। इनकी डायरियाँ बख्शी के साहित्य के प्रति समर्पण को रेखांकित करती हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन डायरी में परिलक्षित होता है बख्शी की डायरी साहित्य का अमूल्य दस्तावेज़ है । बख्शी जी आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। बख्शी जी के व्यक्तित्व में सम्पादक, अध्यापक तथा निबंधकार समान रूप से ही सशक्त रहे हैं। सरस्वती पत्रिका के सम्पादक के रूप में बख्शी जी ने सर्वाधिक ख्याति और प्रतिष्ठा अर्जित की। मूलत: बख्शी जी का साहित्यकार का स्थापन सम्पादकीय कार्य से प्रारम्भ हुआ। सरस्वती के सम्पादक के रूप में जहाँ एक ओर इन्होंने सुमित्रानन्दन पन्त की कविताएँ प्रकाशित कर द्विवेदी युगीन इतिवृत्तात्मक काव्य को छायावादी काव्य का परिधान पहनाया वहीं दूसरी ओर प्रेमचन्द, इलाचन्द्र जोशीसुदर्शन आदि की कहानियाँ प्रकाशित करने में अपना योगदान दिया। इनका सम्पादकीय लेखन केवल साहित्यिक विषयों तक ही सीमित न होकर जीवन की सामयिक महत्ता के सभी प्रसंगों से भी सम्बन्धित रहा है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।

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