"महात्मा का स्वभाव": अवतरणों में अंतर
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एक महात्मा नदी में नहा रहे थे। उन्होंने देखा, एक बिच्छू [[जल]] की धारा में बहा जा रहा है, महात्मा ने बिच्छू को बचाने के लिये उसे हाथ में उठा लिया। | |||
*बिच्छू ने महात्मा के हाथ में डंक मारा, डंक मारते ही हाथ हिला जिससे बिच्छू जल में गिर गया और बहने लगा। | *बिच्छू ने महात्मा के हाथ में डंक मारा, डंक मारते ही हाथ हिला जिससे बिच्छू जल में गिर गया और बहने लगा। | ||
*महात्मा नें बिच्छू को फिर उठाया। इस बार भी उसने डंक मारा और हाथ हिलने से फिर जल में गिर गया। महात्मा ने फिर उठाया, तब पास ही नहाने वाले एक सज्जन ने महात्मा से कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे है? | *महात्मा नें बिच्छू को फिर उठाया। इस बार भी उसने डंक मारा और हाथ हिलने से फिर जल में गिर गया। महात्मा ने फिर उठाया, तब पास ही नहाने वाले एक सज्जन ने महात्मा से कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे है? | ||
*महात्मा बोले-भाई इसका स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है इसे बचाना। जब यह कीड़ा होकर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तब फिर मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ? | *महात्मा बोले-भाई इसका स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है इसे बचाना। जब यह कीड़ा होकर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तब फिर मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ? | ||
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07:59, 15 मई 2014 के समय का अवतरण
एक महात्मा नदी में नहा रहे थे। उन्होंने देखा, एक बिच्छू जल की धारा में बहा जा रहा है, महात्मा ने बिच्छू को बचाने के लिये उसे हाथ में उठा लिया।
- बिच्छू ने महात्मा के हाथ में डंक मारा, डंक मारते ही हाथ हिला जिससे बिच्छू जल में गिर गया और बहने लगा।
- महात्मा नें बिच्छू को फिर उठाया। इस बार भी उसने डंक मारा और हाथ हिलने से फिर जल में गिर गया। महात्मा ने फिर उठाया, तब पास ही नहाने वाले एक सज्जन ने महात्मा से कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे है?
- महात्मा बोले-भाई इसका स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है इसे बचाना। जब यह कीड़ा होकर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तब फिर मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ?
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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