"हिम्मत बहादुर विरुदावली": अवतरणों में अंतर
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[[पद्माकर]] (1753-1833 ई.) ने 'हिम्मतबहादुर - विरुदावली' की रचना 18 अप्रैल 1792 ई. के आसपास की थी। | {{सूचना बक्सा पुस्तक | ||
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[[पद्माकर]] (1753-1833 ई.) ने 'हिम्मतबहादुर - विरुदावली' की रचना [[18 अप्रैल]] 1792 ई. के आसपास की थी। | |||
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पद्माकर ने हिम्मतबहादुर विरुदावली में अपने एक आश्रयदाता '''अनूपगिरि''' उपनाम '''हिम्मतबहादुर''' के तीन युद्धों का वर्णन किया है। | |||
# प्रथम युद्ध में उसने गूजरवंशीय किसी शासक को पराजित किया था। | |||
# दूसरे युद्ध में दतिया के राजा रामचन्द्र को गद्दी से उतारकर मनमानी चौथ ली थी। | |||
#`इसके अनंतर हिम्मतबहादुर ने अजयगढ़ के अल्पवयस्क राजा का राज्य छीनना चाहा। उक्त राजा के सरंक्षक '''नोने अर्जुनसिंह''' ने इसका सामना किया। नयागाँव (नौगाँव) और अजयगढ़ के मध्य भयानक युद्ध हुआ, जिसमें अर्जुनसिंह नोने मारे गये और हिम्मतबहादुर विजयी हुआ।<ref>18 अप्रैल, 1792 ई. </ref> | |||
पद्माकर ने अंतिम युद्ध का आँखो देखा विवरण दिया है। इसमें हिम्मतबहादुर का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है पर घटना ऐतिहासिक तथ्य पर आधारित है। पद्माकर ने अर्जुनसिंह नोने का भी सच्चा एवं तथ्यपूर्ण वृतांत दिया है। पात्रों और [[अस्त्र शस्त्र]] की लम्बी सूची भी दी गयी है। | पद्माकर ने अंतिम युद्ध का आँखो देखा विवरण दिया है। इसमें हिम्मतबहादुर का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है पर घटना ऐतिहासिक तथ्य पर आधारित है। पद्माकर ने अर्जुनसिंह नोने का भी सच्चा एवं तथ्यपूर्ण वृतांत दिया है। पात्रों और [[अस्त्र शस्त्र]] की लम्बी सूची भी दी गयी है। | ||
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====उपलब्धि==== | |||
विषय प्रतिपादन की दृष्टि से [[पद्माकर]] को उतनी सफलता नहीं मिली, जितनी भाषा प्रयोग की दृष्टि से। इस [[ग्रंथ]] का अधिकांश भाग परम्परागत वर्णनों से भरा है, उदाहरणार्थ - राजपूतों की उपजातियाँ, वाद्य-यंत्रों, [[हाथी|हाथियों]], घोडों, तोपों, बन्दूकों तलवारों तथा अन्य हथियारों के नामों का विस्तृत वर्णन है। इनके कारण कथानक शिथिल और नीरस हो गया है। संयुक्ताक्षरों तथा नादात्मक शब्दों के प्रयोग भी घटना-क्रम में बाधक हुए हैं। पात्रों द्वारा लम्बे कथनों का प्रयोग किया गया है, प्रसंगानुकूल होते हुए भी जो बोझिल हो गये हैं। [[अलंकार|अलंकारों]] की प्रवृत्ति विशेष है पर सुन्दर प्रयोग कम ही स्थलों पर हुआ है। सब मिलाकर इस ग्रंथ में काव्यात्मक उपलब्धि के स्थान पर परम्परापालन का दृष्टिकोण प्रधान हो गया है। | विषय प्रतिपादन की दृष्टि से [[पद्माकर]] को उतनी सफलता नहीं मिली, जितनी भाषा प्रयोग की दृष्टि से। इस [[ग्रंथ]] का अधिकांश भाग परम्परागत वर्णनों से भरा है, उदाहरणार्थ - राजपूतों की उपजातियाँ, वाद्य-यंत्रों, [[हाथी|हाथियों]], घोडों, तोपों, बन्दूकों तलवारों तथा अन्य हथियारों के नामों का विस्तृत वर्णन है। इनके कारण कथानक शिथिल और नीरस हो गया है। संयुक्ताक्षरों तथा नादात्मक शब्दों के प्रयोग भी घटना-क्रम में बाधक हुए हैं। पात्रों द्वारा लम्बे कथनों का प्रयोग किया गया है, प्रसंगानुकूल होते हुए भी जो बोझिल हो गये हैं। [[अलंकार|अलंकारों]] की प्रवृत्ति विशेष है पर सुन्दर प्रयोग कम ही स्थलों पर हुआ है। सब मिलाकर इस ग्रंथ में काव्यात्मक उपलब्धि के स्थान पर परम्परापालन का दृष्टिकोण प्रधान हो गया है। | ||
