"शुजाउद्दौला": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - " ई0" to " ई.")
No edit summary
 
(6 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 10 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[अवध]] का तृतीय स्वतंत्र नवाब और वहाँ के द्वितीय नवाब [[सफदरजंग]] का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। शुजाउद्दौला को [[आलमगीर द्वितीय]] (1754-59) तथा [[शाहआलम द्वितीय]] (1759-1806) नामक मुग़ल सम्राट से वज़ीर का ओहदा मिला। किन्तु उसने अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समय सम्राट की कोई सहायता नहीं की, जब अब्दाली ने 1756 ई. में [[दिल्ली]] को लूटा।
[[चित्र:Shuja-Ud-Daula.jpg|thumb|चित्रकार द्वारा चित्रित शुजाउद्दौला का चित्र]]
*1759 ई. में [[पंजाब]] पर पूर्ण अधिकार कर लिया।
'''शुजाउद्दौला''' (1754-1775 ई.) [[अवध]] का तृतीय स्वतंत्र [[नवाब]] और वहाँ के द्वितीय नवाब [[सफदरजंग]] का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। शुजाउद्दौला को [[आलमगीर द्वितीय]] (1754-1759 ई.) तथा [[शाहआलम द्वितीय]] (1759-1806 ई.) नामक [[मुग़ल]] सम्राट से वज़ीर का ओहदा मिला था। जब [[अहमदशाह अब्दाली]] ने [[भारत]] पर आक्रमण किया, उस समय शुजाउद्दौला ने मुग़ल सम्राट की कोई सहायता नहीं की। उसने केवल अपने हितों पर ही ध्यान दिया था। 1774 ई. में नवाब शुजाउद्दौला ने अंग्रेज़ों की सहायता से [[रूहेलखण्ड]] पर आक्रमण किया था, लेकिन इसके दूसरे ही वर्ष उसकी मृत्यु हो गई।
*मुग़ल सम्राट तथा उसके सहायक [[मराठा|मराठों]] को 1761 ई. में [[पानीपत युद्ध|पानीपत]] के [[पानीपत युद्ध तृतीय|तृतीय युद्ध]] में परास्त किया। शुजाउद्दौला ने सदैव केवल अपने वंश के ही हितों पर ध्यान दिया।  
==अब्दाली का आक्रमण==
*1764 ई. में उसने [[बंगाल]] से भागकर सहायतार्थ आने वाले वहाँ के नवाब मीर क़ासिम तथा [[शाहआलम द्वितीय]] से कम्पनी के विरुद्ध एक सन्धि की, पर [[बक्सर का युद्ध|बक्सर के युद्ध]] में वह पराजित हुआ।
1756 ई. में [[अहमदशाह अब्दाली]] का आक्रमण [[भारत]] पर हुआ, और उसने [[दिल्ली]] को लूटा तथा 1759 ई. में [[पंजाब]] पर पूर्ण अधिकार कर लिया, उस समय शुजाउद्दौला ने मुग़ल सम्राट की कोई सहायता नहीं की। मुग़ल सम्राट तथा उसके सहायक [[मराठा|मराठों]] को 1761 ई. में [[पानीपत]] के [[पानीपत युद्ध तृतीय|तृतीय युद्ध]] में अब्दाली ने परास्त किया। शुजाउद्दौला ने सदैव केवल अपने वंश के ही हितों पर ध्यान दिया। 1764 ई. में उसने [[बंगाल]] से भागकर सहायतार्थ आने वाले वहाँ के नवाब [[मीर क़ासिम]] तथा [[शाहआलम द्वितीय]] से कम्पनी के विरुद्ध एक सन्धि की, पर [[बक्सर का युद्ध|बक्सर के युद्ध]] में वह पराजित हुआ।
*1765 ई. में उसने [[कड़ा]] और [[इलाहाबाद]] के ज़िलों सहित 50 लाख रुपये की धनराशि हरज़ाने के रूप में देकर अंग्रेज़ों से सन्धि कर ली। साथ ही उसने अंग्रेज़ों से एक सुरक्षात्मक सन्धि भी की, जिसके अनुसार उसके राज्य की सीमाओं के रक्षार्थ कम्पनी ने उसे इस क़रार के अनुसार सहायता देना स्वीकार किया कि सेना का सम्पूर्ण व्यय भार उसे वहन करना होगा।  
====अंग्रेज़ों से सन्धि====
*1772 ई. में उसने रुहेलों से इस आशय की सन्धि की कि यदि मराठों ने उन पर आक्रमण किया तो वह मराठों को इधर न बढ़ने देगा और इसके बदले में रुहेल उसे 40 लाख रुपये की धनराशि देंगे।