==प्रकाशन== | |||
'हिम्मत बहादुर विरुदावली' का प्रकाशन निम्नलिखित स्थानों से हो चुका है- | 'हिम्मत बहादुर विरुदावली' का प्रकाशन निम्नलिखित स्थानों से हो चुका है- | ||
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12:56, 12 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
हिम्मत बहादुर विरुदावली
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कवि | पद्माकर |
कथानक | पद्माकर ने हिम्मत बहादुर विरुदावली में अपने एक आश्रयदाता अनूपगिरि उपनाम हिम्मतबहादुर के तीन युद्धों का वर्णन किया है। |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
शैली | शैली वर्णनात्मक और भाषा ब्रजभाषा है। इसमें अरबी, फ़ारसी, बुन्देलखण्डी, का भी प्रयोग हुआ है। |
विधा | खण्ड काव्य |
विशेष | इसमें 212 छन्द हैं। हरिगीतिका, हाकल, त्रिभंगी, डिल्ला, भुजंगप्रयात तथा छप्पय छन्दों का प्रयोग हुआ है। |
पद्माकर (1753-1833 ई.) ने 'हिम्मतबहादुर - विरुदावली' की रचना 18 अप्रैल 1792 ई. के आसपास की थी।
कथावस्तु
पद्माकर ने हिम्मतबहादुर विरुदावली में अपने एक आश्रयदाता अनूपगिरि उपनाम हिम्मतबहादुर के तीन युद्धों का वर्णन किया है।
- प्रथम युद्ध में उसने गूजरवंशीय किसी शासक को पराजित किया था।
- दूसरे युद्ध में दतिया के राजा रामचन्द्र को गद्दी से उतारकर मनमानी चौथ ली थी।
- `इसके अनंतर हिम्मतबहादुर ने अजयगढ़ के अल्पवयस्क राजा का राज्य छीनना चाहा। उक्त राजा के सरंक्षक नोने अर्जुनसिंह ने इसका सामना किया। नयागाँव (नौगाँव) और अजयगढ़ के मध्य भयानक युद्ध हुआ, जिसमें अर्जुनसिंह नोने मारे गये और हिम्मतबहादुर विजयी हुआ।[1]
पद्माकर ने अंतिम युद्ध का आँखो देखा विवरण दिया है। इसमें हिम्मतबहादुर का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है पर घटना ऐतिहासिक तथ्य पर आधारित है। पद्माकर ने अर्जुनसिंह नोने का भी सच्चा एवं तथ्यपूर्ण वृतांत दिया है। पात्रों और अस्त्र शस्त्र की लम्बी सूची भी दी गयी है।
भाषा शैली
हिम्मत बहादुर विरुदावली में 212 छन्द हैं। हरिगीतिका, हाकल, त्रिभंगी, डिल्ला, भुजंगप्रयात तथा छप्पय छन्दों का प्रयोग हुआ है। इसकी शैली वर्णनात्मक और भाषा ब्रजभाषा है। इसमें अरबी, फ़ारसी, बुन्देलखण्डी, अंतर्वेदी आदि के शब्द स्वतंत्रतापूर्वक प्रयुक्त किये गये हैं।
उपलब्धि
विषय प्रतिपादन की दृष्टि से पद्माकर को उतनी सफलता नहीं मिली, जितनी भाषा प्रयोग की दृष्टि से। इस ग्रंथ का अधिकांश भाग परम्परागत वर्णनों से भरा है, उदाहरणार्थ - राजपूतों की उपजातियाँ, वाद्य-यंत्रों, हाथियों, घोडों, तोपों, बन्दूकों तलवारों तथा अन्य हथियारों के नामों का विस्तृत वर्णन है। इनके कारण कथानक शिथिल और नीरस हो गया है। संयुक्ताक्षरों तथा नादात्मक शब्दों के प्रयोग भी घटना-क्रम में बाधक हुए हैं। पात्रों द्वारा लम्बे कथनों का प्रयोग किया गया है, प्रसंगानुकूल होते हुए भी जो बोझिल हो गये हैं। अलंकारों की प्रवृत्ति विशेष है पर सुन्दर प्रयोग कम ही स्थलों पर हुआ है। सब मिलाकर इस ग्रंथ में काव्यात्मक उपलब्धि के स्थान पर परम्परापालन का दृष्टिकोण प्रधान हो गया है।
प्रकाशन
'हिम्मत बहादुर विरुदावली' का प्रकाशन निम्नलिखित स्थानों से हो चुका है-
- हिम्मतबहादुर विरुदावली: सम्पादक लाला भगवानदीन, नागरी प्रचारिणी सभा से मुद्रित होकर प्रकाशित;
- पद्माकर - पंचामृत: सम्पादक विश्वनाथ प्रसाद मिश्र; श्रीरामरतन पुस्तक भवन, काशी, प्रथम संस्करण, 1992 वि.।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 684-685।