1765 ई. में शुजाउद्दौला ने [[कड़ा]] और [[इलाहाबाद]] के ज़िलों सहित 50 लाख रुपये की धनराशि हर्ज़ाने के रूप में देकर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से सन्धि कर ली। साथ ही उसने अंग्रेज़ों से एक सुरक्षात्मक सन्धि भी की, जिसके अनुसार उसके [[राज्य]] की सीमाओं के रक्षार्थ कम्पनी ने उसे इस क़रार के अनुसार सहायता देना स्वीकार किया कि, सेना का सम्पूर्ण व्यय-भार उसे वहन करना होगा। 1772 ई. में उसने रुहलों से इस आशय की सन्धि की, कि यदि [[मराठा|मराठों]] ने उन पर आक्रमण किया, तो वह मराठों को इधर न बढ़ने देगा और इसके बदले में रुहल उसे 40 लाख रुपये की धनराशि देंगे।
*1773 में मराठों ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण किया, किन्तु वे बिना किसी युद्ध के ही वापस लौट गये। अब शुजाउद्दौला ने रुहेलों से 40 लाख रुपयों की निर्धारित धनराशि की माँग की और रुहेल उसे देने में आनाकानी करने लगे। अतएव शुजाउद्दौला ने कम्पनी के साथ बनारस की प्रसिद्ध सन्धि कर ली, जिसकी शर्तों के अनुसार 50 लाख रुपये के बदले उन्हें कड़ा और इलाहाबाद ज़िले को पुनः प्राप्त हो गये तथा [[लखनऊ]] में कम्पनी की एक पलटन रखने के बदले उन्हें निश्चित धनराशि भी प्राप्त हुई। [[बनारस]] में ही उसे बंगाल के गवर्नर [[वारेन हेस्टिंग्स]] द्वारा यह आश्वासन मिला कि कम्पनी रुहेलों से 40 लाख रुपये प्राप्त करने में शुजउद्दौला की सहायता अंग्रेज़ पलटन के द्वारा करेगी, क्योंकि शुजाउद्दौला की दृष्टि में रुहेलों से वह धनराशि उसको मिलनी थी।  
==बनारस की सन्धि==
*1774 ई. में नवाब ने अंग्रेज़ पलटन की सहायता से [[रुहेलखण्ड]] पर आक्रमण किया, वहाँ के शासक हाफ़िज अहमद ख़ाँ को मीरनपुर कटरा के युद्ध में पराजित किया और रुहेलखण्ड को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। दूसरे ही वर्ष शुजाउद्दौला की मृत्यु हो गयी।
1773 में मराठों ने रूहेलखण्ड पर आक्रमण किया, किन्तु वे बिना किसी युद्ध के ही वापस लौट गये। अब शुजाउद्दौला ने रुहलों से 40 लाख रुपयों की निर्धारित धनराशि की माँग की, और रुहेल उसे देने में आनाकानी करने लगे। अतएव शुजाउद्दौला ने [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] के साथ [[बनारस]] की प्रसिद्ध 'बनारस सन्धि' कर ली, जिसकी शर्तों के अनुसार 50 लाख रुपये के बदले उन्हें [[कड़ा]] और [[इलाहाबाद]] ज़िले को पुनः प्राप्त हो गये तथा [[लखनऊ]] में कम्पनी की एक पलटन रखने के बदले उन्हें निश्चित धनराशि भी प्राप्त हुई। बनारस में ही उसे [[बंगाल]] के गवर्नर [[वारेन हेस्टिंग्स]] द्वारा यह आश्वासन मिला, कि कम्पनी रुहलों से 40 लाख रुपये प्राप्त करने में शुजाउद्दौला की सहायता अंग्रेज़ पलटन के द्वारा करेगी, क्योंकि शुजाउद्दौला की दृष्टि में रुहलों से वह धनराशि उसको मिलनी थी।
*शुजाउद्दौला की मृत्यु के बाद उसका बेटा [[आसफ़उद्दौला]] उत्तराधिकारी और नवाब था।
====मृत्यु====
1774 ई. में नवाब ने अंग्रेज़ पलटन की सहायता से [[रूहेलखण्ड]] पर आक्रमण किया, वहाँ के शासक हाफ़िज अहमद ख़ाँ को मीरनपुर कटरा के युद्ध में पराजित किया और रूहेलखण्ड को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। इसके दूसरे ही वर्ष नवाब शुजाउद्दौला की मृत्यु हो गयी। शुजाउद्दौला की मृत्यु के बाद उसका बेटा [[आसफ़उद्दौला]] उत्तराधिकारी और नवाब बना।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|आधार=
|प्रारम्भिक=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|पूर्णता=
|शोध=
|शोध=
}}
}}
==वीथिका==
<gallery>
चित्र:Shuja-Ud-Daulah.jpg|शुजाउद्दौला
चित्र:Shuja-Ud-Daulah-And-His-Sons.jpg|अपने बेटों के साथ शुजाउद्दौला
चित्र:Palace-Of-Shujah-Ud-Daulah-Lucknow.jpg|शुजाउद्दौला महल, [[लखनऊ]]
</gallery>
==संबंधित लेख==
{{अवध के नवाब}}
[[Category:अवध के नवाब]][[Category:लखनऊ]]
[[Category:आधुनिक काल]]
[[Category:इतिहास कोश]]


__INDEX__
__INDEX__
 
__NOTOC__
[[Category:मध्य काल]]
[[Category:इतिहास कोश]]

09:34, 2 मार्च 2014 के समय का अवतरण

चित्रकार द्वारा चित्रित शुजाउद्दौला का चित्र

शुजाउद्दौला (1754-1775 ई.) अवध का तृतीय स्वतंत्र नवाब और वहाँ के द्वितीय नवाब सफदरजंग का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। शुजाउद्दौला को आलमगीर द्वितीय (1754-1759 ई.) तथा शाहआलम द्वितीय (1759-1806 ई.) नामक मुग़ल सम्राट से वज़ीर का ओहदा मिला था। जब अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया, उस समय शुजाउद्दौला ने मुग़ल सम्राट की कोई सहायता नहीं की। उसने केवल अपने हितों पर ही ध्यान दिया था। 1774 ई. में नवाब शुजाउद्दौला ने अंग्रेज़ों की सहायता से रूहेलखण्ड पर आक्रमण किया था, लेकिन इसके दूसरे ही वर्ष उसकी मृत्यु हो गई।

अब्दाली का आक्रमण

1756 ई. में अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण भारत पर हुआ, और उसने दिल्ली को लूटा तथा 1759 ई. में पंजाब पर पूर्ण अधिकार कर लिया, उस समय शुजाउद्दौला ने मुग़ल सम्राट की कोई सहायता नहीं की। मुग़ल सम्राट तथा उसके सहायक मराठों को 1761 ई. में पानीपत के तृतीय युद्ध में अब्दाली ने परास्त किया। शुजाउद्दौला ने सदैव केवल अपने वंश के ही हितों पर ध्यान दिया। 1764 ई. में उसने बंगाल से भागकर सहायतार्थ आने वाले वहाँ के नवाब मीर क़ासिम तथा शाहआलम द्वितीय से कम्पनी के विरुद्ध एक सन्धि की, पर बक्सर के युद्ध में वह पराजित हुआ।

अंग्रेज़ों से सन्धि

1765 ई. में शुजाउद्दौला ने कड़ा और इलाहाबाद के ज़िलों सहित 50 लाख रुपये की धनराशि हर्ज़ाने के रूप में देकर अंग्रेज़ों से सन्धि कर ली। साथ ही उसने अंग्रेज़ों से एक सुरक्षात्मक सन्धि भी की, जिसके अनुसार उसके राज्य की सीमाओं के रक्षार्थ कम्पनी ने उसे इस क़रार के अनुसार सहायता देना स्वीकार किया कि, सेना का सम्पूर्ण व्यय-भार उसे वहन करना होगा। 1772 ई. में उसने रुहलों से इस आशय की सन्धि की, कि यदि मराठों ने उन पर आक्रमण किया, तो वह मराठों को इधर न बढ़ने देगा और इसके बदले में रुहल उसे 40 लाख रुपये की धनराशि देंगे।

बनारस की सन्धि

1773 में मराठों ने रूहेलखण्ड पर आक्रमण किया, किन्तु वे बिना किसी युद्ध के ही वापस लौट गये। अब शुजाउद्दौला ने रुहलों से 40 लाख रुपयों की निर्धारित धनराशि की माँग की, और रुहेल उसे देने में आनाकानी करने लगे। अतएव शुजाउद्दौला ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ बनारस की प्रसिद्ध 'बनारस सन्धि' कर ली, जिसकी शर्तों के अनुसार 50 लाख रुपये के बदले उन्हें कड़ा और इलाहाबाद ज़िले को पुनः प्राप्त हो गये तथा लखनऊ में कम्पनी की एक पलटन रखने के बदले उन्हें निश्चित धनराशि भी प्राप्त हुई। बनारस में ही उसे बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स द्वारा यह आश्वासन मिला, कि कम्पनी रुहलों से 40 लाख रुपये प्राप्त करने में शुजाउद्दौला की सहायता अंग्रेज़ पलटन के द्वारा करेगी, क्योंकि शुजाउद्दौला की दृष्टि में रुहलों से वह धनराशि उसको मिलनी थी।

मृत्यु

1774 ई. में नवाब ने अंग्रेज़ पलटन की सहायता से रूहेलखण्ड पर आक्रमण किया, वहाँ के शासक हाफ़िज अहमद ख़ाँ को मीरनपुर कटरा के युद्ध में पराजित किया और रूहेलखण्ड को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। इसके दूसरे ही वर्ष नवाब शुजाउद्दौला की मृत्यु हो गयी। शुजाउद्दौला की मृत्यु के बाद उसका बेटा आसफ़उद्दौला उत्तराधिकारी और नवाब बना।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

संबंधित लेख